भारत का प्रतिनिधि लोक पर्व संजा कृषकों, पशुपालकों और किशोर की कला संस्कृति से हमें जोड़ता है – प्रो. लोहनी
भारतीय लोक और जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति : सामाजिक परिवर्तन, विविध परम्पराएँ और शैलियाँ पर केंद्रित संगोष्ठी में देश – दुनिया के विद्वान एवं अध्येताओं ने भाग लिया
उज्जैन। प्रतिकल्पा सांस्कृतिक संस्था द्वारा विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से आयोजित संजा लोकोत्सव 2023 में पहले दिन भारतीय लोक और जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति : सामाजिक परिवर्तन, विविध परम्पराएँ और शैलियाँ पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। दिनांक 1 अक्टूबर, रविवार को प्रातः 11 बजे से सन्ध्या तक कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन में आयोजित इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी में देश – दुनिया के विद्वान एवं अध्येताओं ने भाग लिया। संगोष्ठी में आमंत्रित अतिथि वक्ताओं में लोक संस्कृतिविद प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी, मेरठ, डॉ. पूरन सहगल, मनासा, प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, उज्जैन, सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो नॉर्वे, डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू, उदयपुर, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, उज्जैन, प्रो. कल्पना गवली, बड़ौदा, डॉ. उमा जोशी, गाजियाबाद उ प्र, डॉ. नारायण व्यास, भोपाल, डॉ. आर.सी. ठाकुर, महिदपुर, डॉ. कला जोशी, इंदौर, विजयेंद्र सिंह आरोण्या, समीक्षा नायक, इंदौर, ईश्वर सिंह चौहान, आगर, ब्रह्मप्रकाश चतुर्वेदी, इंदौर, डॉ. ध्रुवेंद्र सिंह जोधा, भोपाल आदि ने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहनी ने कहा कि संजा पर्व भारत का प्रतिनिधि लोक पर्व है। यह कृषकों, पशुपालकों और किशोर की कला संस्कृति से हमें जोड़ता है। भारत के बाहर तिब्बत, चीन आदि कई क्षेत्रों में ग्रामीण संस्कृति का महत्व बना हुआ है। लोक साहित्य की निधि सभी सभ्यताओं में विद्यमान है।
संगोष्ठी के मुख्य समन्वयक एवं विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने बीज वक्तव्य में कहा कि लोक और जनजातीय संस्कृति में समय के प्रवाह के अनेक संकेत विद्यमान हैं। सभ्यता के बदलाव के साथ युग परिवर्तन के साक्ष्य लोक साहित्य में उपलब्ध हैं। उनके माध्यम से लोक मानस की आकांक्षाओं और वैचारिक बदलाव को देख सकते हैं। लोक एवं जनजातीय साहित्य के जरिए सभी लोगों को परस्पर प्रेम और समानता के सूत्र में बांधने के प्रयास सदियों से जारी हैं।
डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू उदयपुर ने कहा कि जनजाति विरासत का विकास लोक साहित्य के माध्यम से हुआ है। परंपरा के अंग के रूप में विभिन्न पुराण और उपपुराण आगे आए, इन सभी में लोक की सत्ता विद्यमान है। भारत के कई लोक पर्व दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंच गए हैं।
मनासा से पधारे डॉ. पूरन सहगल ने कहा कि संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य बेटियां करती हैं। लोकगीतों में अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संदेश छुपे हुए हैं। लोक गीतों की धुनों के संकलन के साथ-साथ उनमें निहित संदेश को लोगों तक पहुंचाने के प्रयास आवश्यक हैं। डॉ. नारायण व्यास, भोपाल ने कहा कि आदिमानव की कलाकृतियों का सातत्य और विकास भारत के लोक चित्रों में दिखाई देता है।
सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो नार्वे ने कहा कि भारत की लोक संस्कृति अत्यंत समृद्ध है। दुनिया के विभिन्न भागों की संस्कृति पर भारत की कला परंपराओं और संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है। प्रो. कल्पना गवली बड़ौदा ने कहा कि लोक संस्कृति में हमारी संपूर्ण जीवन पद्धति का अवलोकन किया जा सकता है। लोक साहित्य का ऐतिहासिक महत्व है, जिसके माध्यम से अतीत के सूक्ष्म पक्षों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी तीन सत्रों में हुई। विभिन्न सत्रों की अध्यक्षता डॉ. पूरन सहगल मनासा, डॉ. आर.सी. ठाकुर, महिदपुर एवं डॉ. उमा जोशी, गाजियाबाद ने की। देश के विभिन्न राज्यों से आए 25 से अधिक शोधकर्ताओं ने अपने शोध आलेखों का वाचन किया। इन शोध पत्रों में से 10 श्रेष्ठ पत्रों के लिए शोध अध्येताओं को सम्मानित किया गया। इनमें सम्मिलित थे डॉ. सुनीता जैन, प्रोफेसर ज्योति यादव, डॉ. श्वेता पंड्या, मीतू चतुर्वेदी, युगेश द्विवेदी, डॉ. सुदामा सखवार, संगीता मिर्धा, विमल कुमार चौधरी, गुजरात, डॉ. संध्या जैन, इंदौर एवं डॉ. बरखा श्रीवास्तव सांवेर। विजेताओं को अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया।
संस्थाध्यक्ष डॉ. शिव चौरसिया, निदेशक डॉ. पल्लवी किशन एवं संस्था सचिव कुमार किशन ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर उनका सम्मान किया। विभिन्न सत्रों का संचालन प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ. राम सौराष्ट्रीय एवं डॉ. श्वेता पंड्या ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. शिव चौरसिया, डॉ. पल्लवी किशन एवं डॉ. अजय शर्मा ने किया। पहले दिन कालिदास अकादमी में सन्ध्या 7 बजे से बाबूलाल देवड़ा के निर्देशन में लोक नाट्य माच नानी बाई को मायरो एवं मालवी संजा लोक नृत्य रूपक की प्रस्तुति डॉ पल्लवी किशन के निर्देशन में की गई।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. शिव चौरसिया, निदेशक डॉ. पल्लवी किशन, संस्था सचिव कुमार किशन, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. श्वेता पंड्या, डॉ. मोहन बैरागी, सुदामा सखवार, आरती परमार, राम सौराष्ट्रीय, डॉ. भेरूलाल मालवीय, शाजापुर आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। संजा लोकोत्सव के विभिन्न आयोजनों में बड़ी संख्या में संस्कृति कर्मियों, प्रबुद्धजनों, शोधकर्ताओं और कला रसिकों ने भाग लिया।