अमेरिका रूस के बीच जिम्मेदार महाशक्ति है भारत!

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से किसी के दबाव में नहीं आने की जिम्मेदार रणनीति का संचालन सराहनीय है
अमेरिकी रूसी निवेशकों का भारत में व्यापार और निवेश करने की रुचि, विकसित भारत की गाथा में सहायक सिद्ध होगी – एडवोकेट किशन भावनानी

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत पिछले कुछ वर्षों से विकसित देशों के निवेशकों, सरकारों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहा है। इसी का नतीजा है कि हम कई स्तरों पर बातचीत से मुक्त व्यापार समझौते की दिशा से नतीज़ों पर पहुंचने की कगार पर हैं। इसमें सोने पर सुहागा भारत को जी-20 की अध्यक्षता, जिसमें विकसित देशों के भारत दौरे, चंद्रयान-3 की दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग, ब्रिटेन को पछाड़कर विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था और अब जर्मनी को पछाड़ने की संभावना पर तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है और अभी 9-10 सितंबर 2023 को जी-10 वैश्विक नेताओं का शिखर सम्मेलन में करीब-करीब 40 देशों के बड़े लीडर, संस्थाओं इत्यादि के शामिल होने के अंदेशे से भारत एक जिम्मेदार महाशक्ति बनकर उभर रहा है। दूसरी ओर भारत की रूस के साथ पारंपरिक मित्रता पीढ़ीयों से रही है। परंतु अब अमेरिका के साथ पिछले वर्षों से तेजी से संबंध प्रगाढ़य हो रहे हैं। जिसके कारण विश्व की दोनों महाशक्तियों के बीच एक अकेला भारत अमेरिका और रूस के बीच जिम्मेदार महाशक्ति शक्ति बनकर उभर रहा है।

क्योंकि हमने रूस यूक्रेन-युद्ध के बीच रूस पर संयुक्तराष्ट्र, नाटो इत्यादि द्वारा प्रतिबंधों के बावजूद भारत द्वारा तैलीय पदार्थ रूस से खरीद रहा है। जिस पर संयुक्तराष्ट्र, अमेरिका मौन है। इधर चीन-भारत मामले में रूस, भारत का पक्ष लेकर हस्तक्षेप नहीं करने की बात भी पिछले दिनों दोहरा चुका है। इससे यह बात साफ नजर आ रही है के दोनों महाशक्तियों के लिए भारत एक जिम्मेदार महाशक्ति है और दोनों इसीलिए इसके बिना अधूरे हैं। यह महसूस कर हर भारतीय का सीना गर्व से फूल उठा है और भारतीयों के इतने बड़े रुतबे से, अमेरिका रूस चीन आस्ट्रेलिया सहित सभी विकसित देशों में रह रहे, मूल भारतीयों के रुतबे और महत्व को रेखांकित किया जा सकता है। चूंकि भारत में रूस के उप राजदूत ने कहा कि भारत एक जिम्मेदार महाशक्ति है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी केसहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से किसी के दबाव में नहीं आने की जिम्मेदार रणनीति का संचालन सराहनीय है।

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम अमेरिका को भारत की जरूरत की करें तो, अमेरिका को ये एहसास हो गया है कि बढ़ते हुए चीन का मुक़ाबला करने के लिए भारत के साथ सहयोग में बढ़ोतरी आवश्यक है। क्योंकि चीन पहले से ही क्षेत्रीय स्तर पर और उसके आगे अपने महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में भारत की उभरती भूमिका और वैश्विक व्यवस्था की मज़बूती और स्थायित्व में भारत के बढ़ते योगदान को किस तरह से देखा जाना चाहिए? वो कौन से मुद्दे और चुनौतियां हैं जो भारत की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय भूमिका के ख़िलाफ हैं और जिस वक़्त भारत एक महत्वपूर्ण वैश्विक किरदार के तौर पर लगातार बदल रहा है तो उसे किन अवसरों का लाभ उठाना चाहिए? भारत और अमेरिका के बीच संबंधों की सामरिक स्थिति इन सवालों पर विचार करने के लिए एक उपयोगी नजर प्रदान करती है।

साथियों बात अगर हम भारत अमेरिका के संबंधों की रूपरेखा की करें तो, अमेरिकी हितों के लिए भारत के निर्विवाद क्षेत्रीय और वैश्विक महत्व के बावजूद कई दशकों से अमेरिका द्विपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग को और गहरा करने के लिए प्रमुख क्षेत्रों पर विचार करने को तैयार नहीं था। इसका बड़ा कारण भारत के पास परमाणु हथियार का होना था। लेकिन साल 2000 के बाद के शुरुआती वर्षों में अमेरिका ने भारत के साथ एक सक्रिय और रचनात्मक साझेदारी को कई मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए आवश्यक मानना शुरू कर दिया। उदाहरण के लिए, आतंक के ख़िलाफ अमेरिका का वैश्विक युद्ध भारत के द्वारा अपने संगठित आतंकवाद के खतरे के ख़िलाफ लड़ाई से जुड़ गया। इसने दोनों देशों को खुफिया सूचना, क़ानून लागू करने और सैन्य संबंधों में ज़्यादा सहयोग के लिए एक व्यावहारिक मंच दिया। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच साइबर सुरक्षा सहयोग में लगातार बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, अमेरिका को ये एहसास हो गया है कि बढ़ते हुए चीन का मुक़ाबला करने के लिए भारत के साथ सहयोग में बढ़ोतरी आवश्यक है।

क्योंकि चीन पहले से ही क्षेत्रीय स्तर पर और उसके आगे अपने महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर रहा है। अपनी तरफ से भारत ने काफ़ी पहले ये समझ लिया था कि चीन का प्रमुख सामरिक लक्ष्य ख़ुद को अमेरिका की जगह एशिया में सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा ताकत के रूप में स्थापित करना है और इससे भी बढ़कर अमेरिका के द्वारा तय की जाने वाली मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देना है। इसके साथ-साथ भारत ये भी जानता है कि चीन की सामरिक आकांक्षा को नियंत्रण में लाने के लिए अमेरिका की मजबूत क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिति महत्वपूर्ण है। पिछले दो दशकों के दौरान भारत-अमेरिका के बीच संबंध का लगभग हर सोचने योग्य आयाम में विस्तार हो चुका है- राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य- हालांकि ये विस्तार साथियों के तौर पर नहीं बल्कि समानांतर यात्रा पर चल रहे जोड़ीदार यात्रियों की तरह हुआ है।

साथियों बात अगर हम अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में भारत की भूमिका की करें तो, भारत पर नजर रखने वाले समीक्षक लंबे समय से विश्व मंच पर भारत के बढ़ते महत्व की उम्मीद रख रहे हैं। भारत को सही ढंग से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विशाल जनसंख्या, संसाधनों से भरपूर, बेहद स्वाभिमानी और अपने 140 करोड़ नागरिकों के हालात को बदलने में निर्विवाद रूप से सफल वैश्विक मुद्दों पर स्वतंत्र नीति की भारत की परंपरा के कारण शीत युद्ध के समय से कई दशक बीतने के बाद भी उसके हितों को लाभ हुआ है। आज विश्व समुदाय जिन महत्वपूर्ण मुद्दों का सामना कर रहा है, उनमें भारत एक प्रतिष्ठित स्थान रखता है।जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, असमानता को दूर करना और बढ़ती वैश्विक जनसंख्या को समर्थन देने, शिक्षित करने, रोजगार प्रदान करने के लिए मजबूत वैश्विक अर्थव्यवस्था को चुनौती। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत ने संयुक्त राष्ट्र और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक स्थायी बल के तौर पर सेवा दी है।

भारत ने कुशलता से अमेरिका-रूस संबंधों के अक्सर खराब दौर में ख़ुदको सुरक्षित रखा है। विकासशील विश्व की अनगिनत चुनौतियों को देखा है और साइबर युग के झूठे वादों एवं जोख़िमों से लड़ाई में एक बड़ी आवाज के रूप में उभरा है। ये सभी चीज़ें भारत तब कर रहा है जब वो घरेलू स्तर पर पाकिस्तान और चीन से निपटने में बेहद व्यस्त है। आंतरिक तौर पर भारत की चुनौतियां न सिर्फ़ बहुत ज़्यादा है बल्कि कई बार ख़ुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ज़्यादा ताक़तवर दिखाने की उसकी योजना के लिए रुकावट भी हैं। भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को काफ़ी सांप्रदायिक घृणा से प्रभावित किया गया है और भारत की शासन व्यवस्था से जुड़े संस्थान भारी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक ज़िम्मेदारियों के सामने लंबे समय से कमज़ोर हैं। इसके अलावा भारत को स्थायी ग्रामीण गरीबी और बढ़ती शिक्षित और शहरी जनसंख्या, जो हर महीने काम की तलाश करनेवाले 10 लाख से ज़्यादा लोगों को अर्थव्यवस्था में डालती है, से भी मुक़ाबला करना पड़ रहा है।

अनगिनत दूसरी चुनौतियों के साथ ये चुनौतियां भारत की राह में रुकावट डालती हैं। इसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस भूमिका को भारत अदा करना चाहता है और जिसके योग्य वो है भी, उसे वो दृढ़तापूर्वक नहीं रख पा रहा है। भारत ने कुशलता से अमेरिका रूस संबंधों के अक्सर खराब दौर में ख़ुद को सुरक्षित रखा है, विकासशील विश्व की अनगिनत चुनौतियों को देखा है और साइबर युग के झूठे वादों एवं जोख़िमों से लड़ाई में एक बड़ी आवाज़ के रूप में उभरा है। भारत ने कुशलता से अमेरिका-रूस संबंधों के अक्सर ख़राब दौर में ख़ुद को सुरक्षित रखा है, विकासशील विश्व की अनगिनत चुनौतियों को देखा है और साइबर युग के झूठे वादों एवं जोख़िमों से लड़ाई में एक बड़ी आवाज़ के रूप में उभरा है। आगे बढ़ने के लिए भारत को अंतर्राष्ट्रीय नेतृत्व के प्रति अपने रवैये का जरूर विरोध करना चाहिए। भारत का रवैया परंपरागत तौर पर निष्क्रिय रहा है, सक्रिय होने के बदले प्रतिक्रियात्मक रहा है।

साथियों बात अगर हम चीनी उप राजदूत द्वारा कुछ दिनों पहले एक चैनल को दिए इंटरव्यू की करें तो, भारत और अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों पर उन्होंने कहा कि भारत एक जिम्‍मेदार महाशक्ति है। भारत की विदेश नीति स्‍वतंत्र है। वह किसी के दबाव में नहीं आता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका कई मोर्चों पर मिलकर काम कर रहे हैं। यूक्रेन के साथ चल रहे संघर्ष के बीच रूस ने भारत को लेकर बड़ा बयान दिया है, रूस ने एक बार फिर कहा है कि भारत हमारे लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि रूस कभी भी भारत-चीन सीमा तनाव से फायदा नहीं उठाना चाहता। एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में रूस के उप राजदूत ने कहा कि भारत और रूस के बीच दोस्ती ऐतिहासिक है और यह बनी रहेगी। रूस चाहता है कि भारत ऐसे ही तरक्की की राह पर अग्रसर रहे। दोनों देशों के बीच सहयोग हमेशा बराबर का रहा है। उन्होंने आगे कहा कि भारत और रूस दोनों ही देश आज एक बहुध्रुव‍ीय विश्‍व प्रणाली बनाना चाहते हैं, जहां सभी के साथ बराबरी का और न्‍यायपूर्ण व्‍यवहार हो।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत और चीन के बीच एक भू-राजनीतिक मुद्दा है और रूस इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहता था। हालांकि दोनों देशों से संबंध हमारे लिए बेहद ही महत्वपूर्ण हैं। आगे कहा कि भारत के साथ रूस की दोस्ती दुनिया के लिए मिसाल बन सकती है। रूस की विदेश नीति में भारत प्राथमिक देशों में सबसे ऊंचा है। आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन से रूस की अपेक्षाओं पर बाबुश्किन ने कहा कि हम सभी देशों के लिए समान विकास चाहते हैं। रूस और भारत के बीच व्यापारिक संबंधों पर उन्होंने कहा कि रूस हमेशा मेक इन इंडिया मिशन का समर्थन करेगा। रूसी निवेशक भारत में व्यापार करने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। भारत और अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों पर कहा कि भारत एक जिम्‍मेदार महाशक्ति है। भारत की विदेश नीति स्‍वतंत्र है। वह किसी के दबाव में नहीं आता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका कई मोर्चों पर मिलकर काम कर रहे हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे अमेरिका रूस के बीच जिम्मेदार महाशक्ति है भारत! भारत की स्वतंत्र विदेश नीति से किसी के दबाव में नहीं आने की जिम्मेदार रणनीति का संचालन सराहनीय है।अमेरिकी रूसी निवेशकों का भारत में व्यापार और निवेश करने की रुचि, विकसित भारत की गाथा में सहायक सिद्ध होगी।

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