वाराणसी। इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में पड़ने वाली वह एकादशी है जिसका व्रत करने से आपके लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं। इंदिरा एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करने और पूजा करने से आपके पितरों को भी मुक्ति मिलती है। उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इंदिरा एकादशी पितृपक्ष में आने वाली वाली एकादशी को कहते हैं। यह एकादशी इसलिए और खास मानी जाती है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए साथ पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है। ऐसा मानते हैं कि इस दिन ब्राह्मणों को सम्मानपूर्वक घर बुलाकर भोजन करवाने और सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य करने से हमारे पूर्वज हमसे प्रसन्न होते हैं। इंदिरा एकादशी इस साल 10 अक्टूबर को है।
इंदिरा एकादशी का महत्व : इंदिरा एकादशी को लेकर ऐसा माना जाता है जो भी इस एकादशी का व्रत करता है उससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और साथ ही उसे पूर्वजों का भरपूर आशीर्वाद भी मिलता है। शास्त्रों में इंदिरा एकादशी को लेकर ऐसा बताया गया है कि यदि आप इंदिरा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य पितरों को दान करते हैं तो आपके वे पूर्वज जिन्हें किन्हीं कारणों से मुक्ति नहीं मिल पाई है। उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि व्रत करने वाले को भी नरक में नहीं जाना पड़ता है।
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त : इंदिरा एकादशी 9 अक्टूबर को दोपहर में 12 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और 10 अक्टूबर को 3 बजकर 8 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के आधार पर इंदिरा एकादशी का व्रत 10 अक्टूबर, मंगलवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण 11 अक्टूबर को किया जाएगा। व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगा और 8 बजकर 38 मिनट पर खत्म हो जाएगा। इस एकादशी का व्रत करने के बाद व्रतियों को अनाज, फल और सामर्थ्य के अनुसार धन राशि का दान किसी जरूरतमंद ब्राह्मण को करना चाहिए।
इंदिरा एकादशी का व्रत कैसे करें : इंदिरा एकादशी का व्रत पितृपक्ष के दौरान पड़ता है इसलिए व्रतियों को श्राद्ध के भी कुछ नियमों का पालन करने की बात शास्त्रों में कही गई है। व्रत का आरंभ करने से पूर्व दशमी तिथि में पवित्र नदी में तर्पण करें और स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाकर स्वयं भोजन करें। दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। उसके बाद अगले दिन एकादशी तिथि में सुबह जल्दी स्नान करके व्रत का संकल्प लें। श्राद्ध तर्पण करें और फिर से ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। उसके बाद अगले दिन द्वादशी तिथि में दान दक्षिणा देने के बाद ही व्रत का पारण करें। इस दिन व्रत रखकर एकादशी का श्राद्ध और श्रीहरि की पूजा कथा करने से सात पीढ़ियों के पितर पाप मुक्त हो जाते हैं। नरक में गए हुए पितरों का उद्धार हो जाता है।
इंदिरा एकादशी की कथा : सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में इन्द्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा राज्य करता था। वह पुत्र, पौत्र, धन-धान्य आदि से पूर्ण था। उसके शत्रु सदैव उससे भयभीत रहते थे। एक दिन नारद मुनि राजा इंद्रसेन के मृत पिता का संदेश लेकर उनकी सभा में पहुंचे। यहां नारद जी ने बताया कि कुछ दिनों पूर्व जब वह यमलोग गए थे तो उनकी भेंट राजा के पिता से हुई थी। राजा के पिता ने बताया कि जीवन काल में एकादशी का व्रत भंग होने की वजह से उन्हें अभी तक मुक्ति नहीं मिल पाई है। वह अभी भी यमलोक में ही हैं।
इंदिरा एकादशी व्रत से पिता को मिली यमलोक से मुक्ति : राजा इंद्रसेन पिता की इस स्थिति को सुनकर बहुत दुखी हुआ। उसने नारद जी से पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय जाना। नारद जी ने राजा से कहा कि अगर वह अश्विन माह की इंदिरा एकादशी का व्रत करेंगे तो पिता तमाम दोषों से मुक्ति होकर बैंकुठ लोग में जाएंगे। उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। राजा इंद्रसेन इंदिरा एकादशी व्रत को करने के लिए तैयार हो गए नारद जी द्वारा बताई विधि से राजा इंद्रसेन ने व्रत का संकल्प लिया और इंदिरा एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा, पितरों का श्राद्ध, ब्राह्मण को भोजन, दान किया। जिसके फलस्वरूप राजा के पिता को स्वर्ग मिला और साथ ही इंद्रसेन भी मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त हुए।
ज्योर्तिविद वास्तु दैवग्य
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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