अंकित तिवारी, प्रयागराज : हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला के प्रथम सत्र में बोलते हुए महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, गुजरात की हिन्दी विभागाध्यक्षा, प्रोफेसर कल्पना गवली ने कहा कि आज हिन्दी विश्व की 10 चर्चित भाषाओं में से एक है। 137 देशों में हिन्दी को किसी न किसी रूप में समझा जाता है। यह ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी, भावना, आदर्श, पीड़ा वेदना आदि सबकी समर्थ भाषा है। प्रश्न है कि विश्व भाषा के लिए इसे कैसे परिमार्जित किया जाए? उन्होंने 1965 में रोमानिया में प्रारम्भ हुए हिन्दी के पठन-पाठन का सन्दर्भ देते हुए कहा कि उसके बाद से दुनिया के कई देशों में किसी न किसी प्रकार के हिन्दी शिक्षण का प्रारम्भ हुआ।

नीदरलैंड के एम्सटर्डम से निकलने वाली “विश्व ज्योति” पत्रिका का सन्दर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि वह पत्रिका मारीशस की “बसंत” पत्रिका और “पंकज” पत्रिका के साथ मिलकर पूरी दुनिया में हिन्दी के प्रचार प्रसार को लेकर प्रयत्नशील है। विश्व हिन्दी सम्मेलन वैश्विक रूप से हिन्दी के प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण आयाम है। भारत हिन्दी का स्रोत है और प्रवासी साहित्य इसके विश्वव्यापी प्रसार का माध्यम। 137 देशों में लिखने, पढ़ने, बोलने और सेमिनारों के रूप में मौजूद हिन्दी यशस्वी भविष्य का संकेत दे रही है।

व्याख्यानमाला के दूसरे सत्र में संत गडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र की हिन्दी विभागाध्यक्षा, प्रोफेसर संगीता नन्दकुमार जगतप ने कहा कि बाल साहित्य आज एक महत्वपूर्ण साहित्य विधा बनकर उभरा है। बालक देवरूप है। उनमें न अहंकार है न छुआछूत। झगड़ा करके भी 10 मिनट में हिल-मिल जाने वाले ये जिज्ञासु बालक ही बाल साहित्य का आधार हैं। हमें अपने घर के निर्णयों में बालकों की भी मनोवृत्तियों का ध्यान रखना चाहिए। माता पिता के प्रभाव से निर्मित बाल संस्कार जीवन भर चलते हैं इसलिए संस्कारों के निर्माण और प्रबोधन का दायित्व माता-पिता पर ही होता है।

विभागाध्यक्ष प्रोफेसर कृपाशंकर पाण्डेय जी ने कहा कि बालसाहित्य साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है। बाल मनोवृत्तियों की भी चिन्ता साहित्य में की जानी चाहिए। वेबीनार के संयोजक डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि आने वाला समय हिन्दी के लिए अनुकूल समय है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में 137 देशों तक पहुंची हुई हिन्दी भाषा आने वाले समय में दुनिया के सभी देशों में व्याप्त हो सके इसके लिए प्रयत्न का क्रम इसी भारत भूमि से शुरू होना चाहिए। व्याख्यानमाला में नार्वे से जुड़े सुरेश चन्द्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए। व्याख्यानमाला में नार्वे, नेपाल आदि देशों सहित देश के 23 राज्यों से कुल 432 नामांकन प्राप्त हुए। जिनमें 130 प्राध्यापक, 83 शोध छात्र और 219 छात्र शामिल हैं। इनमें कुल 252 पुरुष 180 महिलायें शामिल हैं।

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