नई दिल्ली । आजकल के फूहड़ और कानफोड़ू फिल्मी गीत मैं सुनता नहीं हूं और कभी गलती से सुन भी लेता हूं तो मुझे समझ नहीं आता है कि गायक चिल्ला क्या रहा है। लेकिन पुराने फिल्मी गीत ऐसे नहीं थे। उन गानों में मिठास थी, नजाकत और नफासत थी। पुराने गीतों की खास बात यह थी कि उनका अर्थ तुरंत ही समझ में आ जाता था। हालांकि उन गानों का गूढ़ अर्थ समझने या कहिए कि गीतकार के भावों में डूबने के लिए आप की मनोदशा भी वैसी होनी चाहिए। तभी उन खास गीतों का संदेश दिल तक पहुंच पाता था। जैसे कि-
‘थोड़ी सी जो पी ली है,
चोरी तो नहीं की है,
यह गजल सुनने में वैसे भी अच्छी लगती है। लेकिन इसको आप शाम के अंधेरे में, मद्धम लाइट जला कर और एक पैग पीने के बाद सुनें तो इसका वास्तविक अर्थ समझ में आता है ।
इसी तरह-
“तुझे न देखूं तो चैन,
मुझे आता नहीं है।
एक तेरे सिवा कोई और
मुझे भाता नहीं है।। “
का गूढ़ अर्थ प्यार में आकंठ डूबा हुआ प्रेमी ही समझ सकता है।
“चिट्ठी न कोई संदेश ,
जाने वह कौन सा देश,
जहां तुम चले गए” का भावार्थ समझने के लिए आपको अपने प्रियतम से दूर, विरह की स्थिति में होना चाहिए।
1974 में रिलीज हुई हिंदी फिल्म “रोटी कपड़ा और मकान” का एक बेहद खूबसूरत गीत है जिसे मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल ने संगीतबद्ध किया और सुर कोकिला लता मंगेशकर ने आवाज दी है। गीत का मुखड़ा कुछ इस प्रकार है-
“हाय हाय रे मजबूरी,
यह मौसम और यह दूरी।”
वैसे तो यह गाना कभी भी सुनने में अच्छा लगता है लेकिन अगर आप अपनी प्रेमिका से बहुत दूर कहीं नौकरी कर रहे हो और तिस पर महीना भी सावन का हो, तो इस गाने का अर्थ ज्यादा गहराई से समझ में आता है।
तो हुआ यूं कि हम लोग अपने परिवार से दूर चेन्नई में प्रशिक्षण ले रहे थे। तभी किसी ने अपने मोबाइल में खूबसूरत जीनत अमान पर फिल्माए गए इस गीत को बजा दिया-
“हाय हाय रे मजबूरी,
यह मौसम और यह दूरी।
मुझे पल-पल है तड़पाए।।
तेरी दो टकिया की नौकरी में,
मेरा लाखों का सावन जाए रे”
अधिकतर लोगों ने इस गाने को सिर्फ सुना ही नहीं बल्कि गहराई तक महसूस किया। हालांकि कुछ तर्कशील लोगों को इस बात पर आपत्ति थी कि सावन तो खैर लाखों नहीं करोड़ों बल्कि अरबों का भी हो सकता है। पर नौकरी “दो टकिया” की नहीं है। वायुसेना में हमें ठीक ठाक पैसे मिलते हैं।
लेकिन मुझे लगता है कि इस गीत के लेखक स्वर्गीय वर्मा मलिक बहुत दूरदर्शी थे क्योंकि इसी गाने की एक लाइन है-
“नौकरी का क्या है भरोसा,
आज मिले कल छूटे।”
शायद यह लाइन उन्होंने अग्नि वीरों के लिए लिखी थी।
(विनय सिंह बैस)
पूर्व वायुवीर