आशा विनय सिंह बैस की कलम से… मुफ्त का चक्कर

नई दिल्ली । एयर फोर्स अकैडमी हैदराबाद के मुख्य गेट यानी अन्नाराम की तरफ से अंदर प्रवेश करिए और अगर नाक की सीध में चलते जाइए तो आप ट्विन हैंगर के पास से गुजरते हुए डीएससी गेट पार करते ही एयरफोर्स एकेडमी की सीमा से बाहर आम, अनार अंगूरों के बाग में पहुंच जाएंगे। इन बागों की विशेषता यह थी कि वहां जाकर आप सीधे बागान मालिक के कारिदों से सस्ते रेट पर ताजे अंगूर, आम आदि खरीद सकते थे। इन बागानों की एक और खास बात यह थी कि इनमें फुटकर सामान (एक-आध किलो) बिकता नहीं था और तोड़कर आपने जो खा लिया उसको वे हिसाब में गिनते नहीं थे।

मतलब यह कि अगर आपने पांच किलो अंगूर लिए और ढाई सौ ग्राम बाग से तोड़कर खा लिए तो पैसे आपसे सिर्फ पांच किलो के ही लिए जाएंगे। अब आप चाहे इसे उनकी उदारता समझें या व्यवसायिक समझ की कमी। हम लोग इन बागों में अंगूर खरीदने समूह में जाते थे और पांच-दस किलो अंगूर एक साथ लेकर आते थे। 100-200 सौ ग्राम अंगूर सीधे बाग से तोड़कर खा भी लिया करते थे। लेकिन कुछ लोग ज्यादा ही होशियार थे। वह दो किलो अंगूर लेतेऔर आधा किलो बाग से तोड़ कर खा लेते थे। मुफ्त के अंगूर खाकर वह समझते कि उन्होंने तीर मार लिया है और खूब खुश होते।

लेकिन बाद में होता यह कि इन अंगूरों के ऊपर डाला हुआ कीटनाशक अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देता। बिना धुला हुआ आधा किलो मुफ्त का अंगूर खाने वालों को लूज मोशन (टट्टी पड़नी) शुरू हो जाता। वे हग-हग के पस्त हो जाते। यानी जितना खाया होता उससे कहीं ज्यादा बाहर निकल जाता। इसलिए मुफ्त के चक्कर में कतई न पड़ें, परिणाम घातक होगा। बाकी आप लोग खुद समझदार हैं।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fourteen + 7 =