आडवाणी जी को भारत रत्न मिलना राजनीति या राइट चॉइस?

आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। खुद के बोये हुए बीज को अपने जीते जी वटवृक्ष बनते हुए देखना, अपने नेतृत्व में शुरू किए गए एक लगभग असंभव कार्य को अपनी आंखों से परिणत होते हुए देखना बिरलों के ही भाग्य में होता है। आडवाणी जी उन बिरले लोगों में है जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को दो सांसदों वाली पार्टी से अपने दम पर 302 तक पहुंचने देखा है। लौह पुरुष उन नसीब वालों में से हैं जिनके द्वारा स्थापित की गई पार्टी आज विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है और जिसका नेता आज विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता है।

हिंदू हृदय सम्राट नींव के वह पत्थर हैं जिसकी बुनियाद पर आज समस्त सनातनियों के आन, बान और शान का प्रतीक भव्य, दिव्य, नव्य श्री राम मंदिर गर्व से सीना ताने खड़ा है। पूर्व उपप्रधानमंत्री वह अनुभवी माली हैं जिन्होंने मंडल की महीन तलवार से जातियों में काट-बांट-छांट दिए गए हिंदू समाज को रामनामी धागे से कुशलता पूर्वक जोड़ा, उन्हें एकजुट किया।

खांटी स्वयंसेवक लालकृष्ण आडवाणी आधुनिक समाज के वह तुलसीदास हैं जिन्होंने साजिश के तहत सेक्युलरिज्म की कुटिल आड़ में नख-दंत और श्री हीन कर दिए गए हिंदू समाज को अपनी रथ यात्रा के माध्यम से झंझोड़ा और पुनः जागृत किया। आडवाणी जी वह जामवंत हैं जिन्होंने अपने कम लेकिन सटीक शब्दों से अपना बल भूल चुके बजरंगियों को उनका शौर्य याद दिलाया, उन्हें रामकाज हेतु प्रेरित किया।

एक समय राजनीति में अछूत बन चुकी भगवा पार्टी को उन्होंने पहले 13 दिन, फिर तेरह महीने और तत्पश्चात पूरे पांच वर्ष तक ट्रेजरी बेंच पर बैठाया। भारत के लोगों को विश्वास दिलाया कि एक बूढ़ी, थकी पार्टी और एक भृष्ट, अहंकारी परिवार के अलावा भी तमाम योग्य और ईमानदार लोग इस देश में हैं जो सरकार चला सकते हैं तथा देश की बागडोर कुशलता पूर्वक अपने हाथ मे थाम सकते हैं। उनके ही कार्यकाल में भारत अमरीका की दादागीरी को ठेंगा दिखाकर परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बना और भारत पर थोपे गए तमाम प्रतिबंधों का मजबूती से सामना किया।

हालांकि जेहादी जिन्ना को सेक्युलर कहना, कांधार, कारगिल की असफलता और मोदी जी को नेतृत्व देने के लिए आसानी से तैयार न होना उनकी कुछ कमजोरियां भी रहीं। लेकिन कुछ दाग तो चांद पर भी हैं और कुछ आरोप भगवान पर भी हैं। आडवाणी जी तो फिर भी इंसान हैं।

सारांशतः आडवाणी जी वह युगपुरुष हैं जिनके खून और पसीने से रोपी गई राष्ट्रवादियों की पौध आज लहलहा रही है। उनकी विचारधारा का परचम करोड़ों लोगों के दिलों में शान से फहरा रहा है। उनके मार्गदर्शन में कोयले से हीरा बनकर निखरे तमाम शिष्य आज पूरे देश को अपनी चमक से आलोकित कर रहे हैं और अपनी हनक से पूरे विश्व में भारतवर्ष का मान और गौरव बढ़ा रहे हैं।

आडवाणी जी जैसे युगदृष्टा, कुशल संगठनकर्ता, श्रेष्ठ गुरु, ईमानदार राष्ट्रवादी इस देश के, इस भारतवर्ष के सच्चे रत्न हैं। भारत रत्न श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को बहुत बहुत बधाई और उनके स्वस्थ और सानंद जीवन की शुभकामनाएं।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

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