विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि राष्ट्र का सर्वांगीण विकास हो – कुलपति प्रो. मेनन
समग्र विकास के लिए गुलामी की मानसिकता से मुक्त होना जरूरी – कुलपति प्रो. पांडेय
विकसित भारत 2047: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ : भाषा, साहित्य, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न, श्रेष्ठ प्राध्यापक एवं अध्येता अवार्ड समारोह हुआ
उज्जैन। अक्षरवार्ता अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका एवं संस्था कृष्ण बसंती द्वारा विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में विक्रम विश्वविद्यालय के माधव भवन स्थित शलाका दीर्घा सभागार में अंतरराष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन हुआ। यह संगोष्ठी विकसित भारत 2047: चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ : भाषा, साहित्य, शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति के परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने की। मुख्य अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सी जी विजय कुमार मेनन एवं सारस्वत अतिथि मुम्बई विश्वविद्यालय मुम्बई के आचार्य एवं समालोचक डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय, कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, विशिष्ट अतिथि फिलाडेल्फिया, यूएसए की डॉ. मीरा सिंह, ओस्लो, नॉर्वे के सुरेश चंद्र शुक्ल शरद आलोक, यूके से डॉ. जय वर्मा एवं मॉरीशस से डॉ. विनोद बाला अरुण आदि ने विचार व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सी.जी. विजय कुमार मेनन ने कहा कि विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि राष्ट्र का सर्वांगीण विकास हो। एकात्म मानवता दर्शन की दृष्टि से समग्र और अक्षय विकास आवश्यक है। वर्तमान में त्याग से भोग अधिक बढ़ता जा रहा है। इससे कई प्रकार की समस्याएं सामने आ रही हैं। नई पीढ़ी टेक्नोलॉजी के साथ अध्यात्म के विकास के पथ पर भी आगे आए।
मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. करुणा शंकर उपाध्याय ने कहा कि बुनियादी ढांचा संसाधन की दृष्टि से भारत ने व्यापक प्रगति की है। सामरिक शक्ति की दृष्टि से भारत से आज संपूर्ण दुनिया को अपना लोहा मनवा लिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती जा रही है। आने वाला समय हिंद और हिंदी का है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रोफेसर अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि अपनी विरासत की विस्मृति होने से भारत के सम्मुख समस्याएं पैदा हुई हैं। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौर में हमारी मौलिक और बौद्धिक क्षमता को छीन लिया गया। वर्तमान में हमें गुलामी की मानसिकता से मुक्त होना चाहिए। भारतीय भाषाओं के प्रति स्वाभिमान का भाव होना चाहिए। श्रेष्ठ साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए।
संगोष्ठी के मुख्य समन्वयक विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि विकसित भारत के लिए सभी क्षेत्रों में बदलाव की बयार की जरूरतों और संभावनाओं पर विचार एवं नवाचार आवश्यक है। भारत आने वाले दशकों में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। अनेक महानायकों और शासकों के प्रयत्नों से भारत का समग्र विकास सदियों से होता आ रहा है। वर्तमान में हमें अपने आत्म स्वाभिमान का विस्तार करते हुए सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर भारत की ओर अग्रसर होना होगा।
आयोजन में पद्मश्री डॉ. भगवती लाल राजपुरोहित, कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय, कुलपति प्रो. सी.जी. विजय कुमार मेनन एवं मुम्बई के आचार्य एवं समालोचक डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय को अंतरराष्ट्रीय अक्षरवार्ता शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया। समारोह में प्रो. रामदीन त्यागी, भोपाल, प्रो. अतुल गुप्ता, सन्दीप गोरख साल्वे, महाराष्ट्र, ओमप्रकाश प्रजापति धर्मशाला, किरण बड़ेरिया, रेणु राजेश, अम्बिका प्रसाद, प्रयागराज, राजकुमार चतुर्वेदी, उमरिया, अंजु सिहोरे, डॉ. सलमा शाईन, अखिलेश परमार सहित देश के विभिन्न भागों के श्रेष्ठ प्राध्यापक एवं शोध अध्येता अक्षरवार्ता अवार्ड से सम्मानित किए गए। संस्थागत सम्मान महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन को अर्पित किया गया।
कार्यक्रम में तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. रामदीन त्यागी, प्रो. दीनदयाल बेदिया एवं प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने की। इस संगोष्ठी में विषय से संबंधित विभिन्न ज्ञानानुशासनों से सम्बद्ध शोध पत्र देश दुनिया के विभिन्न भागों से आए प्राध्यापकों और शोधकर्ताओं ने प्रस्तुत किए। इनमें डॉ. अतुल गुप्ता, डॉ. रेणु राकेश, अशोक नगर, दीपेंद्र सिंह सिसोदिया दाहोद, डॉ. अनीता श्रीवास्तव, भोपाल, मौलिक श्रोत्रिय, गुजरात, प्रो. अमित कुमार, दरभंगा, डॉ. विजय कलमधार छिंदवाड़ा आदि सम्मिलित थे।
अक्षरवार्ता के सम्पादक डॉ. मोहन बैरागी ने आयोजन की रूपरेखा और शोध पत्रिका एवं संस्था का परिचय दिया। इस अवसर पर देश दुनिया के अनेक विशेषज्ञ एवं अध्येता ने भाग लिया। कार्यक्रम में डॉ. मोहन बैरागी की दो पुस्तकों, डॉ. सुदामा सखवार की पुस्तक मालवी लोक साहित्य और संस्कृति में व्रत, पर्व और उत्सव और अक्षरवार्ता के विशेषांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह के साथ ही अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कवि अशोक भाटी, डॉ. शशांक दुबे, संतोष सुपेकर एवं डॉ. मोहन बैरागी ने रचना पाठ किया।
अतिथियों का स्वागत डॉ. मोहन बैरागी, डॉ. रूपाली सारये, ओमप्रकाश वैष्णव आदि ने किया। प्रबुद्ध जनों, शिक्षकों, गणमान्य नागरिकों और शोधकर्ताओं ने बड़ी संख्या में इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में भाग लिया। संचालन प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. मोहन बैरागी ने किया।
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