कोविड और जलवायु परिवर्तन ने सुंदरबन की महिलाओं को वेश्यावृत्ति में धकेला

सुंदरबन। सुंदरबन के दलदली इलाकों में एक ओर जहां भूमि के कटाव ने हजारों लोगों से उनकी छत और आजीविका छीन ली है, वहीं कोविड-19 के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की दोहरी मार ने अधेड़ उम्र की महिलाओं को भी वेश्यावृत्ति में धकेल दिया है। इनमें से कुछ महिलाएं तो दादी-नानी भी बन चुकी हैं। उनकी घोर गरीबी पर महामारी की मार भी पड़ी है जिससे वे मानव तस्करों के लिए आसान शिकार बन गयी हैं। इन तस्करों के लिए युवतियों और किशोरियों को अपने झांसे में लेना मुश्किल हो गया है और इसलिए अब वे अपना ध्यान पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों की अधेड़ उम्र की महिलाओं पर केंद्रित कर रहे हैं।

गोरनबोस ग्राम विकास केंद्र (जीजीबीके) के निदेशक रंजन रपतान ने तस्करों द्वारा अधेड़ उम्र और बुजुर्ग महिलाओं में दिलचस्पी दिखाने के बारे में ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘ज्यादा उम्र की महिलाओं के बदतर हालात ने उन्हें तस्करों का आसान शिकार बना दिया है।’’ रपतान का एनजीओ मानव तस्करी, बाल अधिकारों और जलवायु परिवर्तन के असर जैसे मुद्दे पर काम करता है। रपतान का एनजीओ मानव तस्करी, बाल अधिकारों और जलवायु परिवर्तन के असर जैसे मुद्दे पर काम करता है।

उन्होंने कहा, ‘‘लॉकडाउन के दौरान किशोरियों का मिल पाना मुश्किल हो गया क्योंकि वे घरों से बाहर नहीं निकलने लगीं, इसलिए तस्करों ने अपना ध्यान बुजुर्ग महिलाओं पर केंद्रियत किया जिन्हें पैसों की जरूरत थी। इससे पहले अक्सर 24 साल से कम उम्र की महिलाओं की तस्करी हुआ करती थी। पिछले चार महीनों में 30 और 40 साल की उम्र के आसपास की 12-13 महिलाओं को छुड़ाया गया, जिन्हें देह व्यापार में धकेल दिया गया था। उन्होंने कहा, ‘‘यकीनन कई और महिलाएं वेश्यावृत्ति के इस जाल में फंसी होंगी।’’

सुंदरबन, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच करीब 10,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है, जहां कई स्थानों पर काफी संख्या में मकान और खेती योग्य जमीन डूब गयी है। उनकी इस परेशानी को कोरोना वायरस ने और बढ़ा दिया तथा इसमें उत्पीड़न और यौन शोषण भी जुड़ गयी है। गरिमा के पति की मार्च 2020 में मस्तिष्काघात के कारण मौत हो गयी, जिसके बाद उसकी जिंदगी पूरी तरह बदल गयी, जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी। यह वह दौर था जब महामारी फैल रही थी और भारत में लॉकडाउन लगा हुआ था। दो महीने बाद चक्रवात अम्फान आया और 49 वर्षीय गरिमा की तरह हजारों अन्य लोगों का आशियाना उजड़ गया।

गरिमा ने बताया कि पुणे के एक कोठे में हर दिन उससे कई बार दुष्कर्म किया गया। अब वह दक्षिण परगना 24 के डायमंड हार्बर में अपने घर लौट आयी है। यह जिला सुंदरबन क्षेत्र के तहत आता है। उसकी तस्करी तब की गयी थी जब उसके बच्चों ने उसे भोजन देना बंद कर दिया था। गरिमा ने फोन पर बताया, ‘‘मेरे साथ हर दिन आठ-नौ लोगों ने दुष्कर्म किया। अगर मैं इनकार करती तो मुझे पीटा जाता और भोजन भी नहीं दिया जाता।’’ गरिमा को पिछले साल पुलिस के छापे में छुड़ाया गया। गरिमा के पोते/नाती भी हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता पम्पा घोष ने कहा कि वे उसके लिए मुआवजा मांग रहे हैं और उन पुनर्वास गृहों की तलाश कर रहे हैं जहां वह लंबे समय तक रह सकती है। घोष ने बताया कि मानव तस्कर कोविड-19 और जलवायु परिवर्तन के कारण बुजुर्ग महिलाओं की वित्तीय स्थिति का पता लगाते हैं और फिर उसका फायदा उठाते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वेश्यावृत्ति के लिए यौन शोषण के उद्देश्य से मानव तस्करी के 2020 में 1,466 मामले दर्ज किए गए।बहरहाल, विशेषज्ञों का कहना है कि असल संख्या कई गुना अधिक है।

(पहचान छुपाने के लिए नामों में बदलाव किया गया है)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × four =