अमिताभ अमित की कलम से – पुरानी यादें राखी की…

एक मोटी राखी हुआ करती थी, बडी सी फोम वाली…
उपर शुभ लाभ बैठे होते थे..!
दो रूपये से लेकर पाँच रूपये तक की मोटी सी बडी़ राखी शहर-गांव की दुकानों में मिला करती थी..!
वो दुकानें जो प्रतिबिंब हुआ करती थी सादगी की…!

मेरी फूआ यानी मेरे पिताजी की बहनें तब रोड़वेज बस से आया करती थी..!
पिताजी सुनाते हैं कि
जैसे ही बस, बस अड्डे पर आती…
वे भाग लिया करते थे…
एक पुराना झोला…जिसमें बताशे, तिकड़ी या लड्डू हुआ करता था और खुशकिस्मती से बड़की फुआ जो मोकामा के बड़े से कस्बे में ब्याही थी, फल के नाम पर हुआ करते थे दर्जन भर केले…!

ये वो दौर था जब राखी बंधवाने का इतना शौक की जब तक कलाई से कोहनी तक सब कुछ धागों से भर ना जाता, तब तक चैन नहीं पड़ता था…! मुंह में घुमते उस टिकड़ी-गुजिये की मिठास आजकल के डिब्बे वाली मिठाई से हजार गुना बेहतर थी!
फिर जेब से एक मुड़ा-तुड़ा ग्रामीण पृष्ठभुमि को करता हुआ, ट्रैक्टर छाप पाँच रूपये का कागज का नोट पा के फुआ इतनी खुश हो जाया करती थी कि जैसे उन्हे कुबेर का खजाना मिल गया हो…!

शाम को घर में खीर – पूडी़ का दौर चलता..!
उस समय काल में पिज्जा और बर्गर वेटिंग रूम में ही विराजित थे, बाजारीकरण की हवा कोसों दूर थी…!

राखी का धागा इतना पवित्र माना जाता कि आस – पड़ोस की लड़कियों से भी राखी बंधवाने में कोई परहेज नहीं था…!
मतलब रक्षा वचन, संस्कृति में इतना घुला – मिला था कि बहुत सी बातें अंडरस्टूड हुआ करती थी…!
पर अब वक्त बदल गया…
कच्चे मकान गाय के गोबर और सफेदी की पुताई का चोला उतार कर कंक्रीट के जंगलो में तब्दील हो गये और दिखावे का उबटन लगाकर हमने बना ली उन जंगलो के चौतरफा खानापूर्ति की दीवारें जिसमें बस अब औपचारिकता की हवा आती है..!

दो रूपये की फोम की राखी की जगह चाईनिज राखियों ने ले ली और टिकड़ी व लड्डू का अपडेटेड वर्जन भी आ गया….!
चीजें बदली तो संस्कार भी बदल गये…!!
रक्षा सुत्र कोरियर होने लगा और बहनों की जगह बस से ‘अमेजॉन’ का लिफाफा उतरने लगा..!
दस के नोट को दस गुना बढा़कर ऑनलाइन पेमेंट किया जाने लगा और चेहरे पर मुस्कुराहट रिश्तों की गर्माइश से नहीं वरन केशबैक से छाने लगी…!
वक्त ऐसा कि वक्त ही ना बचा…
और जो वक्त बचा उसमें रिश्तों की मिठास का जायका ही न रहा..!

वाकई अब बहनें बस से नहीं आती…
अब भाई दस का नोट नहीं निकालता…
अब पडौ़स से राखी नहीं आती…
अब धागा दिखावटी हो गया…
अब मिठाई मिलावटी हो गया…
अब बस त्योहार सजावटी हो गया…..

खैर….रक्षा बंधन की अनंत शुभकामनाएं…!!
ईश्वर सब मंगल रखे…!!!

amitabh amit
अमिताभ अमित : व्यंगकार

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