जब पढ़ाया ही नहीं तो परीक्षा कैसे लेंगे

दीपक कुमार दासगुप्ता, समाजसेवी

माध्यमिक व उच्च माध्यमिक 2021 स्तर की परीक्षाओं को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार का हालिया सूझ – बूझ वाला माना जाना चाहिए। क्योकि यह हजारों की संख्या में विद्यार्थियों के जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला है। अच्छी बात है कि इस मामले में राज्य सरकार ने लोकतांत्रिक पद्धति अपनाते हुए नियत समय के भीतर अभिभावकों के सुझाव मांगे थे। पढ़ाई नहीं तो परीक्षा नहीं वाली नीति एकबारगी कारगर है  क्योंकि व्यावहारिक बात है कि जब आपने बच्चे को पढ़ाया ही नहीं तो उससे सवाल कैसे पूछेंगे।

कोरोना काल में कक्षाएं ठप है । वजह चाहे जो हो , लेकिन किसी भी पैमाने पर आप छात्र की अग्नि परीक्षा नहीं ले सकते जो बेचारा खुद परिस्थितियों का मारा है । आप औसत या अन्य किसी कसौटी को उसकी योग्यता मापने का माध्यम नहीं बना सकते। इसका सबसे बढ़िया आधार तो उसकी पिछली परीक्षाओं का अंक प्रतिशत ही हो सकता है , जब बच्चे ने बाकायदा पढ़ कर परीक्षा दी थी।

यह इस बात का द्योतक है कि बेचारा छात्र यदि कायदे से स्कूल में पढ़ा होता तो उसके उत्तर या योग्यता इसी स्तर का होता । वैसे भी कोरोना काल ने सबसे ज्यादा नुकसान विद्यार्थियों का किया है , उनसे संबंधित कोई भी फैसला लेते समय हमें असाधारण परिपक्वता का परिचय देना होगा।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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