साहित्यकार/कवि सुधीर श्रीवास्तव ने किया देहदान की घोषणा

गोण्डा (उ.प्र.) । सामाजिक दायित्व निर्वहन के परिप्रेक्ष्य में जिले के वरिष्ठ साहित्यकार/कवि सुधीर श्रीवास्तव ने अंततः 13 मई को बहुप्रतीक्षित देहदान की आनलाइन घोषणा की है। नेत्रदान का पूर्व में संकल्प कर चुके सुधीर श्रीवास्तव विद्यार्थी जीवन से ही देहदान की इच्छा रखते थे। 2020 में पक्षाघात का शिकार होने के बाद उनकी इच्छा और मजबूत होती गई और अंततः उन्होंने सार्वजनिक घोषणा कर दी। ज्ञातव्य है कि साहित्य जगत में अपने सहयोगात्मक स्वभाव के कारण नवोदितों में लोकप्रिय, प्रेरक व्यक्तित्व, मार्गदर्शक की भूमिका निर्वहन करते आ रहे सुधीर श्रीवास्तव विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं में पदाधिकारी भी हैं।

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सुधीर श्रीवास्तव

जिनमें स्व. हंसराज अरोड़ा स्मृति मंच के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक, नव साहित्य परिवार भारत, साहित्यकोष (राष्ट्रीय साहित्यिक मंच), राष्ट्रीय गौरव साहित्यिक, सांस्कृतिक  संस्थान के संरक्षक, अ.भा. साहित्यिक आस्था परिवार के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, प्रयागराज कल्चरल सोसायटी के महासचिव, कुछ बात कुछ जज़्बात मंच के मीडिया प्रभारी, साहित्य प्रकाश रचना मंच के अलावा अन्य साहित्यिक संस्थाओं को भी अपरोक्ष सहयोग और मार्गदर्शन दे रहे हैं।

विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से लगभग 1600 ई सम्मान/सम्मान पत्र प्राप्त कर चुके श्री सुधीर श्रीवास्तव गतवर्ष 25 मई 2021 को पक्षाघात का शिकार होने और स्वास्थ्य लाभ के दौरान लगभग 22 वर्षों से बंद लेखन को पुनर्जीवित कर पुनः साहित्य साधना में लौटे। देश के विभिन्न प्रांतों के 150 से अधिक नवोदितों का मार्गदर्शन कर उनके प्रेरक और गॉडफादर की भूमिका निभाते रहने वाले श्रीवास्तव विहंगम प्रयास कर रहे है।

सुधीर श्रीवास्तव द्वारा देहदान की घोषणा पर जिले और मंडल ही नहीं देश/विदेश के साहित्यकारों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं के पदाधिकारियों के अलावा पारिवारिक सदस्यों, रिश्तेदारों, मित्रों, शुभचिंतकों ने प्रसन्नता व्यक्ति करते हुए उन्हें बधाइयां और शुभकामनाएं दी हैं। सुधीर श्रीवास्तव ने मंच के साथ-साथ सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आमजन से नेत्रदान, रक्तदान, अंगदान और देहदान के लिए आगे आने की अपील भी की है। उनका मानना है कि यह एक मानवीय ही नहीं सामाजिक दायित्व भी है। क्योंकि समाज और राष्ट्र हमें जीवन भर बहुत कुछ देता रहता है तो समाज और राष्ट्रहित में हमारा भी कुछ कर्तव्य तो बनता ही है।

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