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नई दिल्ली । घटना आज से लगभग 20 वर्ष पहले की है। उस समय लोग रेलगाड़ियों में यात्रा करते समय मिल्टन, गोदरेज आदि कंपनियों की अपारदर्शी बोतलों में पानी भरकर अपने साथ ले जाते थे क्योंकि तब तक आधुनिक प्लास्टिक की पानी की बोतलें नहीं आई थीं। चूंकि उस समय किसी के पास स्मार्ट फोन नहीं होता था, इसलिए रेलयात्री आपस में बातचीत करते हुए ही सफर तय करते थे। आवश्यकता पड़ने पर लोग एक दूसरे से छोटी-मोटी मदद मांगने में भी संकोच नहीं करते थे।
उस समय मैं वायुसेना में सेवा कर रहा था और मेरी पोस्टिंग वायुसेना अकादमी हैदराबाद में थी। मुझे छुट्टी मिली थी और मैं सिकंदराबाद से अपने गृहनगर कानपुर सिकंदराबाद –बरौनी एक्सप्रेस के स्लीपर क्लास में बैठकर वापस आ रहा था। रेलगाड़ी के उसी डिब्बे में सेना के दो जवान मेरे सामने बैठे हुए थे। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, हमने आपस में बातचीत शुरू कर दी। बातचीत के दौरान, मुझे पता चला कि वे दोनों सैनिक अस्थायी ड्यूटी पर गोरखपुर जा रहे थे। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे नमकीन और बिस्कुट की पेशकश की जिसे मैंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया। इसके बाद वे लोग नमकीन खाकर पानी पीने लगे।

जल्द ही मुझे एहसास हुआ कि वे अपनी जिस मिल्टन की बोतल से पानी पी रहे थे, उससे कुछ जानी पहचानी सी गंध आ रही थी। वायुसैनिक होने के नाते मैं इस गंध को दूर से ही पहचान सकता था। जी हां, आपने ठीक समझा। वे लोग पानी की बोतल में “शाम वाली दवाई” का आनंद ले रहे थे। मुझे इससे कोई समस्या नहीं थी क्योंकि मेरे कई मित्र दारू पीते थे और मैं उनके साथ बैठकर नमकीन और अंडा खाता रहता था। वैसे भी वे दोनों पूरे होशोहवास में थे और बिलकुल सामान्य व्यवहार कर रहे थे। उनके व्यवहार में एकमात्र बदलाव यह था कि वे अतिरिक्त विनम्र और सतर्क हो गए थे। प्रत्येक यात्री से कुछ ज्यादा ही शालीनता से बात कर रहे थे।
मेरी बगल वाली सीट पर एक महिला अपने बच्चे के साथ बैठी हुई थी। उनका छोटा बच्चा पता नहीं क्यों लगातार रोए जा रहा था। शायद उसका पेट दर्द कर रहा था या हो सकता है वो गर्मी से बेहाल हो गया हो। वह महिला अपने बच्चे को चुप कराने के लिए हर संभव जतन कर रही थी। कभी कोई खिलौना देती, कभी दूध पिलाती तो कभी खिड़की के बाहर चिड़िया, कौआ और गाय-भैंस दिखाती। लेकिन वह छोटा बच्चा पसीने-पसीने हो रहा था और लगातार रोए जा रहा था।
तब उस महिला ने बच्चे को पानी पिलाने के लिए अपनी बोतल से ग्लास में पानी डालना चाहा, तो पाया कि बोतल में पानी खत्म हो चुका था। अब तो पानी अगले स्टेशन पर ही मिल सकता था। इसलिए उस महिला ने सामने सीट पर बैठे और अपनी मिल्टन बोतल से थोड़ा-थोड़ा करके पानी पी रहे सेना के जवानों से अनुरोध किया :- “भाई साहब, बच्चा प्यासा है। मेरे पास जो पानी था, वह खत्म हो गया है। कृपया मुझे एक ग्लास पानी देने का कष्ट करें।“
हालांकि महिला ने यह बात बिलकुल स्पष्ट और काफी तेज़ आवाज में कही थी लेकिन उन दोनों सैनिकों ने ऐसा अभिनय किया जैसे कि उन्होने कुछ सुना ही नहीं हो। इसलिए महिला ने पुनः पानी मांगा और ग्लास लेकर उनके पास पहुँच गई। अब तो उनको जवाब देना ही पड़ा। उनमें से एक सैनिक बहुत संभलकर और पूरी विनम्रता से बोला- “मैडम, हालांकि हमारे पास पानी है लेकिन हम आपके बच्चे को पीने के लिए नहीं दे सकते हैं।“
महिला को अपने कानों पर जैसे विश्वास न हुआ हो। वह गुस्से में फट पड़ी- “आप किस तरह के निष्ठुर आदमी हैं? एक रोते हुए बच्चे को एक ग्लास पानी नहीं दे सकते?? शर्म आनी चाहिए आप दोनों को।“
“मै –ए –ड –अ – म, आप गलत समझ रही हैं। हम पानी अवश्य देते लेकिन वास्तव में यह पानी बच्चे के लिए ठीक नहीं है।“ उनमें से एक बड़ी मुश्किल से बोल पाया।
“बच्चे के लिए ठीक नहीं है???? क्या पानी भी बच्चों और बड़ों का अलग अलग होता है???? कैसी बहकी हुई बातें कर रहे हैं आप ????”
“मै –एए –डड –अ – मम, कृपया समझने की कोशिश करें। मैं आपको कैसे बताऊँ कि मैं आपकी मदद नहीं कर सकता। इस बोतल का पानी आपका बच्चा नहीं पी सकता है।” दूसरे सैनिक ने सफाई देने की कोशिश की।
महिला और दोनों जवानों का वार्तालाप सुनकर पास ही बैठी एक महिला बोतल में पानी लेकर आ गई और उस महिला के ग्लास में उड़ेल दिया। इस तरह वह दोनों जवान और अधिक शर्मिंदगी से बच गए।
लेकिन इस घटना के बाद, सेना के उन दोनों जवानों ने पूरी यात्रा के दौरान किसी से बात नहीं की।
(एयर वेटेरन विनय सिंह बैस)