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।।गजल।।
इक भी गुंचा जवाँ नही होता
जो भ्रमर ने छुआ नहीं होता।
तितलियाँ भी हसीं नहीं लगती
रंग इतना मिला नही होता।
ये हवा भी नहीं महकती गर
जुल्फ का खम खुला नहीं होता।
वक्त ही खेल-खेलता सारे
खेल क्या है पता नहीं होता।
इश्क की इब्तिदा न हो पाती
जो इशारा किया नहीं होता।
दिल मिरा पुरसुकून रहता गर
जो तुम्हें ये दिया नहीं होता।
तोड़ देती मिरी मुहब्बत दम
खत का जो सिलसिला नहीं होता।
उर्वशी आँख में नमी क्यूँ है
प्यार तेरा जुदा नहीं होता।
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