गांधीजी की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक व उपयुक्त है- डाॅ. हरिसिंह पाल

उज्जैन : स्वतंत्रता प्राप्ति को पचहत्तर वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। राष्ट्रपिता गांधीजी की शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक और उपयुक्त है। ये विचार राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संरक्षक तथा नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ. हरिसिंह पाल ने व्यक्त किये। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में महात्मा गांधी जयंती के अवसर पर ‘राष्टूपिता महात्मा गांधी और हिंदी के योगदान परिप्रेक्ष्य में’ विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मुख्य संयोजक प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने इस राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी की अध्यक्षता की। डॉ. हरिसिंह पाल ने आगे कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन में स्वयं पर प्रयोग कर के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया था। सत्याग्रह, अहिंसा और निर्भीकता के बल पर उन्होंने विदेशी सत्ता पर विजय प्राप्त की थी। पूरा विश्व आज भी विश्वशांति के लिए गांधीवाद से प्रेरणा लेता है।

मुख्य वक्ता प्रो. डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, कुलानुशासक, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वराज्य प्राप्ति के प्रमुख औजारों में राष्ट्रभाषा हिंदी को महत्त्व दिया था। उन्होंने स्वभाषा को स्वदेशाभिमान के साथ जोडा था। गांधीजी ने स्वराज्य प्राप्ति के लिए अंग्रेजी के गैर जरूरी मोह से मुक्ति का आह्वान करते हुए मातृभाषा की महिमा को प्रतिष्ठित किया। उनकी दृष्टि में राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्रवादी नहीं हुआ जा सकता। देशी भाषा की उपेक्षा को उन्होंने तत्कालीन शिक्षा प्रणाली का सबसे बडा दोष माना है। हिंदी को लेकर देखा गया उनका सपना भारतीय संविधान में प्रतिबिंबित हुआ है।

विशिष्ट अतिथि तथा राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा अशोक जाधव, मुंबई ने कहा कि पूरे राष्ट्रीय आंदोलन को गांधीजी ने हिंदी से जोड दिया था। उनका कहना था कि राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि डॉ.अनसूया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ ने अपने मंतव्य में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व ने हर किसी को जीवन के किसी न किसी मोड पर प्रभावित किया है। उन्होंने हर इन्सान के अंतर्मन को जगाया है।

विशिष्ट वक्ता व राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने प्रतिपादित किया कि सत्य और अहिंसा राष्ट्रपिता गांधीजी के बीज भाव है। वे सत्यपथ के अनुगामी थे। गांधी जीवन दर्शन का मुख्य बिंदु था भारतीय भाषाओं के प्रति समानता का भाव। विशिष्ट वक्ता डॉ. बाळासाहेब तोरस्कर, ठाणे, महाराष्ट्र ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी को राष्ट्रभाषा के रूप में कोई दूसरी भाषा मान्य नहीं थी। वे हिंदी, हिंदुस्तानी के प्रबल समर्थक थे।

प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे,महाराष्ट् ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि वास्तव में गांधीजी उस दिन को देखने के लिए उत्सुक थे जब कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सभी भारतीय जन हिंदी को समझे व हिंदी बोलने में गर्व का अनुभव कर सके। उनका मानना था कि हिंदी की प्रगति से ही सभी भारतीय भाषाओं की उन्नति होगी। गांधीजी के लिए हिंदी राष्ट्रीय अस्मिता थी। वे कहते थे कि हिंदी के अतिरिक्त दूसरा कुछ भी मुझे इस दुनिया में प्यारा नहीं है। वे मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के प्रति बेहद आग्रही थे।

इस राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में डॉ. सविता इंगले, पुणे, महाराष्ट्र ने स्वागत भाषण दिया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष प्रा. डॉ. भरत शेणकर, अकोले महाराष्ट्र ने इस गोष्ठी का प्रास्तविक किया। प्रा. रोहिणी बालचंद डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने गोष्ठी का संचालन किया।

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