इम्युनिटी बढ़ाने से निराशा भगाने तक ( मानसिक दिवालियापन )

डॉ. लोक सेतिया, विचारक

इंतज़ार करें आपको ये सब पाने का तरीका भी बताना हैं वो भी बिना कोई सामान बेचे कोई पैसा कोई कीमत कोई लागत खर्च किये। पहले सोचना ज़रूरी है ये क्या हो रहा है हर कोई खुद को खुदा से बढ़कर सब करने समझने वाला बताता है। जाने कितनी दवाएं कितनी चीज़ें हमेशा कितने अन्य कार्यों में उपयोगी बताई जाती थीं बिकती खरीदी जाती थीं किसी ज़रूरत मकसद की खातिर। अचानक कोरोना के आने के बाद समझाया जाने लगा कि उनसे इम्युनिटी बढ़ती है और कोरोना से बचने को अपनी इम्युनिटी बढ़ाना सबसे ज़रूरी है।

लगता है पैसे ने सभी को पागलपन की सीमा तक खुदगर्ज़ बना दिया है तभी इस तरह अपना सामान बेचने को निराधार दावे किये जाने लगे हैं। सभी आपको इक डर दिखलाकर बचाने को उपाय बता रहे हैं जबकि कोई नहीं जानता वास्तव में उस से कोई लाभ होगा या नहीं और सिर्फ किसी की तिजोरी भरनी है। जहां तमाम लोगों ने ईश्वर तक को बाज़ार में बेचा है भोले भाले लोगों को डर और लालच के जाल में उलझाकर वहां ये होना अचरज की बात नहीं है। क्या हम ठगों की नगरी नहीं ऐसे देश में रहते हैं जहां हर कोई दूसरे को ठगने के ढंग तलाश कर रहा है और ऐसे में खुद भी ठगी करते करते किसी ठग का शिकार बन जाता है। हमने घटिया फ़िल्मी पटकथा में देखा था नकली डॉक्टर मरते हुए रोगी को नाच गाना दिखलाकर तालियां बटोरते हैं। क्या गंभीर जानलेवा रोग का उपचार करते समय ऐसा करना और उसका वीडियो बनाकर वॉयरल करना सही मानसिकता है या फिर इक दिखावे का पागलपन है। 

लेकिन कमाल की बात है यहां देश के नेताओं अधिकारियों सभी विभाग वालों की कब से आदत सी बन गई है अपने वास्तविक कर्तव्य अपने कार्य को छोड़ तमाम अन्य कार्यों में संलगन होकर मौज मस्ती को अपना मनोरंजन का माध्यम बनाकर लोगों का ध्यान अपनी विफलताओं से हटाना। कोई अधिकारी जनसमस्याओं को छोड़कर सांस्कृतिक आयोजन या मुख्य अतिथि बन कर भाषण देता है कोई नेता किसी जाति समुदाय की सभाओं में शामिल होकर समाज की एकता से खिलवाड़ करता है।

पुलिस विभाग अपराध पर अंकुश लगाने की बात छोड़कर नृत्य संगीत का कार्यक्रम आयोजित करता है। ऐसा तब उचित होता अगर उन्होंने जनता की समस्याओं का निदान कर दिया होता। खेद की बात है तमाम बड़े राजनेता शोहरत पाने की होड़ में कुछ सार्थक बदलाव करने की जगह यही करते नज़र आते हैं। उस से भी बड़ा अनुचित कार्य इन सभी कार्यों पर जनता का धन खर्च करना किसी गुनाह से कम नहीं है। 

अधिक विवरण की ज़रूरत नहीं है समझने को इतना बहुत है। मगर आपको इम्युनिटी बढ़ाने और निराशा को छोड़ आशावादी दृष्टिकोण अपनाने को बेहद साधारण आम तरीका बताना है। सबसे पहले आपको नफ़रत करना किसी से ईर्ष्या जलन रखना और तथाकथित आगे बढ़ने ऊपर पहुंचने की अंधी दौड़ को छोड़ सादगी से जीवन जीना सीखना होगा। खुद को बड़ा किसी को छोटा बनाने की कोशिश आपको सही मायने में नीचे ले जाती है। पहाड़ पर खड़े होकर खुद को ऊंचा समझना सही नहीं है ऐसे में आपका कद बौना होता है।

पैसा दौलत पद नाम शोहरत अगर अच्छे कार्यों से मिलती है अपनी काबलियत से तभी वास्तविक है अन्यथा अनुचित ढंग छल कपट से अर्जित नाम काले धंधे रिश्वत की कमाई लूट की आमदनी आपसे आपका व्यक्तत्व छीन लेती है और आप इंसान नहीं मशीन की तरह बेजान बन जाते हैं जो खराब होते ही कबाड़ की तरह शहर घर से बाहर फैंकी जाती है। केवल अपने लिए सब कुछ की चाहत इंसान को हैवानियत की तरफ लेकर जाती है। आदमी वही है जो सभी की भलाई की सोच रखकर समाज की खातिर देश की खातिर योगदान देना जानता हो।

झूठ से कभी आपका कल्याण नहीं हो सकता है झूठ आपको भीतर से खोखला कर देता है गेंहूं को घुन की तरह मिटा देता है। सच की ईमानदारी की कठिन डगर ही आपको साहस देती है और आपके अंदर की शक्ति आपको हर अन्याय अत्याचार से टकराने लड़ने की इच्छाशक्ति की तरह समस्याओं से निपटने का हौंसला देती है। ऐसा व्यक्ति घबराता नहीं हालात से लड़ता है जीत जाता है। मुमकिन है ऐसा भरोसा करने वाला हर रोग हर दशा में आशा का दामन पकड़ शान से जीता ही नहीं मरता भी उसी शान से है। मौत से डरकर जीना ज़िंदगी नहीं है।

हम किसी पर भी भरोसा नहीं करते खुद भी भरोसे के काबिल नहीं बन सकते हैं जिस ढंग से हमने जीना शुरू किया है डर और अविश्वास को बढ़ावा देकर। सरकार वयवस्था संस्थाओं पर क्या अब भगवान पर भी भरोसा नहीं करते हैं। अपने आत्मविश्वास से बढ़कर कोई इम्युनिटी कोई सुरक्षा होती नहीं है और आत्मविश्वास सच्चाई भलाई ईमानदारी की राह चलकर मिलता है। आडंबर झूठ छल कपट या दिखावे की महानता से कदापि नहीं।

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