क्या ये गर्व-अभिमान की बात है (सच सिर्फ सच) डॉ. लोक सेतिया

क्या ये गर्व-अभिमान की बात है
(सच सिर्फ सच)

डॉ. लोक सेतिया : सभी लोगों को अपनी हैसियत समझा रहा था। बड़े बड़े साधु संतों का करीबी ख़ास होने का दावा कर रहा था। लगता था अधिकांश उसकी बात का लोहा मान रहे थे असलियत को नहीं समझना चाहता था कोई कोई मतलब नहीं पहचान रहे थे। जिनकी बढ़ाई कर रहा था सोचो तो जगहंसाई कर रहा था। तथाकथित महात्मा जी की अधूरी इच्छा पूरी होने वाली है पिछले गुरु जी बनवाते रहे उन्होंने नहीं नया बनवाया कोई आश्रम आदि जल्दी ईमारत बनने वाली है।

मोह माया लोभ त्याग के उपदेशक की कामना बाद में कोई निशानी छोड़ने की मन में रहती है। हज़ारों करोड़ की उनकी आमदनी है भगवान तक पहुंच की बात नहीं बताई सरकार नेताओं तक जान पहचान है। धर्म की शिक्षा क्या कभी संचय करने का उपदेश देती है जनकल्याण गरीब भूखे असहाय का दर्द समझने वाले क्या धनवान होते हैं।

चलते चलते बात शहर के सरकारी विभाग के बाबू लोगों पर होने लगती है। अधिकारी नेताओं को ये लोग राह बताते हैं जो करना चाहो कर सकते हो मिसाल ढूंढ लाते हैं। पार्क सार्वजनिक जगह तालाब गली सड़क फुटपाथ जहां चाहो मलकियत पाने को तरकीब बनाते हैं। भाई भाई मिलकर बांटते हैं शान बढ़ाते हैं। उनको चालाकी जालसाज़ी समझदारी खोपड़ी दिमाग की बात लगती है अंधे लोग रेवड़ियां बांटते हैं अपनो को बार बार खिलाते हैं। पाप की कमाई अधर्म की बात किसको कहते हैं कैसे अनुयाई या ऐसे लोगों के अपने गर्व से उनकी गाथा गाते हैं।

डॉ. लोक सेतिया, विचारक

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