आशा विनय सिंह बैस की कलम से : विश्व पोहा दिवस

नई दिल्ली। कहते हैं कि ‘पोहा’ महाराष्ट्र से होते हुए इंदौर पहुंचा। लेकिन इंदौर वासियों ने पोहे (पोए) को ऐसे अपनाया, इसके साथ इतने प्रयोग किए, उसका सुबह से लेकर शाम तक इतना और इस तरह प्रयोग किया कि इंदौर पोए का और पोए इंदौर के हो गया। इंदौर विश्व की पोहा राजधानी बन गया। इंदौर के राजीव नेमा जी के आह्वान के कारण 07 जून ‘विश्व पोहा दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।

हम यूपी वाले पोहे को चिवड़ा (चिउड़ा) बोलते हैं। बचपन में शाम को भुना हुआ सादा चिवड़ा चना-चबैना की तरह नमक-मिर्च या गुड़ के साथ खाया है। बाद में भुने हुए चिवड़ा में मूंगफली, चना, धनिया मिलाकर खाने की भी कुछ यादें हैं। कच्चा चिवड़ा एकाध बार दूध के साथ जरूर खाया है। दही-चिवड़ा मकर संक्रांति के दिन शुभ के रूप में चखा है।

लेकिन जिसे असल ‘पोहा’ कहते हैं उसे पहली बार मुंबई में पली-बढ़ी मेरी श्रीमती जी ने ब्रेकफास्ट के रूप में परोसा तो मुझे बड़ा स्वादिष्ट लगा। फिर तो मैं अवकाश के दिन इसकी डिमांड करने लगा और श्रीमती जी ने कभी निराश भी नहीं किया। हालांकि मैंने कभी इसकी रेसिपी जानने या इसे खुद बनाने की चेष्टा नहीं किया।

फिर एक बार ऐसा हुआ कि पुत्री के जन्म के समय श्रीमती जी लंबे समय के लिए मायके चली गई। तब हैदराबाद में अकेले रह रहे मेरे बिहारी मित्र स्वर्गीय प्रभाकर (ऑडिटर) ने मुझे चूड़ा-दही से पहली बार परिचित कराया। इसकी रेसिपी अत्यंत आसान थी। बस चूड़ा को एक बार पानी में धुल लो, फिर उसमें दही डालकर या ऐसे ही कुछ समय के लिए रख दो। थोड़ी देर में चूड़ा फूल कर मुलायम हो जाएगा। अब उसमें स्वादानुसार चीनी/गुड़ डालकर भोग लगा लो। मई-जून की तपती गर्मी में इससे सरल, स्वादिष्ट और पेट को शीतल रखने वाला शायद ही कोई आहार हो।

सोने पर सुहागा यह कि इसे उदरस्थ करने के बाद देर तक भूख नहीं लगती, पेट भरा-भरा सा रहता है। आज ही गूगल बाबा से पता चला कि इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर होता है। दही- चूड़ा कैलोरी, प्रोटीन, आयरन जैसे पौष्टिक तत्वों से युक्त होता है। यानि स्वाद भरपूर और पौष्टिकता से भी न रहे दूर।

पोहा होता होगा मालवा, इंदौर, हैदराबाद, महाराष्ट्र का फेवरिट। लेकिन इसको बनाने में पर्याप्त समय के साथ नमकीन, मिर्च, प्याज, टमाटर, नींबू जैसी तमाम चीजें और एक अदद पत्नी/मां/भाभी/बहन चाहिए या व्यक्ति खुद भी बनाने-खाने का शौकीन हो। कहते हैं कि इसे खाने के बाद चाय न पियो तो मोक्ष प्राप्त नहीं होता है।

लेकिन अपने चूड़ा-दही में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। कोई भी और कुछ भी एक्स्ट्रा नहीं चाहिए। मेरे जैसा नौसिखिया भी आसानी से बना सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि रात को पत्नी से कहासुनी हो जाए तो भी ब्रेकफास्ट की चिंता नहीं रहती क्योंकि- “चूड़ा-दही है न”

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

#विश्वपोहादिवस

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