आशा विनय सिंह बैस की कलम से : अजमेर यात्रा!!

आशा विनय सिंह बैस, रायबरेली। अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित राजस्थान का दिल कहे जाने वाला अजमेर एक ऐतिहासिक और देश के सबसे प्राचीन नगरों में से एक है। इस नगर का मूल नाम ‘अजयमेरु’ था। यह नगर सातवीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था। सन् 1365 में मेवाड़ के शासक, 1556 में अकबर और 1770 से 1880 तक मेवाड़ तथा मारवाड़ के अनेक शासकों द्वारा शासित होकर अंत में 1881 में यह अंग्रेजों के आधिपत्य में चला गया।

अजमेर रेलवे स्टेशन से उतरने के बाद हम टैक्सी लेकर सीधे अनासागर झील गए। अनासागर एक विशाल कृत्रिम झील है जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के दादा अर्णोराज चौहान ने करवाया था। यह झील 13 किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई है। सबसे पहले हमने इसी झील के किनारे स्थित हिंदुजा सूरज महाराणा प्रताप की प्रतिमा के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित किए। वहां से अनासागर झील का विहंगम दृश्य अत्यंत मोहक लग रहा था।

वहां से हम लोग राजस्थान का हरिद्वार कहे जाने वाले पुष्कर के लिए आगे बढ़ चले। पुष्कर सैकड़ों घाटों वाली पुष्कर झील और विश्व के एकमात्र ब्रह्मा मंदिर तथा पुष्कर मेला के लिए जाना जाता है। ब्रह्मा मंदिर में दर्शन करने के बाद हम लोग पुष्कर झील गए और वहां पर विभिन्न घाटों को देखा। हालांकि झील की स्थिति और सफाई व्यवस्था कुछ खास ठीक नहीं लगी। यहाँ से हम लोग शॉपिंग के लिए आगे बढ़ गए। बाजार में पुत्र ने तलवारों की दुकान में फोटो खिंचवाना उचित समझा और बिटिया ने ऊंट की सवारी का आनंद लिया।

इस यात्रा के दौरान मुझे कुछ विदेशी दम्पतियों से मिलने का अवसर मिला। उनमें एक दंपति से मिलना बेहद सुखद रहा क्योंकि हमने उनसे “हेलो” से बातचीत की शुरुआत की और उन्होंने “नमस्कार” द्वारा हमारे अभिवादन का जवाब दिया। वे टूटी-फूटी हिंदी बोलकर हमारी भाषा में बोलने की कोशिश कर रहे थे। इस विदेशी दंपत्ति का पहनावा भी बिल्कुल भारतीय था। पुरुष ने कुर्ता पहन रखा था और महिला सलवार कुर्ते में अत्यंत शालीन लग रही थी।

आधुनिकता के इस दौर में जब कुछ मॉडर्न भारतीय लड़कियां अंग प्रदर्शन और छोटे वस्त्रों को ही आधुनिकता का एकमात्र पैमाना मानती हों और शादीशुदा महिलाएं बड़े जतन से अपने बालों के नीचे सिन्दूर की छोटी सी लीक को छुपाने का प्रयास करती हों, इस विदेशी महिला की सिंदूर भरी मांग किसी सुखद आश्चर्य से कम नहीं लगी!!!!

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आशा विनय सिंह बैस, लेखिका

नोट- समयाभाव के कारण तारागढ़ के प्रसिद्ध किले न जा सका।

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