नई दिल्ली। सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद पर द्रौपदी मुर्मू एक महिला ही आसीन हैं। महिला समानता की सबसे बड़ी मिसाल आज द्रौपदी मुर्मू को माना जा सकता है। ये देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं, द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्षों से भरा रहा। तीन बच्चों के निधन के बाद पति को खोने का गम सहने वाली द्रौपदी मुर्मू ने परिस्थितियों के सामने हार नहीं मानी, बल्कि देश सेवा में अपना जीवन लगा दिया। राष्ट्र निर्माण के लिए पहले पायदान पर कार्य करते हुए राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी निभा रही हैं, जो की समानता व संघर्ष का सबसे बड़ी मिशाल कायम की।
वही दूसरी तरफ आप भी अक्सर देखे ही होंगे की अगर किसी के घर जुड़वे बच्चे हुए हो जिसमे एक लड़का दूसरा लड़की का जन्म हुआ हो तो देखा गया है कई बार की लोग बेटी को चूल्हे चौके, गुड़ियां वाली खिलौने लाकर देंगे वही लड़के को बैट बॉल, बंदुक जैसी खिलौने। यही से लड़की के मन मस्तिष्क में डाल दिया जाया करते है की तुम किस लिए बनी हो, जबकि प्रत्येक बच्चे का ये अधिकार है कि उसके विकास में कोई भेदभाव ना किया जाए। लेकिन लड़के लड़की के भेदभाव की वजह से, आज भी बच्चो को अच्छे से बढ़ते हुए नही देखा जाता।
आज भी कई जगह देखने में आया है की लड़के के जन्म में मिठाईयां बांटी जाती है और लड़की के जन्मते ही उसे मार तक दिया जाता है। ये भेदभाव सदियों से चला आ रहा है। ये परम्परा आज भी कुछ परिवारों में देख रहे जबकि आज के आधुनिक युग मे स्त्री व पुरुष दोनो ही कंधे से कंधा मिलाकर प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ रहे है। दुनियां भर में नारियों की स्थिति को मजबूत करने और उन्हें समाज के हर क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार व सम्मान दिलाने के उद्देश्य से हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है। महिला समानता दिवस नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है।
इस मौके पर महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरुआत अमेरिका में हुई लेकिन अब भारत समेत कई देश महिला समानता दिवस को मनाते हैं। हमारा देश पुरुष प्रधान देश है, जहां महिलाओं को मर्दो के बराबर दर्जा देने के लिए कुछ अधिकार मिले हैं। भारतीय महिलाओं की स्थिति दुनियां के कुछ देशों की तुलना में काफी बेहतर है। वर्तमान में भारतीय महिलाएं शिक्षा, कार्यालय और देश की सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। अंत में यही कहूंगा आपसे की पुरुष हो या नारी दुनिया किसी एक के बिना नहीं चल सकती, इसलिए आज ही आप भी संकल्प लीजिए की हम अपने जीवन में कभी भी भेदभाव नहीं करेंगे।
डॉ. विक्रम चौरसिया
चिंतक/दिल्ली विश्वविद्यालय