भारत दे रहा है चीन को मात- वैश्विक खिलौना कंपनियां चीन को छोड़ भारत पर ध्यान दे रही है

एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत, खिलौने के जरिए भारतीय संस्कृति और संस्कारों को बढ़ावा मिल रहा है
खिलौने के लिए भारत की चीन पर निर्भरता बहुत कम होकर निर्यात बाजारों में जाना परिवर्तनकारी बदलाव और आशाजनक संभावनाओं को रेखांकित करता है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत हर क्षेत्र में तेजी से विकास कर रहा है, जिसकी रिपोर्ट उन हर क्षेत्र से आ रही है। अभी हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में जानकारी आई कि भारत खिलौना बाजार क्षेत्र में चीन को मार देने के करीब पहुंच गया है, जिसमें जानकारी आई है कि 2015 से 2023 वित्त वर्ष के बीच करीब 239 प्रतिशत की निर्यात में भारी वृद्धि हुई है तथा आयात में 52 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है जो रेखांकित करने वाली बात है। असल में अभी भारत में खिलौने बनाने के बाद भारतीय मानक ब्यूरो की अनुमति लेना अनिवार्य हो गया है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि खिलौनो की गुणवत्ता पर नजर रखी जा सके। जिसका परिणाम यह हुआ है कि भारतीय खिलौनो की गुणवत्ता चीन सहित दुनियां के अन्य देशों से अति उत्तम पाई गई है जिससे भारत का निर्यात बढ़ गया है और आयात में भी भारी कमी आई है, जिसका सीधा असर खिलौना क्षेत्र के विकास पर पड़ा है नतीजा यह है कि विश्व की अनेक खिलौना कंपनियों की नजर अब भारत पर आन पड़ी है। चुंकि भारत दे रहा है चीन को मात, वैश्विक खिलौना कंपनियां चीन को छोड़ भारत पर ध्यान दे रही है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे। खिलौनों के लिए भारत की चीन पर निर्भरता बहुत कम होकर निर्यात बाजारों में जाना परिवर्तनकारी बदलाव और आशाजनक संभावना को रेखांकित करता है।

साथियों बात अगर हम दिनांक 17 मार्च 2024 को आई एक रिपोर्ट की करें तो, वैश्विक खिलौना उद्योग में चीन से भारत की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा रहा है, जिसके लिए प्रमुख खिलाड़ियों द्वारा नियामक आवश्यकताओं संरक्षणवाद और रणनीतिक व्यापार निर्णयों सहित विभिन्न कारक जिम्मेदार हैं। खिलौना विनिर्माण क्षेत्र में चीन के लिए जो बात नुकसान वाली हो सकती है, वह भारत के लिए फायदे का सौदा साबित हो रही है। भारत के खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 15 और वित्त वर्ष 23 के बीच तेजी से प्रगति की है और निर्यात में 239 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई तथा आयात में 52 प्रतिशत तक की गिरावट आई। इसके परिणामस्वरूप देश शुद्ध निर्यातक बन गया।भारत में खिलौनों की बिक्री के लिए भारतीय मानक ब्यूरो की मंजूरी जरूरी होना, संरक्षणवाद, चीन-प्लस-वन रणनीति और मूल सीमा शुल्क बढ़ाकर 70 प्रतिशत किए जाने से भारत के खिलौना उद्योग में तेजी आई है।

उद्योग के भागीदारों के अनुसार हालांकि हैस्ब्रो, मैटल, स्पिन मास्टर और अर्ली लर्निंग सेंटर जैसे वैश्विक ब्रांड आपूर्ति के लिए देश पर अधिक निर्भर हैं, लेकिन इटली की दिग्गज कंपनी ड्रीम प्लास्ट, माइक्रोप्लास्ट और इंकास जैसी प्रमुख विनिर्माता अपना ध्यान धीरे-धीरे चीन से भारत पर केंद्रित कर रहीं हैं। बीआईएस के नियमन से पहले खिलौनों के लिए भारत की चीन पर 80 प्रतिशत निर्भरता थी, जो अब कम हो गई है। कंपनी हैसब्रो, स्पिन मास्टर, अर्ली लर्निंग सेंटर, फ्लेयर और ड्रूमोंड पार्क गेम्स जैसी अंतरराष्ट्रीय खिलौना कंपनियों को भी आपूर्ति करती है।कंपनी द्वारा उत्पादित करीब 60 प्रतिशत उत्पाद अब निर्यात बाजारों की जरूरतें पूरी कर रहे हैं, जिनमें अमेरिका में जीसीसी, यूरोप के 33 देश शामिल हैं। एक जानकार ने कहा कि बीआईएस जैसे सरकारी नीतिगत समर्थन के साथ यह निर्यात जल्द ही 40 से ज्यादा देशों को किया जाएगा। बाज़ार अनुमान और विकास पथ मार्केट रिसर्च फर्म की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में खिलौना उद्योग का मूल्य 2023 में 1.7 बिलियन डॉलर था और 2032 तक 4.4 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 10.6 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर दर्शाता है। यह प्रक्षेपवक्र भारत के खिलौना विनिर्माण क्षेत्र के लिए परिवर्तनकारी बदलाव और आशाजनक संभावनाओं को रेखांकित करता है।

साथियों बात अगर हम माननीय पीएम के एक भारत श्रेष्ठ भारत स्वदेशी खिलौनों में रुचि और उसका प्रभाव संस्कृति और संस्कारों में वृद्धि की करें तो, पीएम द्वारा खुद स्‍वदेशी खिलौनों में रुचि लिए जाने और एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत के तहत खिलौनों के जरिए भारतीय संस्‍कृति और संस्‍कारों को बढावा देने के आह्वान के बाद देश में खिलौना उद्योग के फिर से फलने-फूलने के दिन आते दिख रहे हैं। इस कड़ी में सरदार वल्‍लभ भाई पटेल, छत्रपति शिवाजी, रानी लक्ष्‍मीबाई परमवीर चक्र विजेता योद्धाओं आदि के अलावा भारतीय संस्‍कृति से जुड़े मूल्‍यों, योग आदि पर आधारित खिलौनों को प्रोत्‍साहित करने के लिए केंद्रीय उद्योग व व्‍यापार संवर्धन विभाग नौ विभिन्‍न मंत्रालयों के साथ मिलकर काम कर रहा है। देश के विभिन्न राज्यों में हुए हुनर हाट मेले में लोगों को लुभाएंगे स्वदेशी खिलौने। इसके जरिए दस्तकारों एवं खिलौना कारीगरों को भी बड़े बाजार तक पहुंचने का मौका मिला। मेले में 30 प्रतिशत से अधिक स्टॉल स्वदेशी खिलौनों के कारीगरों के लिए आरशित थे।

भारत के घरेलू खिलौना उद्योग का समृद्धशाली इतिहास रहा है। उत्तर प्रदेश, बंगाल, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में सदियों से दस्तकार शिल्पी अपने हाथों से आकर्षक खिलौने बनाते आ रहे हैं। बदलते वक्‍त के साथ वे तकनीक का प्रयोग भी कर रहे हैं। सुखद यह भी है कि अब नए स्टार्टअप खिलौना निर्माण से जुड़ रहे हैं। उन्होंने खिलौनों में नवाचार कर स्वयं को बाजार में स्थापित किया है। एक दौर था जब इतने इलेक्ट्रॉनिक गैजेट या आधुनिक खिलौने नहीं थे। बच्चे फर्श पर चॉक से लकीरें खींचकर, डायस की जगह इमली के बीज से बोर्ड गेम खेल लिया करते थे। वे गुल्ली डंडा, लट्टू, पचीसी और न जाने क्या-क्या खेलते था। उद्देश्य एक होता था, दो से तीन घंटे घर से बाहर मैदान या खुले आसमान के नीचे खेलना। मजे करना। लेकिन आज के दौर में ज्यादातर बच्चे वर्चुअल दुनियां में अकेले ही सारे गेम्स खेल रहे हैं। उनके पास खिलौनों के सीमित विकल्प रह गए हैं। सुरक्षा एवं अन्य कारणों से अभिभावक भी उन्हें कुछेक बड़े ब्रांड्स के खिलौने देना ही उचित समझते हैं। लड़कियों के लिए किचन सेट, बार्बी डॉल और लड़कों के लिए गन या मोटरबाइक तय मान लिया गया है, जबकि खिलौनों से बच्चों का ईक्यू (इमोशनल कनेक्ट) यानी भावनात्‍मक रिश्‍ता मजबूत होता है।

साथियों बात अगर हम भारत द्वारा खिलौना क्षेत्र में चीन को मार देने की करें तो, भारत खिलौनों के निर्माण में 1.5 अरब डॉलर का आंकड़ा हासिल करके बहुत जल्द चीन को पीछे छोड़ने वाला है। इंटरनेशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च एंड कंसल्टिंग ग्रुप के मुताबिक 2028 तक खिलौने का निर्माण दोगुना होकर 3.3 अरब डॉलर होने की भी संभवाना है। रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले 3.5 सालों में खिलौनों का इंपोर्ट (बाहर के देश से कोई सामना लाना) में 70 प्रतिशत तक गिरावट आई है। वहीं खिलौनों के निर्माण में 61.3 प्रतिशत की वृद्धि आई है। वहीं उम्मीद है कि आने वाले समय में भारत में खिलौनों का निर्माण 12 प्रतिशत तक और बढ़ेगा।भारत में पहली बार साल 23 जनवरी 2009 को मुख्य रूप से चाइना के खिलौनों को इसमें पाए जाने वाले विषाक्तता पदार्थ जैसे लीड और हानिकारक पेंन्ट के कारण प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन 6 मार्च 2009 को ये प्रतिबंध उठा दिया गया था, हालांकि देश के पीएम ने साल 2017 की 1 सितंबर को इस पर प्रतिबंध लगा दिया। भारत दुनियां भर के 25 प्रतिशत बच्चों का घर है, जिनकी उम्र 0 से 12 साल के बीच है, जिसके चलते यहां खिलौनों की डिमांड भी बहुत ज्यादा है। भारत में 2020 में बेचे गए लगभग 85 प्रतिशत खिलौने आयात किए गए हैं, जिनमें चीन शीर्ष स्रोत है, इसके बाद श्रीलंका, मलेशिया, जर्मनी, हांगकांग और अमेरिका हैं।

भारतीय बाजार में खिलौनों की एक विशाल विविधता उपलब्ध है, जिनको खासकर दो अलग-अलग भागों में बांटा गया है – शैक्षिक और मनोरंजक खिलौने। इन दो श्रेणियों में, शैक्षिक खिलौनों के अंतर्गत प्लास्टिक और कार्डबोर्ड सामग्री से बने विभिन्न खिलौने और खेल प्रमुख हैं, जबकि मनोरंजक खिलौने, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक खिलौने शामिल हैं – रिमोट कंट्रोल, वीडियो गेम, बैटरी चालित खिलौने, कार, प्लास्टिक के खिलौने, गुड़िया, नरम खिलौने और मैकेनिकल पुल बैक खिलौने आधुनिक माता-पिता के बीच लोकप्रिय नहीं हैं। हालांकि, इन सभी खिलौनों में से इलेक्ट्रॉनिक खिलौने और गेम्स के साथ-साथ बैटरी से चलने वाले खिलौने भी भारत में कम बनाए जा रहे हैं। बाज़ारों में अभी भी चीनी उत्पाद बिकते हैं क्योंकि अभी भी इन्हें खरीदार को देखने वाला माना जाता है। भारतीय खिलौने, कम महंगे होने के बावजूद, कथित तौर पर बेहतर गुणवत्ता वाले हैं और अभी तक बाजार में अपनी जगह नहीं बना पाए हैं। ऐसी धारणा है कि आयातित तकनीकी रूप से बेहतर हैं। निर्माताओं का कहना है कि शुरुआती चरणों में प्रतिक्रियाएं सामान्य हैं लेकिन जैसे-जैसे स्वदेशी उत्पादों का प्रसार होगा, धारणा बदल जाएगी। निर्माताओं का मानना ​​है कि हालांकि उन्होंने मुख्य रूप से प्लास्टिक के खिलौने बनाना शुरू कर दिया है क्योंकि यह आसान है, लेकिन उन्हें विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह सिर्फ धातुओं और प्लास्टिक की तरह नहीं है, बल्कि कई खिलौनों के लिए विभिन्न प्रकार के वस्त्रों और अन्य सामानों की आवश्यकता होती है। सहायक उपकरण अभी आने बाकी हैं। कुछ को विशेष प्रकार के टिकाऊ, हल्के और विशेष कपड़े की आवश्यकता होती है। वह भी स्थानीय तौर पर उपलब्ध नहीं है। चीन ने कम लागत वाले इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को भी आगे बढ़ाया है। हालांकि, वे उत्पादन को बनाए रखने के लिए आयात पर प्रतिबंध लगाने के लिए अधिक सरकारी समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं। केपीएमजी फिक्की की रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि जल्द ही देश का बाजार आकार दोगुना होकर 2 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। खिलौना खंड में इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों का हिस्सा करीब दस फीसदी है, उम्मीद है कि इनके बिना भी बाकी खंड बढ़ेगा और धीरे-धीरे महत्वपूर्ण क्षेत्र भी कवर हो जाएंगे।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत दे रहा है चीन को मात, वैश्विक खिलौना कंपनियां चीन को छोड़ भारत पर ध्यान दे रही है। एक भारत श्रेष्ठ भारत के तहत, खिलौने के जरिए भारतीय संस्कृति और संस्कारों को बढ़ावा मिल रहा है। खिलौने के लिए भारत की चीन पर निर्भरता बहुत कम होकर, निर्यात बाजारों में जाना परिवर्तनकारी बदलाव और आशाजनक संभावनाओं को रेखांकित करता है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए आंकड़े/विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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