वाराणसी । नवरात्रि में गुप्त नवरात्रि का महत्व क्या होता है? आइए जानते हैं पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री से…
1. देवी दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि वही इस चराचर जगत में शक्ति का संचार करती हैं। उनकी आराधना के लिये ही साल में दो बार बड़े स्तर पर लगातार नौ दिनों तक उनके अनेक रूपों की पूजा की जाती है। 9 दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व को नवरात्र कहा जाता है। एक हिन्दी वर्ष में चार बार नवरात्र आती है। दो नवरात्र सामान्य होती हैं और दो गुप्त होती हैं। चैत्र और आश्विन मास में आने वाली नवरात्र से ज्यादा महत्व गुप्त नवरात्र का माना जाता है।माघ नवरात्री उत्तरी भारत में अधिक प्रसिद्ध है और आषाढ़ नवरात्रि मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में लोकप्रिय है।
2. साल में दो बार गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की दस महाविद्याओं की पूजा की जाती है। यह साधना हालांकि चैत्र और शारदीय नवरात्र से कठिन होती है लेकिन मान्यता है कि इस साधना के परिणाम बड़े आश्चर्यचकित करने वाले मिलते हैं। इसलिये तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले तांत्रिकों के लिये यह नवरात्र बहुत खास माने जाते हैं।मान्यता है कि गुप्त नवरात्र में की जाने वाली साधना को गुप्त रखा जाता है। इस साधना से देवी जल्दी प्रसन्न होती है। चूंकि मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिये इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष गुप्त नवरात्रि 30 जून 2022, गुरुवार से 9 जुलाई 2022, शनिवार तक मनाई जाएगी।
पारण 9 जुलाई, शनिवार को दशमी के दिन होगा। इस वर्ष गुप्त नवरात्रि 30 जून 2022, गुरुवार से 9 जुलाई 2022, शनिवार तक मनाई जाएगी। पारण 9 जुलाई, शनिवार को दशमी के दिन होगा। इस वर्ष माँ शक्ति स्वरूपा डोली (झूला) पर सवार होकर आएंगी और चरणायुधा पैदल जाएंगी। इस प्रकार उनका आगमन एवं गमन दोनों ही अशुभ सूचक हैं। पौराणिक काल से ही गुप्त नवरात्रि में शक्ति की उपासना की जाती है ताकि जीवन तनाव मुक्त रहे। माना जाता है कि जीवन में अगर कोई समस्या है तो उससे निजात पाने के लिए माँ शक्ति के खास मंत्रों के जप से उससे मुक्ति पाई जा सकती है।
3. शक्ति के दो प्रकार : कुछ चीजें गुप्त होती हैं तो कुछ प्रगट। शक्ति भी दो प्रकार की होती है। एक आंतरिक और दूसरी बाह्य। आंतरिक शक्ति का संबंध सीधे तौर पर व्यक्ति के चारित्रिक गुणों से होता है। कहते हैं कि हम क्या है, यह हम ही जानते हैं। दूसरा रूप वह है जो सबके सामने है। हम जैसा दिखते हैं, जैसा करते हैं, जैसा सोचते हैं और जैसा व्यवहार में दिखते हैं। यह सर्वविदित और सर्वदृष्टिगत होता है।लेकिन हमारी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा के बारे में केवल हम ही जानते हैं। आंतरिक ऊर्जा या शक्ति को दस रूपों में हैं।
साधारण शब्दों में इनको धर्म, अर्थ, प्रबंधन, प्रशासन, मन, मस्तिष्क, आंतरिक शक्ति या स्वास्थ्य, योजना, काम और स्मरण के रूप में लिया जाता है। हमारे लोक व्यवहार में बहुत सी बातें गुप्त होती हैं और कुछ प्रगट करने वाली। यही शक्तियां समन्वित रूप से महाविद्या कही गई हैं। गुप्त नवरात्र दस महाविद्या की आराधना का पर्व है। इन दस महाविद्याओं की होती है विशेष पूजा….गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्याओं का पूजन किया जाता है।ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
क्या है गुप्त नवरात्र की पूजा विधि :
1. जहां तक पूजा की विधि का सवाल है मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा अन्य नवरात्र की तरह ही करनी चाहिये। शारदीय और चैत्र नवरात्र की तरह ही गुप्त नवरात्र में कलश स्थापना की जाती है। नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा को घटस्थापना कर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा की जाती है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया जाता है। देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं।
जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं।इस पूजा के विषय में किसी और को नहीं बताना चाहिए और मन से मां दुर्गा की आराधना में तल्लीन रहना चाहिए।
2. इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होते हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं। उस समय पृथ्वी पर रुद्र, वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है।
दस महाविद्या और गुप्त नवरात्र :
1. श्री दुर्गा सप्तशती में कीलकम् में कहा जाता है कि भगवान शंकर ने बहुत सी विद्याओं को गुप्त कर दिया। यह विद्या कौन सी हैं? प्रसंग सती का है। भगवान शंकर की पत्नी सती ने जिद की कि वह अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां अवश्य जाएंगी। प्रजापति ने यज्ञ में न सती को बुलाया और न अपने दामाद भगवान शंकर को। शंकर जी ने कहा कि बिना बुलाए कहीं नहीं जाते हैं। लेकिन सती जिद पर अड़ गईं। सती ने उस समय अपनी दस महाविद्याओं का प्रदर्शन किया। भगवान शंकर जी ने सती से पूछा- ‘कौन हैं ये?’ सती ने बताया,‘ये मेरे दस रूप हैं। सामने काली हैं। नीले रंग की तारा हैं। पश्चिम में छिन्नमस्ता, बाएं भुवनेश्वरी, पीठ के पीछे बगलामुखी, पूर्व-दक्षिण में धूमावती, दक्षिण-पश्चिम में त्रिपुर सुंदरी, पश्चिम-उत्तर में मातंगी तथा उत्तर-पूर्व में षोड़शी हैं। मैं खुद भैरवी रूप में अभयदान देती हूं।
2. इन्हीं दस महाविद्याओं के साथ देवी भगवती ने असुरों के साथ संग्राम भी किया। चंड-मुंड और शुम्भ-निशुम्भ वध के समय देवी की यही दश महाविद्या युद्ध करती रहीं। दश महाविद्या की आराधना अपने आंतरिक गुणों और आंतरिक शक्तियों के विकास के लिए की जाती है। यदि अकारण भय सताता हो, शत्रु परेशान करते हों, धर्म और आध्यात्म में मार्ग प्रशस्त करना हो, विद्या-बुद्धि और विवेक का परस्पर समन्वय नहीं कर पाते हों, उनके लिए दश महाविद्या की पूजा विशेष फलदायी है। चैत्र और शारदीय नवरात्र की तुलना में गुप्त नवरात्र में देवी की साधना ज्यादा कठिन होती है। इस दौरान मां दुर्गा की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। इन नवरात्र में मानसिक पूजा का महत्व है। वाचन गुप्त होता है। लेकिन सतर्कता भी आवश्यक है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि गुप्त नवरात्र केवल तांत्रिक विद्या के लिए ही होते हैं। इनको कोई भी कर सकता है लेकिन थोड़ी सतर्कता रखनी आवश्यक है। दश महाविद्या की पूजा सरल नहीं।
3. कालीकुल और श्री कुल…
जिस प्रकार भगवान शंकर के दो रूप हैं एक रुद्र (काल-महाकाल) और दूसरे शिव, उसी प्रकार देवी भगवती के भी दो कुल हैं- काली कुल और श्री कुल। काली कुल उग्रता का प्रतीक है। काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी हैं। यह स्वभाव से उग्र हैं। श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला हैं। धूमावती को छोड़कर सभी सौंदर्य की प्रतीक हैं।
नवरात्र की देवियां…नौ दुर्गा : 1. शैलपुत्री, 2. ब्रह्मचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कुष्मांडा, 5. स्कंदमाता, 6. कात्यायनी, 7. कालरात्रि, 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।
गुप्त नवरात्र की देवियां…दस महा विद्या : 1. काली, 2. तारा, 3. त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्वरी, 5. छिन्नमस्ता, 6. त्रिपुरभैरवी, 7. धूमावती, 8. बगलामुखी, 9. मातंगी और 10.कमला।
4. दस महाविद्या किसकी प्रतीक?
1- काली (समस्त बाधाओं से मुक्ति)
2- तारा (आर्थिक उन्नति)
3- त्रिपुर सुंदरी (सौंदर्य और ऐश्वर्य)
4- भुवनेश्वरी (सुख और शांति)
5- छिन्नमस्ता (वैभव, शत्रु पर विजय, सम्मोहन)
6- त्रिपुर भैरवी (सुख-वैभव, विपत्तियों को हरने वाली)
7- धूमावती (दरिद्रता विनाशिनी)
8- बगलामुखी (वाद विवाद में विजय, शत्रु पर विजय)
9- मातंगी (ज्ञान, विज्ञान, सिद्धि, साधना)
10- कमला (परम वैभव और धन)
5. गुप्त नवरात्र से जुड़ी पौराणिक कथा :
कथा के अनुसार एक बार ऋषि श्रंगी भक्तों को प्रवचन दे रहे थे। इसी दौरान भीड़ से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि के सामने आई और अपनी समस्या बताने लगी। स्त्री ने कहा कि उनके पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं और इसलिए वह किसी भी प्रकार का व्रत, धार्मिक अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती। स्त्री ने साथ ही कहा कि वह मां दुर्गा के शरण में जाना चाहती है लेकिन पति के पापाचार के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा है।
यह सुन ऋषि ने बताया कि शारदीय और चैत्र नवरात्र में तो हर कोई मां दुर्गा की पूजा करता है और इससे सब परिचित भी हैं लेकिन इसके अलावा भी दो और नवरात्र है। ऋषि ने बताया कि दो गुप्त नवरात्र में 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है। ऋषि ने स्त्री से कहा कि इसे करने से सभी प्रकार के दुख दूर होंगे और जीवन खुशियों से भर जाएगा। ऐसा सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में गुप्त रूप से ऋषि के अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की। मां दुर्गा इस श्रद्धा और भक्ति से हुईं और इसका असर ये हुआ कि कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ। साथ ही स्त्री का घर भी खुशियों से भर गया।
ब्रह्म मंत्र और उनका शक्ति बीज मंत्र :
ब्रह्म मंत्र का जाप करने से हमें जीवन के चार उद्देश्य धार्मिकता, समृद्धि, सुख और मुक्ति को पूरा करने में मदद मिलती है। जो लोग ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए भी ब्रह्म मंत्र अच्छे हैं। नीचे ब्रह्म के तथा गुप्त नवरात्र में साधना के लिए ब्रह्म-शक्ति… दो मंत्र दिए गए हैं…
1. “ओम सत चिद एकं ब्रह्मः”
2. “ओम ऐं ह्रीं श्रीं क्लीम सौः सच्चिद एकं ब्रह्मः”
ब्रह्म कौन है?
“ओम ब्रह्म का नाम है, जिसने इस ब्रह्मांड को अपने तीन गुणों (प्रकृति के गुण: सकारात्मक, नकारात्मक और मौन) के साथ बनाया, जिसने सभी चीजों को रूप दिया और जो सार्वभौमिक है। “ब्रह्मांड के रचनात्मक सिद्धांत को संस्कृत में ब्रह्म कहा जाता है। ब्रह्म सारी सृष्टि के लिए एक रूपक है : इसके नियम, इसकी अंतर्निहित बुद्धि और इसकी सचेत रूप से प्रकट शक्तियाँ जो संतों, ऋषियों, देवों, आकाशीय और सभी प्रकार की प्रकृति, स्वभाव और विवरण के दिव्य प्राणियों के रूप में कार्य करती हैं। ओम उपनिषदों में दिया गया संस्कृत नाम है जो सभी प्रकट और अव्यक्त लोकों का योग और सार है। ब्रह्म वह है जो न तो बनाया गया हैं और न ही नष्ट हुआ हैं बल्कि सृजन, जीवन से परे है।ब्रह्म इस ब्रह्मांड के रूप में बनाता है, संचालित करता है और ब्रह्मांड का विनाश करता है।
ब्रह्म मंत्र का अर्थ :
सत = सत्य
चिद = आध्यात्मिक मन की बातें
एकम = एक, एक सेकंड के बिना
ब्रह्म = यह संपूर्ण ब्रह्मांड, इसकी सभी सामग्री के साथ
बीज के साथ ब्रह्म मंत्र : “ओम ऐं ह्रीं श्रीं क्लीम सौः सच्चिद एकं ब्रह्मः”
ओम :
ओम कई मंत्रों का उपसर्ग है। यह भौंह केंद्र पर आज्ञा चक्र में ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है, जहां स्त्री और पुरुष धाराएं जुड़ जाती हैं और चेतना एकात्मक और समग्र हो जाती है।
ऐं : (उद्देश्य) माँ सरस्वती के नाम से जाने जाने वाले स्त्री सिद्धांत के लिए एक बीज ध्वनि है। यह सिद्धांत आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ शिक्षा, विज्ञान, कला, संगीत और आध्यात्मिक अनुशासन की भौतिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
ह्रीं : “महामाया” या सृष्टि के पर्दे के लिए एक बीज ध्वनि है। ऐसा कहा जाता है कि इस बीज ध्वनि पर ध्यान करने से ध्यानी को अंततः ब्रह्मांड को “जैसा है” दिखाया जाएगा, न कि जैसा कि हम इसे वर्तमान में देखते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वास्तविकता जैसा कि हम देखते हैं, यह वास्तव में हम सभी के बीच एक “समझौता” है जो पीढ़ी से पीढ़ी तक पारित होता है। बच्चे, अगर वे बात कर सकते हैं, तो ब्रह्मांड के बारे में काफी अलग तरीके से बात करेंगे। वे अंततः सीखते हैं कि मानवता का “समझौता” क्या है और वे दुनिया में कार्य करना शुरू कर देते हैं।
श्रीं : माँ लक्ष्मीके सिद्धांत के लिए बीज ध्वनि है। इसमें भोजन, दोस्तों, परिवार, स्वास्थ्य और असंख्य अन्य चीजों की प्रचुरता अर्थात समृद्धि शामिल है।
क्लीम : माँ काली के सिद्धांत के लिए बीज ध्वनि और कई अर्थों वाला एक बीज है। वर्तमान संदर्भ में यह आकर्षण का सिद्धांत है। इस मंत्र में मंत्र ध्यान की प्रक्रिया को तेज करने के लिए अन्य सिद्धांतों के फल को आकर्षित कर रहा है।
सौ : यह एक आध्यात्मिक सिद्धांत है जो आज्ञा चक्र में एक पंखुड़ी के माध्यम से संचालित होता है। यह एक शक्ति सक्रिय करने वाली ध्वनि भी है।
सत : सत्य
चिद : आध्यात्मिक मन की बातें
एकम : एक, एक सेकंड के बिना
ब्रह्म : यह संपूर्ण ब्रह्मांड, इसकी सभी सामग्री के साथ, जिसे कभी-कभी ब्रह्म भी कहा जाता है, सचेत अस्तित्व की स्थिति जो सब कुछ के साथ एक है।
ज्योतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 9993874848