आशा विनय सिंह बैस की कलम से : जब गांव की लड़की की शादी पूरे गांव की बिटिया की शादी हुआ करती थी

रायबरेली। यह उन दिनों की बात है जब गांव में प्रधान चुने जाने पर सिर्फ प्रतिष्ठा मिलती थी पैसे नहीं। तब गांव की किसी लड़की की शादी पूरे गांव की बिटिया की शादी हुआ करती थी। पूरे गांव की बारात रुकने का स्थान प्राइमरी स्कूल तय था। बारातियों के लिए चारपाई, चद्दर, दरी, तकिया आदि पूरे गांव से बारात घर यानी प्राइमरी स्कूल जाते थे। बारातियों के भोजन करने से पहले कोई भी घराती भोजन न करता, चाहे रात के 12 ही क्यों न बज जाएं क्योंकि किसी एक परिवार की इज्जत पूरे गांव की इज्जत हुआ करती थी। मेरे गांव बरी, जिला – रायबरेली में नाउ टोला के एक परिवार में शादी थी। समय से बारात आई और बारात का यथायोग्य स्वागत हुआ। विवाह की अन्य रस्में भी सकुशल संपन्न हो गई।

सुबह नाउ बाबा के घर के बाएं तरफ छप्पर में बारातियों के लिए जलेबी बन रही थी। मुख्य हलवाई शायद लघु या दीर्घ शंका के लिए कुछ समय के लिए बाहर गया तो उसका सहायक जलेबी बनाने लगा। अचानक से आंच ज्यादा तेज़ हो गई और कड़ाही का तेल बहुत तेज़ी से उबलने लगा। हलवाई के सहायक को पता नहीं क्या सूझा, उसने खौलते हुए तेल को नियंत्रित करने के लिए उसमें एक मग पानी डाल दिया। पानी पड़ते ही तेल से आग की तेज लपट उठी और छप्पर तक जा पहुंची। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, पूरा छप्पर धू-धू करके जलने लगा। गांव के लोग तालाब, कुंए और नल से बाल्टी में पानी भरकर छप्पर पर डालने लगे।

छप्पर के नीचे ब्रेकफास्ट का पूरा सामान और गांव भर के लोगों से एकत्र की गई दरी, चद्दर आदि रखी हुई थी। लोगों के पूरे प्रयास के बावजूद पूरा छप्पर और उसके नीचे रखी दरी, चद्दर आदि भी काफी हद तक आग की चपेट में आ चुके थे। गनीमत यह रही कि आग की लपट नाऊ बाबा के घर तक नहीं पहुंची। अन्यथा अगर किसी एक छप्पर में भी आग लग जाती तो लगभग चौकोर बसा हुआ पूरा नाऊ टोला और अगर हवा तेज होती तो शायद पूरा गांव ही जलकर राख हो जाता।

खैर रंग में भंग तो पड़ ही चुका था। बारात किसी तरह विदा हुई। लड़की की विदाई के बाद लड़की के पिता यानी नाऊ बाबा हाथ जोड़कर रोते हुए गांव वालों से कहने लगे कि आग से आप सब लोगों की दरी, चद्दर वगैरह जल गई है, जैसे भी बन पड़ेगा मैं इसकी भरपाई करने की कोशिश करूंगा।

मुझे अच्छी तरह याद है कि सभी गांव वालों ने तब एकमत से कहा था कि बिटिया सिर्फ तुम्हारी नहीं, हमारी भी थी। इसलिए नुकसान भी हम मिलकर बर्दाश्त करेंगे। तुम्हें किसी भी सामान की भरपाई करने की जरूरत नहीं है। इससे भी आगे बढ़कर जिन गांव वालों को व्यवहार में 2/- रुपये देने थे, उन्होंने 5 रुपये दिए। 5 वालों ने 11 रुपये और 11 वालों ने 21/- रुपये का कन्यादान किया।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

आशा विनय सिंह बैस
ग्राम-बरी, पोस्ट-मेरुई
जिला- रायबरेली

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