किसान नही तो साहेब तुम भी भूखे मर जाओगे
देख सभी को रोटी देने वाला बिन रोटी मर गया रे
देख पागल हो गई धनिया विधवा भरी जवानी में
देख नाम पड़ा अन्नदाता का तो ये भीख कैसे मांगेंगे
कभी नहीं सोचा जीवन में कि ये दिन भी आ जायेगा
देख आज डूबे कर्ज में जान गंवाते हमारे अन्नदाता।।
देख हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सभी करते खेती भाई
देख जो बैंक से कर्ज मिला लंबे संघर्ष के बाद भाई
देख फिर बैंक ने अपना नोटिस किया अर्ज रे भाई
देख नोटिस हुए फिर परेशान अब क्या होगा रे भाई
देख खेतों में आग लगने से हुआ फसल बर्बाद रे।।
देख जब भी अन्नदाता ने आवाज उठाई भाई रे
देख सरकार ने फिर से उनकी आवाज दबाई रे
उद्योगपतियों की कर्ज वसूली सरकार न करे भाई
कर्ज वसूली हो जाए तो देश विकसित हो जाई रे भाई
फांसी चढ़ रहा इस समस्या का हल कोई न निकाले।।
अन्नदाता भी तो इंसान है देख लिखते हुए लेखनी भी
रोई लेकिन सब खुद में मस्त कोई जगत में नही किसानों का
ना रहेगा अन्नदाता तो गोबर पत्थर कंकड़ खाएंगे साहेब
दशा सुधारो इनका नही तो साहेब तुम भी भूखे मर जाओगे
अभी समय है बचा लो उस किसान को नहीं तो देर हो जायेगी।।
कवि विक्रम क्रांतिकारी, दिल्ली विश्वविद्यालय, (डॉ.विक्रम चौरसिया)