भारतीय राजनीति में, साइड में सीनियर एक्शन में जूनियर दिखने की प्रबल संभावना!

भारतीय राजनीति में 18वीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में पीढ़ी परिवर्तन देखने को मिल सकता है
भारतीय राजनीति में नई लीडरशिप तैयार हो गई है जिसका असर आगामी 2024 के नए मंत्रिमंडल में देखने को मिल सकनें की संभावना- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां का सबसे बड़ा और गहरा लोकतंत्र भारत है, जहां दुनियां की सबसे अधिक जनसंख्या निवास करती है। इसका एक-एक राज्य पश्चिमी देशों के एक-एक देश के बराबर जनसंख्या वाला देश हो रहा है, जो रेखांकित करने वाली बात है। वहीं पिछले कुछ वर्षों की अवधि देखे तो प्रौद्योगिकी, विज्ञान, तकनीकी, डिजिटाइजेशन सहित सभी क्षेत्रों में तीव्र विकास हुआ है। युवाओं का भारी तबका इसके पीछे मेहनत कर रहा है और उम्रदराज लोग मार्गदर्शन का काम कर रहे हैं। जिसका प्रभाव अभी भारतीय राजनीति में भी देखने को मिल रहा है।

हालांकि इसकी शुरुआत पहले ही हो गई थी परंतु अभी 3 दिसंबर 2023 को आए विधानसभा चुनाव के नतीजे से वहां मुख्यमंत्रीयों के नए चेहरों को दिया गया है, इससे एकाएक सामान्य कार्यकर्ता, पीढ़ी परिवर्तन और नई लीडरशिप की गूंज सुनाई दी है जिसे देखकर आम जनता हतप्रभ है, वही विपक्षी पार्टी भी इसी लाइन पर चलकर प्रदेशों में युवा चेहरों को नियुक्त कर रहे हैं, जिसका उदाहरण मध्य प्रदेश में बड़े अनुभवी चेहरे को किनारे कर युवा नेता को प्रदेश की बागडोर सौंप गई है। इस तरह पार्टियां अपने नेतृत्व में नई पीढ़ी और सामान्य कार्यकर्ता को आगे कर 2024 के चुनाव के लिए एक्शन में आते दिखे हैं। चूंकि कुछ दिनों से सामान्य कार्यकर्ता, नई पीढ़ी तथा नई नेतृत्व की गूंज सुनाई दे रही है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारतीय राजनीति में पीढ़ी परिवर्तन, साइड में सीनियर एक्शन में जूनियर, जिसका असर 2024 के मंत्रिमंडल में देखने को सकता है।

साथियों बात अगर हम 4 जून 2024 को 18वीं लोकसभा का रिजल्ट घोषित होकर विजेता दल द्वारा सरकार बनाने की करें तो, मेरा ऐसा मानना है कि उस नई सरकार में पुराने अधिकतम मंत्रियों के स्थान पर नए युवा चेहरों को लाया जा सकता है। क्योंकि पिछले वर्षों से हम यह परिपाटी देख रहे हैं जो उचित भी है कि दूसरी पंक्ति के युवा नेताओं को सामने लाया जाए ताकि हमारे पीएम ने जो विजन 2047 का लक्ष्य और 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व में तीसरे नंबर की बनाना इत्यादि दिया है, अनुभवी नेताओं का मार्गदर्शन एक सही दिशा में ले जाएंगे उसमें नई युवा ऊर्जा पीढ़ी की अत्यंत जरूरत है।

साथियों बात अगर हम पिछले वर्ष के परिपेक्ष में भारतीय राजनीति में नई लीडरशिप की करें तो, पिछले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली सफलता के बाद एक पार्टी ने सभी जगहों पर नए चेहरे को मौका दिया था। बताया जा रहा था कि इसके जरिए दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे लाने का सियासी प्रयोग किया है। इसके साथ पार्टी ने एक मजबूत प्रतीकात्मक आधार भी तैयार किया है और नई सोशल इंजीनियरिंग गढ़ कर नया संदेश देने की कोशिश की है।

साथियों बात अगर हम पिछले साल तीन राज्यों में नई लीडरशिप की करें तो, सियासी जानकारों के अनुसार छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री और उप मुखमंत्री के तौर पर जातिगत चेहरों को उतार कर पार्टी ने एक संदेश दिया। पार्टी ने इसके साथ ही तीनों राज्यों में नए नेतृत्व को लेकर भी नई पॉलिटिकल पिच तैयार कर सबको चौंका दिया था। जानकार बताते हैं कि नागपुर और पार्टी आलाकमान ने इन फैसलों से के पीछे कई संदेश दिए हैं। पार्टी से बड़ा कोई नहीं है। मातृ संगठन अभी उतना ही ताकतवर है। वो जिसे चाहे फर्श से अर्श तक पहुंचा सकता है।

साथियों बात अगर हम वर्तमान राजनीति के व्याकरण को बदलने की कोशिश की करें तो, जिस तरह से राजनीतिक दल काम करते हैं या जो राजनीतिक दलों की परंपरा रही है उस राजनीति के व्याकरण को अब एक पार्टी और खास तौर पर ताकतवर पार्टी का चेहरा उसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं। वो कहते हैं कि पार्टी नए प्रयोग कर रही है और उसके कई फ़ैसले अप्रत्याशित भी हैं। उन्होंने हरियाणा का उदाहरण दिया और कहा कि उस साधारण व्यक्तित्व को भी इसी तरह से मुख्यमंत्री चुना गया जबकि उनसे वरिष्ठ और सक्रिय नेता संगठन में मौजूद थे। उसी तरह, वो कहते हैं, महाराष्ट्र में भी सामान्य को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने कद्दावर मराठा नेताओं को चौंका दिया था। फिर उसी को उपमुख्यमंत्री भी बना दिया गया था। अन्य पार्टी का व्यक्ति भी उपमुख्यमंत्री हैं जबकि दूसरी पार्टी का व्यक्ति मुख्यमंत्री हैं। सिर्फ़ इतना ही नहीं, उत्तरखंड में तो विधानसभा के चुनाव हारने के बावजूद उनको मुख्यमंत्री बना दिया गया। ये सिर्फ़ पार्टी और सिर्फ़ पार्टी का चेहरा व्यक्तित्व ही इस तरह का रिस्क ले सकते हैं।

पार्टी ने सिर्फ़ मुख्यमंत्री के चयन में नहीं बल्कि उपमुख्यमंत्री के चयन में भी अपनी ही पार्टी के नेताओं को चौंका दिया था। चाहे छत्तीसगढ़ में हों या मध्य प्रदेश में पार्टी ने इसके जरिये जातिगत समीकरणों में संतुलन बनाने का प्रयास भी किया है। उसी तरह राजस्थान में भी हुआ जहां जयपुर राजघराने और अन्य को उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की गई थी। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में जिस दिन पार्टी के विधायक दल की बैठक बुलाई गई थी उस दिन प्रदेश कार्यालय में नव निर्वाचित विधायकों का फोटो सेशन भी हुआ। बड़े नेता सब सामने की पंक्ति में कुर्सियों पर बैठे हुए थे। इनमें सिटिंग मुख्यमंत्री और इस रेस में शामिल सभी बड़े नेता केंद्रीय पर्यवेक्षकों के साथ मुस्कुरा रहे थे। तीसरी पंक्ति में खड़े वर्तमान मुख्यमंत्री मुश्किल से ही पहचान में आ रहे थे। लेकिन कुछ ही मिनटों के अंतराल के बाद वे आगे की पंक्ति से सबसे प्रमुख नेता बन गए थे। ये पहली बार ही हुआ होगा कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर, भोपाल और जयपुर में पार्टी के मुख्यालयों पर मौजूद नेता मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा के बाद सकते में आ गए थे।

जो पत्रकार रायपुर और जयपुर में मौजूद थे उनका कहना है कि घोषणा के कुछ मिनटों तक तो कार्यकर्ताओं और नेताओं को कुछ समझ में ही नहीं आया कि ये क्या हुआ। भोपाल में भी यही नज़ारा था जहां मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में शामिल नेताओं के समर्थकों ने कार्यालय के बाहर डेरा डाला हुआ था। उनके पास अपने-अपने नेताओं के पोस्टर भी थे। लेकिन जब घोषणा हुई तो सब हैरान रह गए थे। बाद में सीएम के समर्थकों ने नारे लगाने शुरू किए, मगर उनके समर्थकों की तादाद कम थी। कम चर्चित चेहरों को शीर्ष पदों पर ज़िम्मेदारी सौंपने का सिलसिला जो पार्टी ने शुरू किया है वो विश्लेषकों की समझ से परे है, क्योंकि पार्टी के इस कदम की अलग-अलग तरीक़े से व्याख्या की जा रही है। दिग्गजों को दरकिनार कर पार्टी ने उन नेताओं के हाथों में राज्यों की कमान सौंपी है जिनके नाम किसी फ़ेहरिस्त में दूर-दूर तक नहीं रहे। जो मुख्यमंत्री की रेस में भी नहीं रहे।

इसमें एक बड़ा संदेश यह है कि पार्टी का साधारण से साधारण कार्यकर्ता बड़े सपने देख सकता है, बशर्ते वह दिन-रात मेहनत करे। इसके लिए कुलीन वर्ग का होना जरूरी नहीं है। किसी खास परिवार की जरूरत नहीं है और न ही किसी खास डिग्री की। इन बातों के अलावा यह भी सच है की तीनों सामान्य और साधारण व्यक्तित्व को क्रमशः राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे जाति समीकरण को भी साधने की कोशिश की गई है। यह बदलाव भविष्य के नेताओं को तैयार करने की नर्सरी के रूप में नागपुर, एबीवीपी का बढ़ता प्रभाव और सबसे ऊपर अपने सुनहरे दिनों में मां और बेटे की तरह राज्यों पर केंद्रीय कमान की पकड़ की पुष्टि करता है।

साथियों बात अगर हम एक प्रिंट मीडिया में माननीय प्रधान मंत्री की बात की करें तो उन्होंने इस कदम के बारे में पार्टी के संदेश पर बात की। पीएम से यह पूछा गया था कि पार्टी ने तीनों राज्यों में अपेक्षाकृत नए और अनजान चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया है, इसका क्या संदेश है? इसके जवाब में पीएम ने कहा कि हमारे देश का एक दुर्भाग्य रहा है कि जो लोग अपनी वाणी से अपनी बुद्धि और अपने व्यक्तित्व से सामाजिक जीवन में प्रभाव पैदा करते हैं, उनमें से एक बहुत बड़ा वर्ग एक घिसी-पिटी, बंद मानसिकता में जकड़ा हुआ है। पीएम ने कहा कि यह केवल राजनीति के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, जीवन के हर क्षेत्र में यह प्रवृत्ति हमें परेशान करती है, जैसे किसी भी सेक्टर में कोई नाम अगर बड़ा हो गया, किसी ने अपनी ब्रॉन्डिंग कर दी तो बाकी लोगों पर सबका ध्यान नहीं जाता है,चाहे वो लोग कितने ही प्रतिभाशाली क्यों न हों, कितना भी अच्छा काम क्यों न करते हों। ठीक वैसा ही राजनीतिक क्षेत्र में भी होता है। दुर्भाग्य से अनेक दशकों से कुछ ही परिवारों पर मीडिया का फोकस सबसे ज्यादा रहा है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारतीय राजनीति में,साइड में सीनियर एक्शन में जूनियर दिखने की प्रबल संभावना? भारतीय राजनीति में 18वीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में पीढ़ी परिवर्तन देखने को मिल सकता है। भारतीय राजनीति में नई लीडरशिप तैयार हो गई है जिसका असर आगामी 2024 के नए मंत्रिमंडल में देखने को मिल सकने की संभावना है।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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