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नामुमकिन कुछ भी नहीं है अच्छे दिन लाना भी मुमकिन था मगर अच्छे दिन लाने की ज़रूरत क्या है। हमने गहराई से हिसाब लगाकर समझा बहुत सीधा गणित है। देश की गरीबी स्वास्थ्य और शिक्षा की बदहाली न्याय व्यवस्था को सही ढंग से लागू करने पर जितना धन हर साल चाहिए उतना नहीं उस से अधिक हम ख़ास वीवीआईपी कहलाने वाले लोग हर महीने अपने सुख सुविधा के साधन वेतन भत्ते और मुफ्त घर गाड़ी खाना पीना और अपने गुणगान पर खर्च कर देते हैं।
देशभक्त होने का ढौंग करते हैं अन्यथा क्या देश और जनता की खातिर साल में एक महीना हम सरकारी पैसा सुविधा छोड़ दें तो देश की करोड़ों जनता की भलाई हो सकती है। मगर हम सभी मुझे भी शामिल कर आप सब क्या देश को एक महीना अपनी सेवा नहीं दे सकते हैं बल्कि हम तो और अधिक चाहते हैं मांगते हैं।
आज जब कोरोना जैसी माहमारी फैली हुई है लेकिन हमारे देश के राजनेता और विधायक सांसद और सरकारी अधिकारी अपने आप पर बेतहाशा धन खर्च कर रहे हैं कहने को वेतन से कुछ प्रतिशत कम लेने की बात कही गई है मगर जब तक इस तथाकथित वीवीआईपी वर्ग पर फ़िज़ूल खर्ची पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है तब तक आम जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए कुछ भी नहीं बचता है।।
क्या देशभक्ति का दावा करने वाले ये लोग देश और समाज की खातिर पांच साल बिना किसी सुख सुविधा के केवल उतना ही वेतन ले कर नहीं रह सकते ताकि जो काम सतर सालों में नहीं किया जा सका उसे कुछ ही सालों में कर दिखा सकते हैं ।। सवाल ईमानदारी से देशसेवा करने और केवल देशसेवा करने की बात कहने के अंतर का है ।।
नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत हैं । इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।