आशा विनय सिंह बैस की कलम से : पी.वी. नरसिंह राव जयंती विशेष

रायबरेली। स्वर्गीय पी.वी. नरसिंह राव का पूरा जीवन विरोधाभास की कहानी है! 1991 में प्रणव मुखर्जी के समर्थन से प्रधानमंत्री बने लेकिन उनको वित्तमंत्री न बनाकर राजनीति के क्षेत्र में बिल्कुल नौसिखिए आरबीआई के पूर्व गवर्नर मनमोहन सिंह पर भरोसा किया। 1966 में इंदिरा गांधी द्वारा रुपये का अवमूल्यन करने के खुद विरोधी रहे लेकिन जब खुद सत्तासीन हुए तो 48 घंटों के अंतराल में दो बार रुपये का अवमूल्यन कर डाला। 21 टन सोना इंग्लैंड में गिरवी रखकर विदेशी कर्जों को देर से चुकाने की विश्व बैंक से मोहलत ले ली।

धुर कांग्रेसी होने के बावजूद, कांग्रेस की पारंपरिक नीतियों के विरुद्ध भारतीय बाजार को वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के माध्यम से दुनिया के लिए खोला। लाइसेंस राज के तीन स्तंभों को ध्वस्त करते हुए उदारीकरण की शुरूआत की। विश्व स्तर पर खाड़ी युद्ध की आग और अपने ही देश मे मंडल कमीशन की आंच का सामना किया और काफी हद तक देश को स्थिर और गतिमान रखा।

लेकिन जिस कारण से श्रद्धेय पी.वी. नरसिंह राव का फैन हूँ, वह है सदियों के कलंक बाबरी ढांचे के विध्वंस को मौन सहमति। 06 दिसंबर 1992 को उनका स्टाफ बार बार उनसे कारसेवकों पर कार्रवाई के संबंध में पूछता रहा लेकिन कई भाषाओं के प्रकांड विद्वान नरसिंहराव साहब ने कलंक के पूर्णतया मिटने तक एक भी भाषा मे अपने स्टाफ को जवाब न दिया।

उनके इस ऐतिहासिक मौन पर वह एक ओर जहां करोड़ों सनातनियों के ह्रदय में बस गए, वहीं दूसरी ओर जिस कांग्रेस के लिए वह जिए और मरे, उसी कांग्रेस पार्टी ने सेक्युलर वोटों के लालच में, उनका देहावसान होने के बाद उनके पार्थिव शरीर को अपने कार्यालय में रखने तक की अनुमति नहीं दी।
#PVNarasimhaRao की जयंती पर

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं और दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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