विनय सिंह बैस, नई दिल्ली । जंबूद्वीप भारत खंड के उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के बरी नामक गांव में एक बार भागवत कथा हो रही थी। गुरुजी प्रवचन कर रहे थे-
“भक्तों दारू से दिल ना लगाना। शराब सिर्फ मन ही नहीं आत्मा का नाश करती है। पैसा, इज्जत सब कुछ बर्बाद कर देती है।
तो भक्तों आज से सब लोग कसम लो कि दारू को हाथ नहीं लगाओगे। ”
भक्तजन -“एक स्वर से- गुरु जी हम आज से शपथ लेते हैं कि दारु को हाथ नहीं लगाएंगे।”
“बहुत बढ़िया। अब अगली कथा सुनाता हूँ।——–” गुरुजी बस इतना ही बोल पाए कि भक्तजन देखते हैं कि एक युवा व्यक्ति लड़खड़ाता हुआ कथा-स्थल की ओर चला आ रहा है और गुनगुना रहा है -“जो थोड़ी सी पी ली है।
चोरी तो नहीं की है, डाका तो नहीं डाला।”
थोड़ा और पास आने पर लोगों ने पाया कि यह तो कथा वाले गुरुजी का ही बेटा है और इससे पहले कि लोग कुछ कहते या करते गुरुजी का बेटा पास की नाली में गिर पड़ा। हालांकि उसने गजल गुनगुनाना नहीं छोड़ा।
तभी पता नहीं कहां से एक कुत्तिया आ गई और उस युवा गजल प्रेमी का मुंह चाटने लगी। गुरुजी के बेटे ने प्यार के बदले प्यार किया और कुतिया की पीठ पर हौले से हाथ फिराया और धीरे-धीरे उनका हाथ पूंछ तक पहुंच गया और वह मदिरा प्रेमी व्यक्ति पूंछ हाथ में आते ही चौंक गया –
“पप्पू की मां, तुम हमेशा दो चोटी करती थी। आज एक ही चोटी करके आई हो??”
यह सुनते ही वहां आसपास मौजूद सभी लोग और भक्त जन जोर-जोर से हंसने लगे। कुछ ने आगे बढ़कर गुरु जी से ही प्रश्न कर डाला।
“गुरुजी आप खुद तो दुनिया भर को मद्यपान न करने की सलाह दे रहे हैं और आपका खुद का बेटा इतना बड़ा नशेड़ी है कि वह कुतिया की पूंछ और पप्पू की मां की चोटी में अंतर नहीं जानता है?? ऐसे प्रवचन का क्या लाभ??”
गुरुजी कुछ देर शांत रहे फिर गंभीर स्वर में बोले-“मेरा बेटा मुझसे भी बड़ा उपदेशक है।”
लोग बोल पड़े -” गुरुजी, आप भी कितना घटिया मजाक करते हो। यह नशेड़ी जिसे दीन दुनिया का पता नहीं चल रहा,आपसे बड़ा उपदेशक कैसे हो गया??”
गुरुजी जी निर्लिप्त भाव से बोले-” मैं थ्योरी सुनाता हूं, वह प्रैक्टिकल करके दिखाता है। मैं बस कहता हूं कि शराब पीना हानिकारक है। वह करके दिखाता है कि शराब पीना सचमुच कितना अधिक हानिकारक है। बताओ वह मुझसे बड़ा उपदेशक हुआ या नहीं?”
भक्तगण निरुत्तर हो गए।
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