भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज दूरदर्शिता, जीवंत उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ नेतृत्व करने में अति सक्षम है

शिक्षण संस्थाओं व सामाजिक पंचायतों में नेतृत्व स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना समय की मांग
शिक्षा क्षेत्र की परीक्षाओं में महिलाओं के बढ़ते बेस्ट परफॉर्मेंस को रेखांकित कर, उनको नेतृत्व की दिशा में प्रोत्साहित करना समय की मांग- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत एक ऐसा पहला देश है जहां राष्ट्रपति से लेकर पंचायत समिति तक के हर संवैधानिक पद पर महिलाएं नेतृत्व करने में सशक्त सिद्ध हुई है, जिसे पूरी दुनियंत ने रेखांकित किया है। इतना ही नहीं आज पूरे विश्व में भारतीय मूल की महिलाएं अपनी सफलताओं का डंका बजा रही है।अमरीका की उपराष्ट्रपति से लेकर पूरे विश्व के अनेक देशों में, अनेक संवैधानिक पदों पर मूल भारतीयों की नियुक्ति हुई हैं। भारत में हम देख रहे हैं कि शैक्षणिक एकेडमिक परीक्षाओं से लेकर प्रबंधकीय, प्रौद्योगिकी, शासकीय, अर्थशास्त्रीय व निजी स्तर की करीब हर परीक्षा में हमें टॉपर के रूप में महिलाएं ही दिखती है। इतना ही नहीं महिलाओं का पासिंग प्रतिशत पुरुषों की अपेक्षा अधिक रहता है जो हम कक्षा10 की परीक्षा से लेकर अनेक स्तरों की परीक्षाओं में देख चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज महिलाओं की इंटेलिजेंस पुरुषों से कुछ हद तक अधिक सिद्ध होते जा रही है जिसे रेखांकित करना समय की मांग है। उसे पर भी सोने पर सुहागा सितंबर 2023 में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होकर नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023 अब कानून बन चुका है जिसको महिलाएं की भागीदारी 33 प्रतिशत कर दी गई है।

परंतु आज की स्थिति में अनेक सामाजिक पंचायतों शिक्षण संस्थानों व कुछ सेवा समितियों में केवल संस्थापकों का ही राज चल रहा है, महिलाओं की भागीदारी को तो दूर की बात है उनके संस्थानों में महिलाएं सदस्य तक नहीं होती, तो कई दौड़ते कम सेवा समितियां तो केवल प्राइवेट लिमिटेड समितियां तक होती है, केवल अपने परिवार वालों व सहयोगियों को ही सदस्यता दी जाती है और क्षेत्रीय नेताओं विधायकों से एंबुलेंस या अन्य सुविधाओं के लिए फंड की अपेक्षा की जाती है। वैसे ही अनेक ऐसी शैक्षणिक संस्थाएं भी है जिनकी कार्यकारिणी में महिलाओं की भागीदारी नगण्य रूप है केवल अपने-अपने समर्थन या फिर सिफारिशी डमी सदस्यों को कार्यकारणी में लिया जाता है, जिनकी नकेल संस्थापक जैसे व्यक्ति के हाथ में होती है जिसे हर समाज ने रेखांकित करना जरूरी है। अब समय आ गया है कि सामाजिक सेवा संस्थाओं का नेतृत्व महिलाओं को देने की कोशिश कर अपने निस्वार्थ सेवा को सिद्ध करें। चूंकि, भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज दूरदर्शिता, जीवंत उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ नेतृत्व करने में अति सक्षम है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे शिक्षा क्षेत्र की परीक्षाओं में महिलाओं के बढ़ते बेस्ट परफॉर्मेंस को रेखांकित कर उनके नेतृत्व की दिशा में प्रोत्साहित करना समय की मांग है।

साथियों बात अगर हम वर्तमान महिला नेतृत्व की करें तो, भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता जीवन्त उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं, बल्कि इस रौशनी की लौ भी हैं। आदि अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से लेकर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बडे़ उदाहरण स्थापित किए है। 2030 तक पृथ्वी को मानवता के लिए स्वर्ग समान जगह बनाने के लिए भारत सतत विकास लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ चला है। लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण करना सतत विकास लक्ष्यों में एक प्रमुखता है। वर्तमान में प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण, समावेशी आर्थिक और सामाजिक विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है। महिलाओं में जन्मजात नेतृत्व गुण समाज के लिए संपत्ति हैं।

प्रसिद्ध अमेरिकी धार्मिक नेता ब्रिघम यंग ने ठीक ही कहा है कि जब हम एक आदमी को शिक्षित करते हैं, तो हम एक आदमी को शिक्षित करते हैं। जब हम एक महिला को शिक्षित करते हैं तो हम एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं। इसलिए, यह उस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता थी। भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है। आनंदीबाई गोपालराव जोशी (1865-1887) पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में दो साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक रही है। सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी। हरियाणा की संतोष यादव ने दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह किया। बॉक्सर एम.सी. मैरी कॉम एक जाना पहचाना नाम है।

हाल के वर्षों में, हमने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का प्रबंधन करते हुए भी देखा है। अरुंधति भट्टाचार्य, एसबीआई की पहली महिला अध्यक्ष, अलका मित्तल, ओएनजीसी की पहली महिला सीएमडी, सोमा मंडल, सेल अध्यक्ष कुछ और नामचीन महिलाएं हैं, जिन्होनें विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। कोविड-19 के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में महिला डाक्टरों, नर्सो, आशा वर्करों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए मरीजों को सेवाएं दी है। कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। भारत बायोटेक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन विकसित करने में उनकी शानदार भूमिका के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है। महिमा दतला, एमडी, बायोलॉजिकल ई, ने 12-18 वर्ष की आयु के लोगों को दी जाने वाली कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया। निस्संदेह, महिलाएं और लड़कियां समाज में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव की अग्रदूत हैं।

साथियों बात अगर हम हर क्षेत्र में महिलाओं की कार्य कुशलता निपुणता की करें तो, ऐतिहासिक रूप से महिलाएँ जीवन के सभी क्षेत्रों में साहस और उत्साह से भाग लेती रही हैं। भारत की शिक्षा व्यवस्था भी इसका अपवाद नहीं है। भारत के पौराणिक ग्रंथों में उच्च शिक्षित महिलाओं का वृहद उल्लेख आता है। यहाँ तक की भारत में शिक्षा की देवी के रूप में एक महिला ही पूजनीय मानी जाती है। प्राचीन भारतीय शिक्षा के ऐतिहासिक प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से देखे जा सकते हैं। उस समय शिक्षा मौखिक दी जाती थी और महिलाओं का उसमें प्रतिनिधित्व होता था। जब भारत में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ तब नालंदा, विक्रमशिला और तक्षशिला जैसे विश्व प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान स्थापित हुए। शोध से विदित होता है कि महिलाएँ भी इन संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करती थीं। ये शिक्षण संस्थान पाँचवी शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक खूब फले-फूले। धर्मशास्त्र, दर्शन, ललित कला, खगोल विज्ञान इत्यादि में महिलाओं की सहभागिता थी।

साथियों बात अगर हम भारतीय मूल की महिलाओं की विदेश में अत्यधिक प्रतिष्ठा और धाक की करें तो, भारतीय मूल की महिलाएं पूरी दुनिया में महत्‍वपूर्ण संवैधानिक पदों पर अपनी क्षमता और काबिलियत का झंडा गाड़ रही हैं। सियासत के इन बड़े नामों पर एक नजर कि महिलाएं भी इसमें पीछे नहीं हैं, वह अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे, डेनमार्क, न्‍यूजीलैंड की राजनीति में न सिर्फ सक्रिय रही हैं, बल्कि वहां की संसद में और महत्‍वपूर्ण संवैध‍ानिक पदों तक भी पहुंची हैं। इस फेहरिस्‍त में सबसे नया नाम प्रियंका राधाकृष्‍णन का है, जो जेसिंडा अर्डर्न के मंत्रिमंडल में मंत्री बनी हैं। न्यूज़ीलैंड में हाल ही में अपार बहुमत से जीत हासिल करने वाली प्रधानमंत्री जैसिंडा आर्डर्न ने भारतीय मूल की प्रियंका राधाकृष्णन को अपनी कैबिनेट में शामिल किया है। न्‍यूजीलैंड के इतिहास में यह पहली बार है कि भारतीय मूल की किसी महिला को मंत्रिमंडल में स्‍थान मिला है। अक्‍तूबर, 1964 को जन्‍मी कमला देवी हैरिस अमेरिका की राजनीति में सक्रिय महिला राजनेता हैं। अमेरिकी सीनेट में शामिल होने वाली वह भारतीय मूल की पहली महिला हैं। इस समय सीनेट की सदस्‍य और 2020 के अमेरिकी चुनावों में उपराष्‍ट्रपति पद की उम्‍मीदवार हैं। 2016 में पहली बार डेमोक्रेटिक पार्टी से सीनेट सदस्‍य बनीं और सीनेट में कैलिफोर्निया का प्रतिनिधित्‍व किया। इसके पहले 2011 से 2017 तक वह स्‍टेट अटॉर्नी जरनल भी रहीं। अमेरिका में भारतीय मूल की बड़ी आबादी और वोट बैंक को देखते हुए डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस साल हो रहे चुनावों में उन्‍हें राष्‍ट्रपति पद का उम्‍मीदवार बनाया है।

त्रिनिदाद एंड टोबैगो की पहली महिला प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर भारतीय मूल की हैं। वे न सिर्फ भारतीय मूल की, बल्कि त्रिनिदाद के इतिहास में प्रधानमंत्री बनने वाली पहली महिला हैं। वे 2010 से 2015 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं। प्रीति सुशील पटेल ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और ब्रिटेन की मौजूदा गृह सचिव हैं। वे 2010 से एसेक्स में विथम से सांसद हैं। पटेल वर्ष 2016 से 2017 तक अंतर्राष्ट्रीय विकास सचिव भी रहीं। वह ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी से ताल्‍लुक रखती हैं। दुनिया की ताकतवर राजनीतिक शख्सियतों में एक बड़ा नाम निक्‍की हेली का भी है। उनका पूरा नाम निम्रता निक्की रंधावा हेली है। रिपब्लिकन पार्टी की सदस्‍य हेली 2011 से 2017 के बीच अमेरिका के साउथ कैरोलाइना प्रांत की गवर्नर रहीं। यह गौरव पाने वाली वह पहली भारतीय महिला हैं। भारतीय मूल की अनिता इंदिरा कनाडा की सरकार में पब्लिक सर्विस और प्रोक्‍योरमेंट मंत्री हाउस ऑफ कॉमन्‍स में वो ऑकविले का प्रतिनिधित्‍व कर रही हैं।

साथियों बात अगर हम भारत में महिलाओं की अपार योग्यता की करें तो महिलाएं आज देश के सर्वोच्च और सशक्त पदों पर कार्यरत हैं। आजादी के समय महिलाओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद कराया था। उसके बाद भारतीय संविधान निर्माण में अपना योगदान दिया। उन दिनों संविधान सभा में 15 महिलाएं शामिल थीं। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। आज राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी कई गुना बढ़ गई है परंतु जिस स्थिति में होना चाहिए उस अनुकूल नहीं है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवंत उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ नेतृत्व करने में अति सक्षम है। शिक्षण संस्थाओं व सामाजिक पंचायतों में नेतृत्व स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना समय की मांग। शिक्षा क्षेत्र की परीक्षाओं में महिलाओं के बढ़ते बेस्ट परफॉर्मेंस को रेखांकित कर, उनको नेतृत्व की दिशा में प्रोत्साहित करना समय की मांग है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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