रूपेश मिश्रा की कलम से : भोजपुरी फिल्म अवॉर्ड्स- मान्यता या महज खुश करने का जरिया?

रूपेश मिश्रा, पटना। भोजपुरी सिनेमा पिछले कुछ वर्षों में बड़ी तेजी से लोकप्रियता की सीढ़ियाँ चढ़ा है। इसकी पहुँच न केवल भारत में बल्कि प्रवासी भारतीयों के बीच भी बढ़ी है। फिल्मों की बढ़ती संख्या और दर्शकों की बढ़ती रुचि ने फिल्म अवॉर्ड्स की अवधारणा को भोजपुरी सिनेमा में भी प्रवेश दिलाया। आजकल हर साल विभिन्न संस्थाओं द्वारा सात से आठ अवॉर्ड शो आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, अभिनेत्री, निर्माता, निर्देशक और लेखक जैसे श्रेणियों में पुरस्कार दिए जाते हैं। मगर क्या इन पुरस्कारों का कोई वास्तविक मापदंड है या ये केवल कुछ लोगों को खुश करने का माध्यम बन गए हैं?

अवॉर्ड्स की भूमिका और उनका महत्व को स्थापित करने के लिए सटीक फैसले और निष्पक्ष इरादों की जरूरत है। फिल्म अवॉर्ड्स का उद्देश्य कला, प्रतिभा और कड़ी मेहनत को पहचानना और उसे सम्मानित करना होता है। यह कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं, जिससे उन्हें अपने काम में सुधार और नया आयाम जोड़ने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही, ये अवॉर्ड्स उस सिनेमा की गुणवत्ता और उसका सांस्कृतिक महत्व भी दर्शाते हैं, जिसके माध्यम से सिनेमा को एक सामाजिक मंच के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मगर भोजपुरी फिल्म अवॉर्ड्स की मौजूदा स्थिति को देखते हुए, यह सवाल उठने लगा है कि क्या ये अवॉर्ड्स वास्तव में प्रतिभा और गुणवत्ता का सम्मान करते हैं?

अवॉर्ड्स का निर्धारण मापक पैमाने का अभाव की कमी को दर्शाता है और उभरते कलाकारों के दोहन जैसा लगता है। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अवॉर्ड्स का कोई तय मापदंड नहीं है। यह एक ऐसी विडंबना है कि जिन अवॉर्ड्स का उद्देश्य सर्वश्रेष्ठ को पहचानना होता है, वे खुद मानकों और पारदर्शिता की कमी से जूझ रहे हैं। किसी भी पुरस्कार प्रणाली की सफलता और उसकी प्रामाणिकता का मापदंड वही होता है जब उसका मूल्यांकन निष्पक्ष और पारदर्शी हो। लेकिन भोजपुरी सिनेमा के अवॉर्ड्स में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता।

वास्तविकता यह है कि बिना फिल्मों को देखे ही पुरस्कार बांटे जाते हैं। इसके अलावा, कई बार ऐसे नामचीन लोगों को पुरस्कार दे दिए जाते हैं जो केवल नाम के बल पर अवॉर्ड के हकदार बन जाते हैं, भले ही उनकी फिल्म उस साल के वास्तविक प्रतिस्पर्धियों से बहुत कमजोर क्यों न हो। यह स्थिति न केवल उन लोगों के लिए अपमानजनक होती है, जिन्होंने पूरे मनोयोग से बेहतरीन काम किया होता है, बल्कि यह भोजपुरी सिनेमा की साख पर भी सवाल खड़े करती है।

अवॉर्ड्स का अनौपचारिक उद्देश्य खुश करना या प्रचार यह कहीं ना कहीं मजाक सा लगता है। कई संस्थाओं द्वारा आयोजित किए जाने वाले ये अवॉर्ड्स अधिकतर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को खुश करने के लिए होते हैं। अक्सर यह देखा जाता है कि अवॉर्ड शो के दौरान बड़े सितारों और निर्माताओं को विशेष रूप से सम्मानित किया जाता है। यह सम्मान कभी-कभी व्यक्तिगत संबंधों या प्रचार की दृष्टि से अधिक होता है, न कि वास्तविक कला और प्रतिभा की कद्र के आधार पर।

इसके अलावा, अवॉर्ड शो का एक और मकसद शो के आयोजकों और प्रायोजकों को अधिकाधिक पब्लिसिटी दिलाना भी होता है। जब बड़े सितारे अवॉर्ड शो में शामिल होते हैं, तो मीडिया कवरेज बढ़ता है और इससे शो की टीआरपी भी। मगर क्या यह अवॉर्ड्स का असली मकसद होना चाहिए?

अवॉर्ड्स का असल हकदारों से छेड़छाड़ इस भोजपुरी फिल्म जगत में एक धोखा होगा, जिससे सही लोगों का मूल्यांकन करना मुश्किल होगा।
एक कड़वा सच यह है कि भोजपुरी सिनेमा में कई प्रतिभाशाली कलाकार, लेखक और निर्देशक हैं जो कड़ी मेहनत से गुणवत्तापूर्ण फिल्में बनाते हैं। उनकी फिल्मों में मौलिकता, अभिनय में गहराई और निर्देशन में नयापन होता है। फिर भी, जब अवॉर्ड्स की बात आती है तो वे अनदेखे रह जाते हैं। उनकी जगह बड़े सितारों या प्रोडक्शन हाउस को इनाम मिल जाते हैं, जिनकी फिल्में भले ही गुणवत्ता में कमजोर हों, मगर बाजार में उनकी पकड़ मजबूत होती है।

यह स्थिति उन कलाकारों और तकनीशियनों के लिए निराशाजनक होती है जो वास्तव में इन पुरस्कारों के हकदार होते हैं। उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण की अवहेलना होती है, जिससे उनकी कला को वह मान्यता नहीं मिलती जिसकी वे हकदार हैं।सुधार की दिशा में कदम उठाएं जाने की जरूरत है।भोजपुरी फिल्म अवॉर्ड्स की विश्वसनीयता को बचाने के लिए जरूरी है कि अवॉर्ड वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए। कुछ कदम जो इस दिशा में उठाए जा सकते हैं।

स्वतंत्र जूरी की नियुक्ति कर ही इस प्रकार के निर्णय को लेना अनिवार्य हो जाता है जो पुरस्कारों के चयन के लिए एक निष्पक्ष और स्वतंत्र जूरी का गठन करता हो, जिसमें फिल्म विशेषज्ञ, आलोचक और प्रतिष्ठित फिल्म निर्माताओं को शामिल किया जाए।

फिल्मों का निष्पक्ष मूल्यांकन करना भी जरूरी है जो जूरी को यह सुनिश्चित करता है कि कि हर नामांकित फिल्म को पूरी तरह देखा जाए और उसे उचित मूल्यांकन के आधार पर परखा जाए। ऑनलाइन वोटिंग कराकर दर्शकों को भी अवॉर्ड्स में भाग लेने का मौका दिया जाना चाहिए। इससे अवॉर्ड्स की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और अवॉर्ड्स को वास्तविकता के करीब लाया जा सकेगा।

स्पष्ट मापदंड पर अगर बात करे तो अवॉर्ड्स के लिए चयनित फिल्मों और कलाकारों का मूल्यांकन स्पष्ट मापदंडों पर होना चाहिए, जैसे कि अभिनय, निर्देशन, पटकथा, तकनीकी दक्षता, और सामाजिक संदेश।
भोजपुरी सिनेमा को उसकी वास्तविक पहचान दिलाने के लिए जरूरी है कि अवॉर्ड्स के महत्व को सही तरीके से समझा जाए और उन पर आधारित मानकों को गंभीरता से लागू किया जाए।

केवल अवॉर्ड्स का आयोजन कर देना या मशहूर हस्तियों को खुश कर देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह जरूरी है कि हकदारों को उनका सही सम्मान मिले। अगर अवॉर्ड्स का उद्देश्य वास्तविकता और पारदर्शिता से जुड़ा रहेगा, तो यह न केवल भोजपुरी सिनेमा को एक ऊँचाई पर ले जाएगा, बल्कि इस क्षेत्र में काम करने वाले कलाकारों और फिल्म निर्माताओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेगा।

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