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बतौर गणित अध्यापक चयनित होने के बाद राजबीर की पहली नियुक्ति राजकीय उच्च विद्यालय जनपुरा में हुई। दो चार दिन में ही दसवीं कक्षा उनके लिए सरदर्द बन गई। लड़के हर वक़्त कोई न कोई शरारत करते ही रहते। चौथे दिन तो एक लड़के ने उनके सर पर तब चाॅक दे मारा, जब वे बोर्ड पर एक सवाल लिख रहे थे। वे घूमे तो पाया कि सारी कक्षा के लड़कों के होठों पर उपहास भरी मुस्कान थी।
कक्षा की एक ख़ास दिशा में केंद्रित दृष्टि तथा एक लड़के के तेवर देख कर समझ गए कि यह बदतमीज़ी इसी ने की है। लड़का ख़ूब लम्बा और तगड़ा था। उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा, बल्कि पूरी कक्षा को सुनाते हुए बोले,”बदतमीज़ी बर्दाश्त नहीं होगी। अब अगर किसी ने ऐसा किया तो उठा कर पटक दूँगा।”
उन्होंने फिर से पढ़ाना शुरू किया कि एक चाॅक उनके सर पर आकर लगा। उन्होंने कनखियों से देख लिया था कि ऐसा करने वाला वही लड़का है, लेकिन अनजान बनते हुए उन्होंने उस लड़के के पास बैठे एक कमज़ोर से लड़के को उठाकर धम्म से बेंच पर पटक दिया। मुस्कुरा रहे लड़के अचानक सहम गए। थोड़ी देर में मुख्याध्यापक तथा तीन चार अध्यापक भी कमरे में आ गए। राजबीर ने सबके सामने घोषणा की,” सारे सुन लो, हैडमास्टर साहब के सामने कह रहा हूँ। किसी ने भी शरारत की तो यही हश्र करूँगा। डरना नहीं सीखा मैंने।”
उस दिन के बाद राजबीर की धाक जम गई। लड़के उसे देख तुरंत अनुशासित हो जाते और झुककर प्रणाम करते या रास्ता बदल लेते। शक्तिशाली को नज़रंदाज़ करो, कमज़ोर को दुश्मन घोषित कर पटक दो- क्या तरक़ीब है- राजबीर ने स्वयं को गर्वित महसूस किया। उसे नौकरी करते सत्ताईस साल हो गए हैं। वो देख रहा है कि उसकी तरक़ीब एक सामाजिक मूल्य बन चुकी है। व्यक्तियों की बात तो छोड़िए, बड़े-बड़े देशों के मुखिया तक धड़ल्ले से इस तरक़ीब को कामयाबी से इस्तेमाल कर रहे हैं।