लोकसभा चुनाव || जलपाईगुड़ी में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार, बीजेपी के सामने सीट बचाने की चुनौती

Kolkata Hindi News, कोलकाता। पूरे देश में लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक रस्सा-कस्सी शुरू हो गई है। पश्चिम बंगाल में लड़ाई दिलचस्प है। खासतौर पर उत्तर बंगाल में क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां के अधिकतर इलाकों में भाजपा का दबदबा रहा है।

इस बार कांग्रेस और वामदल एक साथ चुनाव लड़ रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस भी अधिकतर सीटों पर थोड़ी बहुत मजबूत स्थिति में आई है।ऐसी ही एक सीट है जलपाईगुड़ी जहां इस बार लड़ाई दिलचस्प होने वाली है।

इसकी वजह है कि यहां इस बार भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद जयंत राय को एक बार फिर चुनावी मैदान में उतारा है। उनके खिलाफ तृणमूल कांग्रेस ने स्थानीय नेता निर्मल चंद्र राय को उम्मीदवार बनाया है।

वामदलों की ओर से देवराज बर्मन को टिकट दिया गया है जबकि कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा है तो माना जा रहा है कि बर्मन को पार्टी का समर्थन मिलेगा इसलिए यहां त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं।


क्या है भौगोलिक स्थिति?

जलपाईगुड़ी पश्चिम बंगाल का एक जिला है। जिले की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक जलपाईगुड़ी बांग्ला के दो शब्दों से मिलकर बना है। जैतून को बांग्ला में जलपाई कहते हैं जबकि गुड़ी का मतलब स्थान होता है।

यानी जलपाईगुड़ी वह स्थान है, जहां जैतून का उत्पादन होता है। जलपाईगुड़ी को जलपेश के नाम से भी जाना जाता है जिसका एक सिरा जिला मुख्यालय से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर स्थित शिव को समर्पित जलपेश नाम के एक मंदिर से जुड़ता है।

Lok Sabha Elections || Triangular contest likely in Jalpaiguri, challenge for BJP to save seat

माना जाता है कि जलपाईगुड़ी शब्द की उत्पत्ति जलपेश शब्द से हुई है। इतिहास के आधे-अधूरे पन्ने बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना बगदाद के अंतिम शासक राजा जलपेश ने 800 ईसा पूर्व में की थी, लेकिन बाद में कई राजाओं ने इस मंदिर पर हमला किया और नष्ट कर दिया जबकि कुछ राजाओं ने इसे पुनः स्थापित करने की कोशिश भी की।

1665 में कोच राजवंश के राजा प्रणनारायण ने मंदिर की पुन: स्थापना की, मगर दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि भूकंप की वजह से मंदिर फिर नष्ट हो गया। बाद में इस मंदिर की फिर से स्थापना की गई, लेकिन इसका विवरण नहीं मिलता है कि इसे किसने पुनर्स्थापित किया।

बहरहाल सामान्य ज्ञान की भाषा में कहा जाए तो जलपाईगुड़ी पश्चिम बंगाल का ऐतिहासिक और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर एक जिला है। यह राज्य के उत्तर में स्थित है और उत्तर बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर है।

यह जिला इसलिए महत्वपूर्ण क्योंकि यह देश के बाकी राज्यों को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है। भौगोलिक नजरिये से देखा जाए तो यह पश्चिम बंगाल का एक शानदार स्थल है, जहां प्रकृति ने अपना खजाना दिल खोल कर लुटाया है।
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क्या है राजनीतिक इतिहास?

पर्यटकों की पसंद जलपाईगुड़ी लोकसभा सीट 1962 में सामने आई थी। इस सीट पर देश में लगे आपातकाल के बाद ज्यादातर मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी (माकपा) का कब्जा रहा है। जलपाईगुड़ी संसदीय सीट पर 1992, 1967 और 1971 में हुए आम चुनावों में कांग्रेस अपना झंडा फहराती रही लेकिन आपातकाल के बाद देश के साथ ही जलपाईगुड़ी सीट की भी तस्वीर बदली और 1977 के चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार ने जीत हासिल की।

जलपाईगुड़ी जिले की तकरीबन 80 फीसदी आबादी में दलितों और आदिवासियों की हिस्सेदारी है। यह वजह है कि जलपाईगुड़ी की सात विधानसभा सीटों में से छह अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सुरक्षित हैं।

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परिसीमन आयोग की 2009 की परिसीमन रिपोर्ट में जलपाईगुड़ी लोकसभा सीट को सात विधानसभा क्षेत्रों में विभाजित किया गया है

इनमें से पांच मेखलीगंज, धुपगुड़ी, मेनागुड़ी, जलपाईगुड़ी और राजगंज अनुसूचित जाति और एक विधानसभा सीट माल अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है।

दबग्राम-फुलबारी सीट सामान्य है। मतदाता सूची 2017 के मुताबिक जलपाईगुड़ी संसदीय क्षेत्र में 16 लाख 54 हजार 578 मतदाता है जो 1831 मतदाता केंद्रों पर वोटिंग करते हैं।
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क्या है 2019 का जनादेश?

2019 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. जयंत कुमार रॉय ने सात लाख 60 हजार 145 वोट लेकर जीत हासिल की थी। जबकि तृणमूल कांग्रेस के बिजय चंद्र बर्मन पांच लाख 76 हजार 141 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर खिसक गए।

वहीं सीपीआई (एम) प्रत्याशी भागीरथ चंद्र राय 76 हजार 54 वोटों के साथ कांग्रेस को पीछे छोड़कर तीसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के मणि कुमार दर्नाल 28 हजार 488 वोटों के साथ चौथे नंबर पर रहे थे।

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