IRES ने विकलांग दिवस पर मनाया 260वां आयुष समृद्धि इंटरनेशनल वेबीनार

कोलकाता : 260वाँ आयुष समृद्धि इंटरनेशनल वेबिनार 260वां विकलांग दिवस के उपलक्ष में ‘आयुष फॉर इम्प्रोविंग क्वालिटी ऑफ़ लाइफ’ विषय पर मनाया गया। इंडिपेंडेंट रिसर्च एथिक्स सोसाइटी, विश्व आयुर्वेद परिषद् , मेड फार्मा, झंडू, इमामी और सभी के सहयोग से संपन्न हुआ। ईश्वर वंदना से आरम्भ करते हुए होस्ट डॉ. पवन कुमार शर्मा ने डॉ. कामेश्वर राव (सुरभि फाउंडेशन, हैदराबाद) को उद्घाटन वक्तव्य के लिए आमंत्रित किया। डॉ. राव खुद एक सफल आयुर्वेद चिकित्सक, सोशल वर्कर हैं उन्होने स्पेशल अबलड (न की हैंडीकैप) लीडरशिप की थीम अपने कार्य और काफी उत्साहजनक बाते बताई! 15% आबादी स्पेशल हैं, शारीरिक और मानसिक विकलांग तो अनेक हैं! उन्होंने डॉ. शर्मा को भी ख़ास धन्यवाद दिया की ऐसे ऐसे विषय पर वो वेबिनार कर रहे हैं।

दूसरे वक्ता डॉ. शहीद मल्लिक यूनानी एक्सपर्ट अलीगढ से थे उन्होंने हिज्माथेरेपी के बारे में बताया। उन्होंने कहा इजीप्ट में सालो पहले, हिप्पोक्रेट्स ने भी इसका उल्लेख किया हैं…इस पद्धति में खून को वैक्यूम प्रेशर से रिलीज़ किया जाता है। जिससे दर्द और अनेको मेटाबोलिक रोग में लाभ मिलता हैं…ये दो प्रकार के हैं ड्राई और वेट…आजकल तो मशीन से किया जाता हैं। उन्होंने एक बहुत अच्छी बात कही विशेषज्ञ कोई भी पैथी का हो, एलोपैथी, यूनानी, आयुर्वेद सबका सर्वोत्तम लिया जाये।

तीसरे वक्ता वैद्य डॉ. चिंतन संगनी कंसलटेंट डॉ. ओर्थोवेद हॉस्पिटल से जुड़े थे… उन्होंने गुजराती कहावत से शुरू किया और विकलांगता के बारे में कहा कि…एक विकलांग को बार-बार याद करवा करके उन्हें कमजोर न करे। ऋतुचर्या के बारे में उन्होंने बताया कि छः ऋतू होती है, आदान और विसर्ग दो काल जिसमे तीन महीने शरीर का बल क्षीण या कम होता है और तीन महीने वृद्धि या बढ़ता हैं…इन ठण्ड के ऋतू में हमे शारीरिक मजबूती के लिए पौष्टिक आहार और व्यवहार करने चाहिए। आयुर्वेद ऋतुचर्या को सरल में समझना हो तो हमारे भारतीय त्योहारों को समझे जैसे मकर संक्रांति में तिल, गुड़, घी और अच्छा खाना, पतंग उड़ाना, थोड़ी एक्सरसाइज, मेहनत…इत्यादि शरीर के लिए अच्छा है। स्नेहन (मालिश) स्वेदन (सका) और भिन्न भिन्न पंचकर्मा थेरेपी आयुर्वेद चिकित्सक की देख-रेख में ले…वैसे ही वसंत ऋतू में गुड़ीपड़वा में तीखा या कड़वा जैसे की नीम का प्रचलन मौसमी इन्फेक्शन से हममे बचाता है। इस ऋतू में आयुर्वेदिय शोधन क्रिया वामन कराया जाता है।

ग्रीष्म ऋतू के त्यौहार में वट सावित्री पूनम हैं…देखिये इसमें वट वृक्ष के छोटे चक्कर लगाए जाते हैं…क्योकि सूर्य की गर्मी से शरीर का बल कम हो रहा होता है। वैसे ही वर्षा ऋतू में श्रवण का उपवास हमारी कमजोर पाचन क्रिया के लिए होती है। शरत ऋतू की पूनम में खीर दूध घी, बढ़ा हुआ पित्त कम करता है…पंचकर्मा में विरेचन क्रिया आयुर्वेद चिकित्सक करते हैं। हम रुग्ण (रोगी) न बने इसीलिए ऋतू संधि दो मौशम के बीच में खास त्यौहार होली, श्राद्ध-गणपति उत्सव, दीपावली का स्वस्थ रहने का महत्व है जो हमे समझना जरूरी है। डॉ. चिंतन ने आज के दिन के उपलक्ष में कहा रसायन जैसे की च्यवनप्राश का सेवन इत्यादि विकलांगों में चिकित्सक के निर्देश में कराये और उन्हें मानसिक सहयोग करें।

चौथे वक्ता वैद्य हृषिकेश नागवेकर उनके मित्र हॉस्पिटल ओर्थोवेद, डोम्बिवली से अपनी बाते रखते हुए कहा कि, हमसब किसी न किसी प्रकार से विकलांग हैं…हमे ईश्वर के उपहार पहचानने हैं…उन्होंने फिल्म तारे ज़मीन पर की बात याद दिलाई और कहा कि हम खास लोगो को सहयोग करे। उन्होंने कहा कि क्यों न ऐसा कुछ हो जिससे विकलांग कम हो… हम कश्यप ऋषि की सोच अच्छे आयुर्वेद के तरीके अपनाये ताकि बच्चे स्वस्थ हो। कश्यप संहिता में गर्भ संस्कार… जिसमे प्रेगनेंसी प्लानिंग से बच्चे होने तक की देखभाल, सामान्य स्वस्थ बच्चे के जन्म के आहार और औषधि को बताया गया है। हमारे 16 संस्कार भी इसी उद्देश्य के है। सुवर्ण प्रशन का जिक्र हुआ, बच्चो को कमजोरी न आये और उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास सही तरीके से हो। हमारे योगासन, शटचक्र का ज्ञान इत्यादि जानने के लिए उन्होंने पंचकर्म का महत्व सहयोग का तथा विकलांगता में फिर उल्लेख किया रासायनिक दवाइयों का।.

खुली चर्चा में डॉ. जगदीश्वर जी ने भी अपने अनुभव व्यक्त किया। मीटिंग कमेंट बॉक्स में दूसरे उपस्थित प्रतिनिधियों ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किया। एक दिल छूने वाली बात, आज के खास दिन में हुई की जो भी खास लोग आए किसी भी मुकाम पर वो पारा ओलंपिक्स हो या अपने-अपने दैनिक जीवन के काम के क्षेत्र में जो भी हासिल किये हम सबको उन्हें दिल से बधाई देनी चाहिए और उन्हें दूसरों के सामने मिसाल बनाये। आइए एक दूसरे का हाथ पकड़ कर हम सभी आगे बढ़े, कमजोरिया को मिटाये! समापन वक्तव्य में प्रो. अग्निहोत्री (हरिद्वार), ने कहा कि आज का वेबिनार एक नया विषय था, हमे सही में विकलांग के बजाय दिव्यांग कहना चाहिए। उन्होंने सभी वक्ताओं का साधुवाद किया, पहले वक्ता के कार्य को अनूठा बताया।

युनानी कुप्पिंगथेरेपी, आयुर्वेद में जनरल हेल्थ सीजनल रिलेशन और डॉ. हृषिकेश जी का फाइनल पॉइंट, दुबारा कहा कि हमें इन्हें मानसिक, शारीरिक, वैचारिक, सामाजिक सहयोग करना चाहिए और देखना चाहिए कि जन्मजात विकलांगता कम से कम हो। कंजेनिटल जनम से और ट्रामा एक्सीडेंट से विकलांग। उन्होंने दिव्यांगों के बारे में अपने क्लीनिकल अनुभव से कहा कि वे बीमार कम होते हैं, वे मानसिक रूप से मजबूत हो जाते हैं अगर उन्हें सही सहयोग मिले तो। उन्हें संवेदना या घृणा न दें, उन्हें आत्मविश्वास और हमारे आयुर्वेद जैसे उत्तम शास्त्रों से सहयोग करे। समाज में जागरूकता से आज वे अपने बराबर से विवाहित जीवन भी जी रहें हैं और अन्य सभी के लिए प्रेरणाश्रोत भी बन रहे हैं! उन्होंने अंत में आज के कार्यक्रम में उपस्थित सभी को और अच्छे काम करने के लिए कहा दिव्य बने सब!

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