वेब डेस्क, कोलकाता। गर्भाशय के भीतर बढ़ते बच्चे के पोषण और विकास में मदद करता है प्लेसेंटा। प्लेसेंटा के कई घटक मां से आते हैं, तो कुछ घटक भ्रूण से उत्पन्न होते हैं। प्लेसेंटा अलग-अलग मूल की स्टेम कोशिकाओं से बना होता है। इसलिए प्लेसेंटा को जन्म के बाद मां और बच्चे के लिए मूल्यवान माना जाता है। इसलिए भविष्य के उपयोग के लिए प्लेसेंटा टिश्यू को प्लेसेंटा ब्लड बैंक में जमा किया जाता है। हालिया शोध बताते हैं कि प्रेगनेंसी डिसऑर्डर (placenta cells for pregnancy disorder) को खत्म करने में मदद करने के लिए प्लेसेंटा सेल को प्रयोगशाला में तैयार किया गया है।
इजरायल के हिब्रू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने मानव स्किन सेल्स को फंक्शनल ह्यूमन प्लेसेंटा सेल्स में परिवर्तित करने में सफलता हासिल की है। इस प्लेसेंटा से भ्रूण के विकास, गर्भावस्था से संबंधित बीमारियों और इनफर्टिलिटी की समस्या को दूर किया जा सकता है। इसका उपयोग जीन थेरेपी को आगे बढ़ाने के लिए किया जा सकता है। प्लेसेंटल सेल से 100 गर्भधारण में से होने वाले एक गर्भपात के कारण को भी खत्म करने में मदद मिलेगी।
शोधकर्ताओं के अनुसार, इसमें एपिजेनेटिक तकनीक की मदद ली जाती है। इसमें जीनोम को बदला नहीं जाता है। लैब में वयस्क पुरुषों और महिलाओं के हयूमन स्किन सेल को प्लेसेंटा में बदल दिया गया। एपिजेनेटिक एक ऐसी तकनीक है, जो त्वचा या ब्लड कोशिकाओं को भ्रूण जैसी स्थिति में पुन: प्रोग्राम कर देती है। यह चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए जरूरी किसी भी प्रकार की मानव कोशिका के विकास को सक्षम बनाती है।
मानव त्वचा कोशिकाओं को प्लेसेंटा सेल में परिवर्तित करने में हिब्रू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ही पहली बार सफलता पाई। 2015 में चूहों पर उन्होंने प्रयोग किया और सफलता पायी। प्लेसेंटा कोशिकाएं हयूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG) के सीक्रेशन के लिए जिम्मेदार होती है। यह गर्भावस्था परीक्षण के समय मापा जाता है।