आशा विनय सिंह बैस की कलम से : हमारे यहां आम देशव्यापी है, सर्वव्यापी है

आशा विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। ईश्वर ने हमें जो तमाम नेमते दी हैं, उनमें से पका हुआ आम मेरे लिए सबसे मनभावन, स्वादिष्ट और लजीज है। हम भारतीय इस मामले में कुछ अधिक ही भाग्यशाली हैं क्योंकि हमारे यहां विश्व की सबसे अच्छी आम की किस्में पैदा होती हैं। दशहरी, लंगड़ा, हापुस, मालदा से लेकर अल्फांसो तक दर्जनों आम की किस्में ऐसी हैं जिनकी कल्पना करते, नाम लेते ही मुंह में पानी आ जाता है। इससे भी अच्छी बात यह कि हमारे यहां आम देशव्यापी है, सर्वव्यापी है। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम देश के किसी भी हिस्से में जाइये आपको आम के सीजन में फलों के राजा से जरूर भेंट होगी। दक्षिण भारत मे तो कुछ किस्में ऐसी हैं जो साल भर फलती रहती हैं यानि कि गर्मियों में उत्तर भारत मे इस लजीज फल का लुत्फ उठाइये और सर्दियों में दक्षिण के आम खाकर पेट पूजा कीजिए।

अब तो मेरी उम्र हो चली है इसलिए खान-पान के प्रति काफी सचेत हो गया हूँ। लेकिन उम्र का एक दौर ऐसा भी था जब मैं आम के प्रति दीवाना था, पागल था। उस समय सोचता था कि यदि मैं किसी राज्य का ‘राजा’ होता तो ‘फलों के इस राजा’ के बदले शायद अपना राजपाट दांव पर लगाने को तैयार हो जाता। घूस लेने वाली किसी पोस्ट पर होता तो आमों के बदले सारे ‘खास’ काम कर देता। शिक्षक होता तो मुझे आम की गुरु दक्षिणा देने वाले शिष्य को पूरे अंक देता। जज होता तो अपराधियों को भी आम के बदले चुनाव प्रचार करने की इजाजत दे देता।

अगर कोई उम्र में बड़ा व्यक्ति, चाचा, ताऊ, बड़ा भाई मुझे आम का लालच दे देते तो मैं उनके पीछे पूरा दिन हाथ बांधे घूमता रहता, उनकी हर बात मानता। उम्र में छोटा व्यक्ति , छोटा भाई, भतीजा, भांजा अगर मेरे लिए आम ले आता तो मैं उसके सारे अपराध माफ कर देता। उसका जो मन होता, उसे करने देता। पकड़े जाने पर उसके सारे अपराधों का बोझ मैं अपने सिर पर ले लेता।

वैसे तो मैं काफी सख्त लौंडा हूँ लेकिन आम देखते ही पिलपिला हो जाता हूँ, सच में ‘विनय’ हो जाता हूँ। अगर कोई लड़की मुझे गुलाब का फूल या हीरे की अंगूठी लेकर प्रोपोज करती (कल्पना करने में क्या जाता है) तो शायद मैं कुछ सोचता भी लेकिन आम की पेटी लेकर अगर वह मुझसे प्यार और नजाकत से- “Would you marry me” बोल देती तो मैं तुरत ही चट मंगनी, पट ब्याह कर लेता। हनीमून के लिए लखनऊ , मालदा या कोंकण का टिकट बुक कर लेता।

अगर मेरी अर्रेंज मैरिज होती और य मैं लड़की देखने जाता तो उससे उसकी पढ़ाई-लिखाई, नाच-गाना, सिलाई-कढ़ाई के बजाय उससे पूछता कि -” आम का जूस बनाना आता है? पना, अमावट बनाने में आनाकानी तो नहीं करोगी?”

दहेज मांगना यदि मेरे हाथ मे होता तो मैं 11 आम की पेटी, 21 बोतल आम का जूस और 31 अमावट के पीस मांग लेता। जनातियों से बारात में जाने वाले बच्चों का स्वागत कच्चे आम देकर, युवाओं का सत्कार पके आम से और बुजुर्गों का मान सम्मान पना पिलाकर करने को कहता।

फेरे लेते समय अपनी पत्नी को वचन देता कि तुम्हारे जीवन में पके आम जितनी मिठास भर दूंगा। तुम्हारा ‘आम’ से भी अधिक ध्यान रखूंगा। गर्मी में तुम्हें लंगड़ा और दशहरी तथा सर्दियों में मद्रासी आम खिलाऊंगा। अपने ससुर से कहता कि बिदाई के समय सभी बारातियों को पांच-पाँच किलो आम भेंट में दिए जाएं। मेरे प्रिय ‘आम’ तुम मेरे लिए बहुत ‘खास’ हो। तुम सिर्फ फलों के ही नहीं मेरे दिल, दिमाग, जबान और जज्बात के भी राजा हो।

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