सरकार ने किसान यूनियनों को वार्ता के लिए फिर आमंत्रित किया

नयी दिल्ली : सरकार ने प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को वार्ता के लिए फिर आमंत्रित किया, लेकिन स्पष्ट किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित किसी भी नयी मांग को एजेंडे में शामिल करना ‘‘तार्किक’’ नहीं होगा क्योंकि यह नए कृषि कानूनों के दायरे से परे है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने 40 किसान नेताओं को लिखे तीन पन्नों के पत्र में कहा कि ‘मैं आपसे फिर आग्रह करता हूं कि प्रदर्शन को समाप्त कराने के लिए सरकार सभी मुद्दों पर खुले मन से और अच्छे इरादे से चर्चा करती रही है तथा ऐसा करती रहेगी। कृपया (अगले दौर की वार्ता के लिए) तारीख और समय बताएं।

सरकार और किसान संगठनों के बीच पिछले पांच दौर की वार्ता का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। दिल्ली की सीमाओं पर लगभग एक महीने से प्रदर्शन कर रहे किसान तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हैं। अग्रवाल ने किसान यूनियनों के नेताओं से कहा कि वे उन अन्य मुद्दों का भी ब्योरा दें जिनपर वे चर्चा करना चाहते हैं। वार्ता मंत्री स्तर पर नयी दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में होगी।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर अग्रवाल ने कहा कि कृषि कानूनों का इससे कोई लेना-देना नहीं है और न ही इसका कृषि उत्पादों को तय दर पर खरीदने पर कोई असर पड़ेगा। यूनियनों को प्रत्येक चर्चा में यह बात कही जाती रही है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार एमएसपी पर लिखित आश्वासन देने को तैयार है। एमएसपी से संबंधित किसी भी नयी मांग को, जो कृषि कानूनों के दायरे से परे है, वार्ता में शामिल करना तार्किक नहीं है। जैसा कि पूर्व में सूचित किया जा चुका है, सरकार किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा करने के लिए तैयार है।

उनका पत्र संयुक्त किसान मोर्चे के 23 दिसंबर के उस पत्र के जवाब में आया है, जिसमें कहा गया है कि यदि सरकार संशोधन संबंधी खारिज किए जा चुके बेकार के प्रस्तावों को दोहराने की जगह लिखित में कोई ठोस प्रस्ताव लाती है तो किसान संगठन वार्ता के लिए तैयार हैं। सरकार ने अपने नए पत्र में संकल्प व्यक्त किया है कि वह किसान यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों का ‘‘तार्किक समाधान’’ खोजने के लिए तैयार है।

अग्रवाल ने कहा कि सरकार के लिए वार्ता के सभी दरवाजे खोलकर रखना महत्वपूर्ण है। किसान संगठनों की बात सुनना सरकार का दायित्व है तथा किसान और सरकार इससे इनकार नहीं कर सकते। संयुक्त किसान मोर्चे के तहत आने वाले किसान संगठनों से सरकार खुले मन से कई दौर की वार्ता कर चुकी है। अग्रवाल ने आग्रह किया कि किसान संगठन अपनी सुविधा के हिसाब से अगले दौर की वार्ता के लिए तारीख और समय बताएं।

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