नई दिल्ली । आज दिल्ली में बारिश हुई तो लिट्टी-चोखा खाने का मन किया और मैं गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास एक परिचित सनातनी दुकान पर रुककर लिट्टी चोखा खाने लगा। लिट्टी-चोखा वास्तव में स्वादिष्ट था। मैं तारीफ करने ही वाला था कि तभी-
एक ग्राहक:- ई लिट्टी-चोखा कैसन दिया?
दुकानदार :- देसी घी के साथ एक प्लेट ₹40 का बटर के साथ ₹30 का।
ग्राहक :- कलजुग में देसी घी कौन लगाता है?? सब डालडा इस्तेमाल करता है।
दुकानदार :- नहीं, नहीं।
हम मदर डेयरी का ओरिजिनल घी लगाते हैं। यह देखो मदर डेयरी का डिब्बा।
ग्राहक :- धौ मरदे! ई सब डिब्बा-उब्बा हम बहुत देखे हैं। सब नकली होता है। हमको बटर वाला दीजिए।
दुकानदार :- ठीक है ₹30 का पड़ेगा।
ग्राहक :- एथी रुकिए!! ऐसन करिए। एक गो प्लेट बिना बटर लगाए दे दीजिए। ऊ कितने का पड़ेगा?
दुकानदार :- ₹25 का पड़ेगा।
ग्राहक :- रुकिए महाराज। इसमें…..
दुकानदार : दिल्ली में नए आए लगते हो? पक्के वाले बिहारी हो??
ग्राहक :- हां, तो??
लेकिन तुमको कैसे पता??
दुकानदार :- तुम जो इतना बतकुचरी और मोल भाव किये न, उससे पता चल गया।
मैं :- तुम भी तो बिहारी हो?
दुकानदार:- हां, मैं भी बिहारी हूं। लेकिन उसमें और हममें बहुत फर्क है।
मैं :- क्या अंतर है तुम दोनों में?
दुकानदार :- इसके जैसे लोग खलिहर हैं। बतकुचरी खूब करेगा, 10 का सामान खरीदेगा, 20 मिनट बर्बाद करेगा। मैं सुबह दूध बांटता हूँ। दोपहर भर दुकान की तैयारी करता हूँ और शाम को लिट्टी-चोखा का दुकान लगाता हूँ। करता ज्यादा हूं, बोलता कम हूं।
“मैं दिल्ली वाला बिहारी हूँ, वो बिहार वाला बिहारी है।”
मैं :- एक तो तुम सनातनी, ऊपर से मेहनती, तीसरे लिट्टी-चोखा भी मस्त बनाते हो।
तुम्हारे साथ एक सेल्फी तो बनती है।
(विनय सिंह बैस)
मैं भी दिल्ली वाला बिहारी (मेरे मित्र Santosh Jaiswal के अनुसार)