आशा विनय सिंह बैस की कलम से : विश्व विख्यात पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा

आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। उस दिन स्कूल की छुट्टी थी, शायद रविवार था। पापा बोले, “मुन्ना चलो एक बड़ी हस्ती से मिला के लाता हूँ।” मैं तो घूमने के लिए हमेशा ही तैयार रहता था, सो पापा के साथ चल दिया। उस दिन लालगंज-कानपुर रोड पर कुम्हरौरा मोड़ के ठीक सामने स्थित ‘उतरा गौरी भवन’ में विश्व विख्यात पर्यवारणविद और चिपको आंदोलन के प्रणेता सर्वश्री सुंदरलाल बहुगुणा आए हुए थे। छोटा कार्यक्रम था , कुछ गिने चुने लोग थे। बहुगुणा जी पर्यावरण के बारे में हम सबको बता, समझा और जागरूक कर ही रहे थे कि सड़क की तरफ से बहुत जोर से ब्रेक लगाने और धड़ाम से कुछ गिरने की तेज आवाज आई।

हम सब बाहर निकलकर भागे तो देखते हैं कि कुम्हरौरा मोड़ के ठीक सामने रोडवेज की बस के आगे वाले पहियों के बीचोबीच एक बाइक पड़ी हुई है और बाइक सवार लापता है। हम सब लोगों को लगा कि शायद बाइक सवार बस के पहिये के नीचे आ गया है। आगे बढ़े तो देखते हैं कि बाइक सवार बस के नीचे बिल्कुल सुरक्षित पड़ा हुआ है। वो सदमे में जरूर था। लोगों ने उसे बाहर निकाला, पानी पिलाया। थोड़ी देर में वह बिल्कुल सामान्य हो गया। सभी लोग कहने लगे कि यह तो चमत्कार ही हो गया कि कोई बस से बिल्कुल सामने से टकराये और उसको बिल्कुल भी चोट न आए। तभी किसी ने कहा, “जहां पर बहुगुणा जी जैसे पुण्यात्मा हों, वहां मनुष्य क्या, किसी भी प्राणी मात्र का अहित हो ही नहीं सकता है।”

मैं जैसे-जैसे बड़ा हुआ, बहुगुणा जी की महानता से परिचित होता गया। समाजसेवा के लिए राजनीति छोड़ने वाले वह आज के इस घोर कलयुग में विरले व्यक्ति थे। पेड़ों, जंगलों की कटाई से खफा होकर पद्म पुरस्कार ठुकरा देने जैसा त्याग केवल वही कर सकते थे। जल, जंगल, जमीन की वास्तविक लड़ाई उन्होंने धरातल पर लड़ी। चिपको आंदोलन से लेकर टिहरी बांध के विरोध तक, वह जीवन भर पर्यावरण के हित की लड़ाई लड़ते रहे। आज जब दिल्ली का तापमान 50 डिग्री पहुंचने वाला है तो बहुगुणा जी बहुत याद आते हैं।

पर्यावरण और प्राणी मात्र की रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले सुंदरलाल बहुगुणा के निम्नलिखित ‘घोष वाक्य’ को जीवन में अपनाकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सकती है-
“क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार;
जिंदा रहने के आधार।।”

#बहुगुणा जी की पुण्यतिथि पर

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