डॉ. आर.बी. दास, पटना। श्रावण मास की पूर्णिमा अत्यंत शुभ और पवित्र मानी गई है। इसी दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्योहार मनाया जाता है। इसी दिन यज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है। यह भगवान शिव के प्रिय मास श्रावण का अंतिम दिन होता है अतः इस दिन जलाभिषेक और शिव पूजा का विधान है। कुछ स्थानों पर कजरी पूजा मनाई जाती है। जिसमे महिलाएं पहले से उगाए गए जौ (जंत्री) के मृतिका पात्रों को सिर पर रख कर कजरी गीत गाती हुई किसी जलाशय में विसर्जित करने जाती है।
भाई बहन के निश्चल संबंधों वाले त्योहार रक्षाबंधन को सावनी या सलूनी भी कहते हैं। बहने अपने भाई की कलाई पर राखी या रक्षासूत्र बांधती है और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देता है और उसे उपहार भेट करता है। रक्षा बंधन नेह का पर्व है। बहने भगवान से प्रार्थना करती है कि उसका भाई स्वाथ्य और दीर्घायु हो..। मान्यता है सतयुग में मां लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांध कर इस परंपरा का आरंभ किया था। दान पुण्य के लिए प्रसिद्ध राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया था। बलि की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामन का रूप लेकर गए और दानबीर राजा बलि से तीन पग भूमि मांग ली।
बलि ने हां कह दिया तो वामनावतार ने दो पग में ही धरती और आसमान नाप लिया। राजा बलि समझ गए भगवान उसकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरा पग रखने के लिए उन्होंने अपना मस्तक आगे कर दिया। भगवान प्रसन्न हुए और राजा बलि ने उनसे पाताल लोक में साथ रहने का वरदान मांग लिया। जब देवी लक्ष्मी को पता चला तो वह राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें राखी बांधकर भाई बना लिया और उपहार में अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया…।
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