आशा विनय सिंह बैस की कलम से : वट सावित्री व्रत के निहितार्थ

आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। 1.सत्यवान के अल्पायु होने की बात ज्ञात होने पर पिता की आपत्ति पर सावित्री कहती हैं : “आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है।”

2. किसी स्त्री की सच्ची निष्ठा और पतिपरायणता यमराज को भी वरदान देने पर विवश कर देती है। धर्मराज के बहुत समझाने के बाद भी पतिव्रता सावित्री के लगातार उनके पीछे चलने पर यमराज को कहना ही पड़ा :-
” मैं तुम्हें तीन वरदान देता हूँ। ”

3. सनातनी स्त्री पहला वरदान अपने या पति के लिए नहीं बल्कि अपने सास- ससुर के आरोग्य के लिए मांगती है:- “मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें।”

4. दूसरा वरदान वह अपने ससुर के ऐश्वर्य के लिए मांगती है :- “हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें।”

5. अंतिम वरदान वह अपने लिए मांगती हैं :- “मुझे 100 संतानों की मां होने का सौभाग्य मिले।”
ध्यान देने की बात यह है कि यमराज से वह अपने पति के प्राण नहीं मांगती क्योंकि आयु पूरा होने पर प्राण लेना उनका धर्म है। किंतु यमराज के तथास्तु कहते ही देवी सावित्री अपने बुद्धि चातुर्य का उपयोग करते हुए यमराज से कहती हैं कि “प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है। यह कैसे संभव है??” यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े।

6. वट वृक्ष को अपने आंचल का एक टुकड़ा बांधकर देवी सावित्री वट वृक्ष की महिमा और प्रकृति संरक्षण का संदेश भी देती हैं।

7. अपने निर्णय पर अटल, स्वयं से पहले परिवार की चिंता करने वाली, अपनी पतिपरायणता और बुद्धि चातुर्य से विधि का विधान बदल देनी वाली और पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत स्त्री सदियों तक सराही और पूजी जाती है। समस्त नारी शक्ति को वट सावित्री व्रत की हार्दिक बधाई।

आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

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