नई दिल्ली। स्वर्गीय मनमोहन सिंह के बारे में विचार करने से एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभरती है जो टिपिकल मध्यमवर्गीय परिवार का मुखिया है, फैमिली मैन है। जो अपने काम से काम रखता है और अपने राम से राम। जो किसी के फटे में टांग न अड़ाता है और न चाहता है कि लोग उसके फटे में टांग अड़ायें। परिवार का एक ऐसा मुखिया जो खूब मेहनत करता है ताकि उसके बच्चों को कोई परेशानी न हो। वह चुपचाप अपना काम करना चाहता है, तमाम विवादों से दूर रहना चाहता है। वह बिल्कुल निर्दोष है, चाह कर भी किसी का बुरा नहीं कर सकता है।
मनमोहन जी के प्रति आम आदमी का सम्मान तब और भी बढ़ जाता है जब उसे जानकारी मिलती है कि वह सरल, विनीत, सौम्य ही नहीं बल्कि उच्च कोटि के विद्वान भी थे। एक बड़े अर्थशास्त्री के रूप में उनका लोहा दुनिया मानती थी। वह शायद पहले भारतीय थे जो योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने, आरबीआई के गवर्नर बने, देश के वित्त मंत्री बने और दो बार विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री भी बने।
उनकी इस अतुलनीय सफलता से दुनिया यह संदेश ले सकती है कि दो परसेंट से भी कम जनसंख्या वाले समुदाय से होने के बावजूद एक व्यक्ति हिंदू बहुल भारत देश के सबसे बड़े पद पर आसीन हो सकता है। उनका प्रधानमंत्री बनना हमारे लोकतंत्र की भी सफलता है क्योंकि मजहब के नाम पर बने देश पाकिस्तान से लुट- पिटकर, अपना सब कुछ गंवाकर आया हुआ व्यक्ति अपनी प्रतिभा, मेहनत और लगन के बल पर देश के सर्वोच्च पद पर पहुंच सकता है।
मनमोहन जी को इसलिए याद किया जाना चाहिए कि उन्होंने देश की डांवाडोल आर्थिक स्थिति को अपने कठोर आर्थिक सुधारों, उदारीकरण के माध्यम से स्थिर किया। वह इसलिए आदरणीय हैं क्योंकि उन्होंने लाइसेंस राज जैसी घटिया औऱ भृष्ट व्यवस्था खत्म की। उनके प्रति सम्मान इसलिए भी है कि देशद्रोही वामियों की परवाह किए बिना उन्होंने अपनी सरकार को दांव पर लगाकर अमेरिका के साथ परमाणु संधि की। उनका मान इसलिए भी है कि उन्होंने पूरे दस वर्ष तक अल्पमत वाली सरकार सफलता पूर्वक चलाई।
लेकिन आरबीआई गवर्नर, अर्थशास्त्री और वित्त मंत्री के रूप में जो ख्याति और सम्मान सरदार मनमोहन सिंह ने अर्जित किया, प्रधानमंत्री के रूप में उसे काफी हद तक गंवा दिया।
स्वर्गीय मनमोहन सिंह जी को देशप्रेमी इसलिए नहीं याद करना चाहेंगे क्योंकि वह भारतीय वायुसेना कर्मियों की हत्या के अपराधी आतंकवादी से गले मिले, घर पर बुलाया। उन्हें लोग इसलिए भुलाना चाहेंगे कि देश पर मुंबई अटैक जैसे वीभत्स प्रहार पर पापी पाकिस्तान को जवाब देने के बजाय उनकी सरकार के लोग हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ते रहे। वह इसलिए कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में याद किये जायेंगे क्योंकि उनके समय दिल्ली सहित देश के तमाम शहरों में जब-तब बम फटते रहे। वह इसलिए दब्बू साबित हुए क्योंकि उनके सामने शांतिदूत मुंबई के स्मारक को अपने डंडो, हाथों, लातों से तोड़ते रहे।
उनकी ईमानदार छवि तब धूल धूसरित हो गई जब उनकी नाक के नीचे तमाम मंत्री भ्रष्टाचार करते रहे, गमले में गोभी उगाते रहे। उनके सरकार के मुखिया होने पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह तब खड़ा हो जब एक अदना सा सांसद उनके अध्यादेश को फाड़ता रहा और वे चुपचाप देखते रहे। उनकी गैर आपराधिक छवि तब तार-तार हो जब एक सजायाफ्ता जातिवादी अपराधी को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध वह अध्यादेश लेकर आए।
वह नजरों से तब उतर गए जब मजहब के आधार पर देश के टुकड़े कर चुके अल्पसंख्यकों को देश के संसाधनों का पहला अधिकारी बता दिया। वह तुष्टिकरण की मिसाल कायम करते हुए इस्तीफा देने से पूर्व वक़्फ़ बोर्ड जैसे कट्टर मजहबी संस्था को तमाम सरकारी जमीन उपहार में देकर चले गए। उनकी इज्जत तब मिट्टी में मिल गई जब आज कटोरा लेकर पूरे विश्व मे भीख मांगने वाले पोरकिस्तान का प्रधानमंत्री भी उन्हें देहाती औरत कह गया।
मनमोहन जी का मौन तब अखरा जब अपना पूरा जीवन कांग्रेस को समर्पित कर देने वाले स्वर्गीय नरसिंह राव और प्रणब मुखर्जी के अपमान पर वह चुप रहे। वह इसलिए देश के सच्चे सपूत नहीं हो सके क्योंकि देश और एक परिवार के हितों के मध्य जब भी उन्हें चुनाव करना पड़ा तो उन्होंने एक परिवार के प्रति स्वामिभक्ति दिखाई। अपने बार-बार अपमान पर भी वह कुर्सी से चिपके रहे।
डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से इस देश ने एक विनम्र व्यक्तित्व, महान अर्थशास्त्री, कुशल भू.पु. वित्त मंत्री, अति साधारण नेता और कमजोर भू.पु. प्रधानमंत्री खो दिया है।
(विनय सिंह बैस)
एक व्यक्ति और अर्थशास्त्री के रूप में स्वर्गीय मनमोहन सिंह के मुरीद
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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