रायबरेली। वैसे तो सारे भगवान और इष्ट सबके हैं और सब उनके हैं। लेकिन 64 कलाओं में पारंगत भगवान कृष्ण कुछ ज्यादा ही सबके हैं क्योंकि माताएं उनमें नटखट बालक, युवतियां उनमें आदर्श प्रेमी और बुजुर्ग लोग उनमें गीता का ज्ञान देने वाला परम ब्रह्म पाते हैं।
स्वर्गीय प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस्कॉन मंदिर कृष्ण भक्ति का पूरे विश्व में प्रचार और प्रसार कर रहे हैं। अपने जीवन में मुझे मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली के इस्कॉन मंदिरों में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। उक्त इस्कॉन मंदिरों का मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा है। सभी मंदिरों में साफ सफाई की अति उत्तम व्यवस्था है। कोई जबरदस्ती, झपटमारी नहीं है कि इस विग्रह पर पैसा चढ़ाइए, उस दुकान से फूल खरीदिए या उस स्टॉल से प्रसाद लीजिए। मिलेगा आपको सब कुछ लेकिन आप अपनी श्रद्धानुसार चढ़ावा चढ़ाने, कुछ खरीदने या न खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं।
तमाम भाषाओं, देशों, नस्लों के सभ्य, सुसंस्कृत भक्त इन मंदिरों में दर्शन करने आते हैं। इस्कॉन प्रांगण में कृष्ण भक्ति में आकंठ डूबे, नृत्य करते तमाम जानी-मानी हस्तियों को देखता हूं तो आश्वस्त होता हूँ कि तलवार के जोर और राइस बैग के लालच से ही नहीं अपितु निष्काम प्रेम और भक्ति द्वारा भी अपने धर्म का प्रचार- प्रसार किया जा सकता है बल्कि बेहतर और प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
भगवान कृष्ण की भक्ति में अपने तन मन की सुध-बुध खोकर परम पद प्राप्त करने की चाहना लेकर इन मंदिरों में आने वाले विश्व भर के तमाम कृष्ण भक्त इस सत्य को पुष्ट और प्रमाणित करते हैं।
जय श्री कृष्ण
(आशा विनय सिंह बैस)
कृष्ण भक्त