कालिदास स्मरण प्रसंग में हुई देव प्रबोधनी पर विद्वत् संगोष्ठी, वागर्चन एवं महाकवि कालिदास की प्रतिमा पर पुष्पांजलि
कालिदास संस्कृत अकादमी के अभिरंग नाट्यगृह में हुई विद्वत् संगोष्ठी में विद्वानों ने रखे कालिदास के बहुआयामी अवदान पर विचार
उज्जैन। आज देवप्रबोधनी एकादशी के अवसर पर मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद् कालिदास संस्कृत अकादमी एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के संयुक्त संयोजन से कालिदास स्मृति प्रसंग का आयोजन किया गया। कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन के निदेशक डॉ. गोविन्द गन्धे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि प्रातः 9ः00 बजे महाकवि कालिदास की आराध्या माँ गढ़कालिका मंदिर पर वागर्चन की विधि सम्पन्न हुई। इस अवसर पर विद्वानों द्वारा कालिदास विरचित श्यामलादण्डकम् का पाठ किया गया।
इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, माननीय डॉ. बालकृष्ण शर्मा, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के प्रभारी कुलपति माननीय डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति, माननीय प्रो. सी.जी. विजय कुमार मेनन, कालिदास संस्कृत अकादमी के निदेशक डॉ. गोविंद गन्धे, डॉ. पियूष त्रिपाठी, डॉ. रमेश शुक्ल, विनोद काबरा, संत सुन्दरदास सेवा समिति, उज्जैन के मुकुल खण्डेलवाल उपस्थित थे। वागर्चन विधि के पश्चात् उपर्युक्त विद्वानों के साथ कालिदास अकादमी परिसर में महाकवि कालिदास जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया तथा कालिदास विरचित ग्रंथों का पूजन किया गया। तत्पश्चात् विद्वत् संगोष्ठी आयोजित की गई जिसके मुख्य अतिथि के रूप में महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति माननीय प्रो. सी.जी. विजय कुमार मेनन, सारस्वत अतिथि के रूप में पूर्व कुलपति माननीय डॉ. बालकृष्ण शर्मा उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति माननीय डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने की।
विद्वत् संगोष्ठी में विद्वानों ने कालिदास जी की रचनाओं का संदर्भ देते हुए उनके विचारों के महत्त्व को इंगित किया। सारस्वत अतिथि डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने कहा कि कालिदास ने सभी साहित्य विधाओं में रचना की। उन्होंने विनम्रता के साथ आत्म विश्वास को भी प्रकट किया है। वे जनसामान्य के साथ इतने जुड़े हुए थे कि प्रत्येक को उनके साथ अपनत्व दिखाई देता है। कालिदास साहित्य पर संपूर्ण दुनिया में व्यापक विमर्श हुआ है। उनके साहित्य पर जितनी टीकाएँ, अनुवाद और भाष्य हुए हैं, उतने बहुत कम ही रचनाकारों के साहित्य पर हुए हैं। उनके काव्य में अर्थ की गंभीरता है, जिसे पूरी तरह ग्रहण करना सामान्य व्यक्ति की क्षमताओं से परे है। उन्होंने स्वयं के काव्य के आस्वाद की कसौटियां बताई हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. सी.जी. विजय कुमार मेनन ने अपने उद्बोधन में कहा कि कालिदास की रचनाओं में व्यक्ति स्वयं को देखता है, यही कारण है कि देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने उनका सम्बन्ध अपनी भूमि से माना है। दुनिया में अनेक महाकवि हुए हैं किंतु प्रत्येक व्यक्ति महाकवि कालिदास को अपना मानता है। उनका साहित्य का साहचर्य पाना चाहता है। देश के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने उनका सम्बन्ध अपनी भूमि से माना है।
अध्यक्षता करते हुए प्रभारी कुलपति डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने कहा कि कालिदास के काव्य का प्रतिमान स्वयं उन्हीं का काव्य है। वे इस देश में संस्कृति के साथ प्रेम और गौरव का भाव जागृत करते हैं। उनके लेखन के आधार पर काव्य सिद्धांतों का विकास और संशोधन हुए। उनका काव्य राष्ट्र की सांस्कृतिक और भावात्मक अस्मिता का काव्य है। उन्होंने सदियों पहले राष्ट्रीय सुरक्षा के चित्र उकेरे हैं। वे भूमि, जन और संस्कृति के साथ प्रेम और गौरव का भाव जाग्रत करते हैं। सदियों से चली आ रही निगमागम, पुराख्यान और शास्त्र परम्परा को उन्होंने नई अर्थवत्ता दी। लोक जीवन, चराचर जगत और समग्रता में अंतर्बाह्य प्रकृति के मर्मस्पर्शी चित्रों को उकेरने में उनके जैसा कोई दूसरा समर्थ रचनाकार दिखाई नहीं देता।
विद्वत् संगोष्ठी का संचालन अकादमी की उपनिदेशक डॉ. योगेश्वरी फिरोजिया ने किया। प्रास्ताविक उद्बोधन एवं विद्वानों का सम्मान अकादमी के निदेशक डॉ. गोविन्द गन्धे ने किया। इस अवसर पर डॉ. शुभम् शुक्ला, डॉ. उपेंद्र भार्गव, डॉ. सत्यम् शुक्ला, डॉ. अखिलेश द्विवेदी, डॉ. मीणा, डॉ. महेन्द्र पण्ड्या, डॉ. सर्वेश्वर शर्मा, डॉ. सन्तोष पण्ड्या आदि विद्वान् उपस्थित थे।