कारगिल विजय दिवस : जब भारतीय सेना ने दुश्मनों को दिया था मुंहतोड़ जवाब

Kolkata Desk : आज का दिन उन शहीदों को याद कर अपनी श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का है, जिन्होंने हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया। भारत हमेशा से ही योद्धाओं की भूमि रही है, जिसने हमेशा दुश्मनों के दांत खट्टे किए हैं। भारतीय सेना भारत की सीमा की रक्षा करती है। लेकिन हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमेशा घुसपैठ करता है।

ऐसी ही एक घटना 1999 में कश्मीर में हुई थी, जब पाकिस्तान ने कारगिल की चोटियों पर चुपके से कब्ज़ा कर लिया। लेकिन भारत ने दो महीनों तक पाकिस्तान से युद्ध किया और अपनी जमीन वापस ली। 26 जुलाई 1999 को कश्मीर के कारगिल में भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया। उसी की याद में हर साल 26 जुलाई 2021 को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 2021 में देश कारगिल विजय दिवस की 22वीं वर्षगांठ मना रहा है।

आज से 22 वर्ष पहले पाकिस्तानी सेना ने कारगिल पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे भारतीय सेना ने कड़े संघर्ष के बाद सफलतापूर्वक वापस अपने कब्जे में ले लिया। कारगिल युद्ध आखिरी बार था, जब भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण सशस्त्र संघर्ष के रूप में लड़ा गया था। कारगिल युद्ध भी पहली बार था जब भारत और पाकिस्तान परमाणु शक्ति बनने के बाद सशस्त्र संघर्ष में आए। कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा नियंत्रण रेखा पार करके भारत में घुसपैठ करने और पर्वत चोटियों पर कब्जा करने के लिए किया गया था।

पाकिस्तानी घुसपैठ का पता पहली बार मई 1999 में चला था, लेकिन उस समय यह मान लिया गया था कि यह आतंकवादी थे और पाकिस्तानी सेना के सैनिक वर्दी में थे। लेकिन कुछ सप्ताह में भारत ने पाकिस्तान की इस घुसपेठ का पता लगाया और भारतीय सैनिकों ने कारगिल की ऊंचाइयों पर पाकिस्तान से बहादुरी से लड़ाई लड़ी और जीत हांसिल की।

इस युद्ध का कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर हमारी राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना।

पूरे दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों को मार भगाया था। स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया जाता है।

इस युद्ध में हमारे 528 वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश की उम्र 30 साल के अंदर ही थी। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है।

इन रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे मगर ताबूत में उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने खायी थी। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।

भारत के ये वीर सपूत थे :
कैप्टन विक्रम बत्रा : ‘ये दिल माँगे मोर’ – हिमाचलप्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी। माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह शहीद हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन अनुज नायर : 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त कुमुक आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही।
इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को मरणोपरांत भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया।

मेजर पद्मपाणि आचार्य : राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय : 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए।
भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे ना छोडने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए मरणोपरांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन सौरभ कालिया : भारतीय वायुसेना भी इस युद्ध में जौहर दिखाने में पीछे नहीं रही, टोलोलिंग की दुर्गम पहाडियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय वायुसेना के कई बहादुर अधिकारी व अन्य रैंक भी इस लड़ाई में दुश्मन से लोहा लेते हुए शहीद हुए। सबसे पहले कुर्बानी देने वालों में से थे कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी पैट्रोलिंग पार्टी के जवान। घोर यातनाओं के बाद भी कैप्टन कालिया ने कोई भी जानकारी दुश्मनों को नहीं दी।

स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा : स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो गया, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट से उतरते समय भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता : इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बनाए गए। वीरता और बलिदान की यह फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती। इस युद्ध में हमारे 528 वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा जवान घायल हो गये थे।

युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए कश्मीरी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि पाकिस्तान इस पूरी लड़ाई में लिप्त था। बाद में नवाज शरीफ और शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पाक सेना की भूमिका को स्वीकार किया था। यह युद्ध हाल के ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही देश परमाणु हथियारों से संपन्न हैं।

पर कोई भी युद्ध सिर्फ हथियारों के दम पर नहीं लड़ा जाता है, युद्ध लड़े जाते हैं साहस, बलिदान, राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्य की भावना से और हमारे भारत में इन जज्बों से भरे युवाओं की कोई कमी नहीं है।

मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा के लिए बसी रहेंगी। भारतमाता की जय। सभी देशवासियों को कोलकाता हिंदी न्यूज के तरफ से कारगिल विजय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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