।।इंतजार।।
गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा
वक्त ने जब साथ दिया था
तब बहुत कुछ पाया था,
परिवार के ही भीड़ में
अक्सर वक्त बिताया था।
बेटा, बहू, बेटी और दामाद
सारे ईर्द-गिर्द रहता था,
इष्ट-मित्रों का हुजूम भी
करीब मड़राया करता था।
दूर के अंजान रिश्तेदार
रिश्ता बनाया करता था,
जो कुछ भी कोई माँगता
उसका दामन भर देता था।
बुढ़ापा ने क्या दस्तक दिया
वक्त ने भी साथ छोड़ दिया,
अपने जितने भी करीब थे
सभी ने किनारा कर लिया।
आज खोया-खोया रहता हूँ
हँसना, मुस्कुराना भूल गया हूँ,
बोझ बन गया है अब जीवन
बस मौत का इंतजार कर रहा हूँ।