कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024 पारित- अब कानून बनेगा
आध्यात्मिक स्थलों में माथा टेकने वाले भक्तों द्वारा लाखों करोड़ों रुपए का चंदा टैक्स के दायरे में लाने वाले कानून को रेखांकित करने वाली बात है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत दुनियां में सबसे अधिक आध्यात्मिकता आस्था व आध्यात्मिक स्थलों वाला देश है जहां पूरी दुनियां के सैलानी भारत आकर उन मशहूर आध्यात्मिक स्थलों का दौरा करते हैं। बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया में अनेकों ऐसे आध्यात्मिक स्थलों की सूची दी गई है, जहां प्रतिवर्ष करोड़ की मात्रा में भक्तों द्वारा चढ़ावा आता है। जिसमें नगदी सोने हीरे मोती नग शामिल होते हैं। जबकि समय-समय पर सरकार इन्हें सरकारी नियंत्रण में लेती है, जिसका विधेयक पास कराकर कानून बना दिया जाता है। जो मुद्दा फिर एक बार जोरदार ढंग से दिनांक 23 फरवरी 2024 को भारत की मीडिया में उछला है। मामला यूं है कि कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धार्मिक धर्मार्थ बंदोबस्ती विधायक 2024 पारित कानून बनेगा। इसे लेकर विपक्षी पार्टियों का हंगामा हो रहा है जब कि पक्ष पार्टी के सीएम का कहना है कि यह कानून 2003 से ही लागू है, जिसमें थोड़ा सा संशोधन किया गया है। लेकिन मजे की बात है कि पार्टी की सरकारें भी मंदिरों को नियंत्रण मुक्त करना तो दूर, उल्टे इसका दायरा और बढ़ाती रहीं। उत्तराखंड में तत्कालीन सरकार ने चारधाम एक्ट लाकर और हरियाणा सरकार ने कई प्रमुख मंदिरों को अपने नियंत्रण लेने का फैसला किया था। लेकिन तमिलनाडु और कर्नाटक के चुनावों में यही बीजेपी पार्टी मंदिरों को मुक्त करवाने के वादे करती है। चुंकि आध्यात्मिक धार्मिक संस्थान अब टैक्स के दायरे में आएंगे, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग के इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, आध्यात्मिक स्थलों में माथा टेकने वाले भक्तों द्वारा लाखों करोड़ों रुपए का चंदा चढ़ावा टैक्स के दायरे में लाने वाले कानून को रेखांकित करने वाली बात है।
साथियों बात अगर हम कर्नाटक विधानसभा में पारित कानून की करें तो, कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024 पुराने कानून में किया एक संशोधन है। इस कानून के लागू होने के बाद 1 करोड़ रुपये से अधिक सकल वार्षिक आय वाले मंदिरों को अपनी आय का 10 प्रतिशत एक कॉमन पूल में देना होगा। वहीं 10 लाख से 1 करोड़ तक के बीच सकल वार्षिक आय वाले मंदिरों को अपनी आय का 5 प्रतिशत धन कॉमन पूल में देना होगा। कर्नाटक के सीएम के मुताबिक, ये कानून 2003 में लागू हुआ था। संशोधन से पहले तक 5 लाख के आय वाले मंदिरों पर 5 प्रतिशत का टैक्स लगता था। कर्नाटक सरकार के मंत्री के मुताबिक मंदिरों से लिए गए टैक्स को कॉमन पूल फंड जमा किया जाता है। कॉमन पूल फंड को राज्य धर्मिका परिषद के तहत चलाया जाता है। संशोधित कानून में लिखा है कि कॉमन पूल फंड का इस्तेमाल किसी अन्य धार्मिक संस्थानों में जरूरतमंदों की मदद के लिए किया जाएगा। इसके अलावा हिंदू धर्म के किसी भी धार्मिक कार्यों के लिए इस फंड का इस्तेमाल किया जाएगा। फंड का इस्तेमाल किसी दूसरे उद्देश्य के लिए या दूसरे धर्मों के अनुयायियों के लाभ के लिए नहीं किया गया है।
ये प्रावधान हिंदू समुदाय के कल्याण और उत्थान के लिए मंदिर निधि का उपयोग करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं, जो गैर-हिंदू उद्देश्यों के लिए धन के गलत आवंटन या अनुचित टैक्स को लागू करने के दावों का सीधा खंडन करते हैं। नया बिल बुधवार को कर्नाटक विधानसभा में पेश किया गया और सहमति हासिल की गई। बीजेपी ने गुरुवार को सोशल मीडिया पर कहा कि नए बिल के मुताबिक, दूसरे धर्म के व्यक्ति भी किसी मंदिर के प्रबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। कर्नाटक के सीएम ने एक्स पर किए ट्वीट में बताया कॉमन पूल पूरी तरह से हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक मकसदों के लिए है। कॉमन पूल फंड का इस्तेमाल 2003 में अधिनियम के लागू होने के बाद से केवल हिंदू संस्थानों के धार्मिक उद्देश्यों के लिए किया गया है और भविष्य में भी इसका इस्तेमाल इन्हीं उद्देश्यों के लिए किया जाता रहेगा।
उद्देश्य? विधेयक का उद्देश्य राज्य में हिंदू धार्मिक संस्थानों और धर्मार्थ बंदोबस्ती के प्रबंधन और वित्त को विनियमित करना है। इसके लिए इन संस्थानों को अपनी आय का एक हिस्सा कुछ खास उद्देश्यों के लिए सरकार को देना होगा। इस धन का उपयोग पुजारियों की आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने, खराब स्थिति वाले मंदिरों का सुधार करने और पुजारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए किया जाएगा। सरकार का दावा है कि इकट्ठा किए गए धन का इस्तेमाल धार्मिक परिषद उद्देश्यों के लिए किया जाएगा, जिससे पुजारियों की आर्थिक स्थिति बेहतर की जाएगी और सी-ग्रेड मंदिरों या जिन मंदिरों की स्थिति बहुत खराब है उनमें सुधार किया जाएगा तथा मंदिर के पुजारियों के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाएगी।
साथियों बात अगर हम आध्यात्मिक देश भारत की करें तो, दुनिया भर में भारत अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए मशहूर है। यहां मौजूद मंदिर अपनी भव्यता और वास्तुशिल्प के लिए काफी प्रसिद्ध है। इन मंदिरों की लोकप्रियता की वजह से ही हर साल यहां भक्त करोड़ो का दान करते हैं। सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारत दुनियाभर में अपनी परंपराओं और मान्यताओं के लिए काफी मशहूर है। प्राचीन काल से ही यह देश दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र रहा है। अपनी संस्कृति और आस्था की वजह से दुनियाभर के लोग इसकी तरफ खिंचे चले आते हैं। आस्था का प्रतीक यह देश पुराने समय से अपने मंदिरों के लिए पहचाना जाता है। यहां कई सारे मंदिर मौजूद हैं, जो अपनी भव्यता और वास्तु कला के लिए जाने जाते हैं। यही वजह है कि हर साल यहां देश ही नहीं, बल्कि विदेश से भी कई सारे भक्त दर्शन के लिए आते हैं। इतना नहीं मंदिर में माथा टेकने वाले ये भक्त भगवान को लाखों-करोड़ों रुपये का चढ़ावा भी अर्पित करते हैं। भक्तों के इन्हीं चढ़ाने की वजह से देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जो चढ़ावे के मामले एक दूसरे को टक्कर देते हैं। भारत में हिंदुओं की आस्था मंदिरों में विराजमान भगवान से इस कदर जुड़ी है कि वो उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। तभी तो भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के लिए मंदिरों में लाखों, करोड़ों का दान करते हैं और दान के बलबूते भारत के सैकडों मंदिर अमीर मंदिरों की लिस्ट में शामिल हैं।
साथियों बात अगर हम आध्यात्मिक स्थलों पर सरकारी नियंत्रण के इतिहास की करें तो, देश में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का इतिहास अंग्रेजों के जमाने से जाकर जुड़ता है। यह परंपरा आजादी के बाद भी जारी रही और बकायदा कानून बनाकर मंदिरों पर नियंत्रण जारी रखा। तमिलनाडु में अभी हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ दान बंदोबस्त कानून (एचआर सेक्सएक्ट), 1959 के तहत करीब 45 हजार मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में संचालित किया जा रहा है। इनमें 17 जैन मंदिर भी शामिल हैं। इसके खिलाफ साधु-संतों से लेकर सामाजिक-धार्मिक संगठन तक आवाज उठाते रहे हैं। दशकों पुराने मंदिर मुक्ति अभियान के तहत सामाजिक स्तर पर चौतरफा काम हो रहा है। विश्व हिंदू परिषद से लेकर संतों के कई संगठन इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका के जरिए मंदिर मुक्ति की मांग। इसी दलील पर सुप्रीम कोर्ट में भी एक के बाद एक, कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं। कुछ याचिकाओं में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके हिंदुओं के साथ धार्मिक भेदभाव को खत्म करने की अपील की गई है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और नेता ने अपनी याचिका में दो विकल्प रखे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार तुरंत मंदिरों से अपना नियंत्रण छोड़े या फिर मस्जिदों, दरगाहों और गिरिजाघरों पर भी अपना कब्जा जमाए। सामाजिक महत्व के कई प्रमुख विषयों पर याचिकाएं दाखिल करने वाले अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि इन दोनों ही स्थिति में धार्मिक आधार पर हो रहा भेदभाव खत्म हो जाएगा। उपाध्याय सामाजिक महत्व के विभिन्न विषयों पर सुप्रीम कोर्ट याचिका दाखिल करते रहते हैं।
साथियों बात अगर हम सरकारों द्वारा आध्यात्मिक स्थानों पर नियंत्रण के समर्थन में दलील देने की करें तो, मंदिरों पर नियंत्रण के लिए ये दलीलें मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के पक्ष में कई दलीलें दी जाती हैं। सरकार मंदिरों के उचित प्रबंधन और विकास का हवाला देती है। साथ ही, यह भी कहा जाता है कि सरकार का नियंत्रण होने से मंदिरों के जरिए सामाजिक न्याय को भी मजबूती दी जाती है। सरकार मंदिर प्रबंधन समितियों में सभी वर्गों और जातियों को शामिल किया जाता है ताकि हिंदू समाज में ऊंच-नीच के भेद खत्म हो सके। ये दावे बहुत हद तक सही हैं, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मंदिरों के ट्रस्ट सत्ताधारी दलों के अपने लोगों को सेट करने का भी साधन बन गए हैं। पार्टी के लिए काम कर रहे लोग जब मंदिर ट्रस्ट में आते हैं तो उनका ध्यान धर्मार्थ कार्यों या मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा बढ़ाने पर न होकर अपनी जेबें भरने पर होती हैं। इस कारण से मंदिर के धन की लूट-पाट होती है। हालांकि, मंदिर मुक्ति के विरोध में सबसे बड़ी दलील भी यही है कि दान में मिलने वाले धन का पंडों-पुजारियों में बंदरबांट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि आध्यात्मिक धार्मिक संस्थान अब टैक्स के दायरे में आएंगे।कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विधेयक 2024 पारित-अब कानून बनेगा।आध्यात्मिक स्थलों में माथा टेकने वाले भक्तों द्वारा लाखों करोड़ों रुपए का चंदा टैक्स के दायरे में लाने वाले कानून को रेखांकित करने वाली बात है।
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