सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिन्देश्वर पाठक

श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा। ‘सुलभ इंटरनेशनल’ के द्वारा मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्रों में एक विश्वस्तरीय क्रांति की पहल करने वाले डॉ. बिंदेश्वर पाठक का निधन विगत १५ अगस्त, २०२३ को नई दिल्ली में हो गया। क्या इसे संयोग कहा जाए कि ८० वर्ष की उम्र में बिंदेश्वर पाठक देश के राष्ट्रीय त्योहार स्वतंत्रता दिवस अर्थात १५ अगस्त २०२३ को दिल्ली स्थित ‘सुलभ इंटरनेशनल कार्यालय’ में स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हुए। उन्होंने कार्यालय में तिरंगा का ध्वजारोहण किया और उसके कुछ देर बाद ही अचानक से गिर गए। उन्हें तत्काल इलाज के लिए दिल्ली के AIIMS में भर्ती कराया गया। जहां दोपहर १.४२ बजे चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। चिकित्सको ने मौत का कारण ‘कार्डियक अरेस्ट’ को बताया।

स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी डॉ. बिन्देश्वर पाठक का जन्म बिहार प्रान्त के वैशाली जिला के रामपुर बघेल ग्राम एक पारंपरिक ब्रह्मण परिवार में २ अप्रेल १९४३ में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम के ही पाठशाला से पूर्ण कर उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गए और वहीं से उन्होने १९६४ में समाज शास्त्र में स्नातक की परीक्षा पास की। १९८० में उन्होने पटना से ही स्नातकोत्तर तथा १९८५ में पटना विश्वविद्यालय से ‘बिहार में कम लागत की सफाई-प्रणाली के माध्यम से सफाई-कर्मियों की मुक्ति (लिबरेशन ऑफ स्कैवेन्जर्स थ्रू लो कास्ट सेनिटेशन इन बिहार) शोध-प्रबंध पर ‘पीएचडी’ कर डॉक्टरेट की उपाधि अर्जित की।

सन १९६७ में ही बिंदेश्वर पाठक जी ‘बिहार गाँधी जन्म शताब्दी समारोह समिति’ में एक प्रचारक के रूप में अपना कार्य प्रारंभ किए। वर्ष १९७० में बिहार सरकार के मंत्री शत्रुघ्न शरण सिंह के सुझाव पर ‘सुलभ शौचालय संस्थान’ की स्थापना की। बिहार से यह अभियान शुरू होकर बंगाल तक पहुँचा, जो वर्ष १९८० आते-आते सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों तक जा पहुँचा। सन, १९८० में यह ‘सुलभ शौचालय संस्थान’ अपने विश्वस्तरीय व्यापक स्वरूप को प्राप्त कर ‘सुलभ इण्टरनेशनल सोशल सर्विस आर्गनाइजेशन’ के रूप में परिणत हो गया। फिर इसे जब ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद द्वारा विशेष सलाहकार का विशेष दर्जा प्रदान किया गया, तब यह अंतरराष्ट्रीय गौरव को प्राप्त कर लिया।

बिंदेश्वर पाठक जी न केवल एक समाज सुधारक और सेवक थे, बल्कि वे उच्चकोटि के लेखक और वक्ता के रूप में कई पुस्तकों की रचना भी किए हैं। स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधित देश भर में अनगिनत कार्यशालाओं और सम्मेलनों में उन्होंने अभूतपूर्व अपना योगदान दिया। बिंदेश्वर पाठक जी एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और पले-बड़े होने पर भी अपने परिजन की इच्छा के विरूद्ध उन्होंने अपनी तरुणाई १९६८ से ही भंगी के उपेक्षित सामाजिक कार्य से जुड़े और उनकी पीड़ा को महसूस किया। फिर कालेज के विद्यार्थी की अवस्था में ही महात्मा गाँधी जी के हरिजन सेवा और स्वच्छता कार्य से प्रभावित होकर ही उन्होंने ‘भंगी मुक्ति और स्वच्छता के लिए सर्वसुलभ संसाधन’ जैसे विषय को अपने अध्ययन के विषय के रूप में चुना और इस दिशा में गहन शोध भी किया।

पर्यावरण स्वच्छता और मानवीय स्वच्छता महात्मा गाँधी जी का सबसे प्रिय विषय था। वे अक्सर अपने भाषणों में घोषणा किया करते थे कि ‘स्वच्छता ईश्वरीय भक्ति के बाद और भोजन के पूर्व की आवश्यकता है।’ स्वच्छता के बारे में गाँधी जी का विचार स्पष्ट था। किसी को भी केवल अपनी आजीविका कमाने के लिए दूसरों के मानव मल को साफ नहीं करना चाहिए और न ही उसे ढोना चाहिए। बल्कि मानव अपशिष्ट निपटान प्रणाली की कोई अचूक वैज्ञानिक पद्धति होनी चाहिए। जो लोग स्वच्छता के काम में लगे हैं, उनके साथ अछूतों जैसा व्यवहार न किया जाए। उन्हें समाज में मान सम्मान मिलना चाहिए।

गाँधी के बाद भारत में किसी भी अन्य व्यक्ति की तुलना में डॉ. बिंदेश्वर पाठक ही वह व्यक्ति रहे हैं, जिन्होंने स्वच्छता और अछूतों के उत्थान को ही अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उन्होंने गाँधी जी के स्वच्छता आंदोलन को मूर्त आयाम दिया और सफाई कर्मियों के प्रति भेदभाव के खिलाफ अपनी सैद्धांतिक लड़ाई को विश्वस्तरीय बनाया। दृढ़निश्चयी बिंदेश्वर पाठक जी ने भंगी की दशा और दिशा सुधारने के उद्देश्य से ही मानव अधिकार, पर्यावरणीय स्वच्छता, ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों और शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन आदि क्षेत्रों में विराट कार्य करने हेतु १९७० में सामाजिक सेवा संगठन ‘सुलभ इंटरनेशनल’ जैसी संस्था की स्थापना कर भारतीय इतिहास में ‘भिंगी मुक्ति और स्वच्छता’ संबंधित एक अद्भुत आंदोलन का शुभारंभ किया। उन्होंने सुलभ शौचालयों के द्वारा बिना दुर्गंध वाली बायोगैस के प्रयोग की खोज की। इस सुलभ तकनीकि का प्रयोग भारत सहित अनेक विकाशशील राष्ट्रों में बहुतायत से होता है। सुलभ शौचालयों से निकलने वाले अपशिष्ट का खाद के रूप में प्रयोग को भी प्रोत्साहित किया। कालांतर में इसकी और इसके प्रति समर्पित कार्यकर्ताओं की संख्या निरंतर बढ़ती ही गई। अब तो इस संस्था के पास ५०,००० से भी अधिक कार्यकर्ता हैं। “किसी को भी शौच के लिए बाहर नहीं जाना चाहिए और भारत के हर घर में शौचालय होना चाहिए” डॉ. पाठक का यह दृढ़ संकल्प ही आज मुख्य रूप से सुलभ स्वच्छता आंदोलन के रूप में जाना जाता है।

डॉ. पाठक के महाकाव्यात्मक संघर्ष ने दुनिया को यह समझने में मदद की है कि सुलभ शौचालय (दो गड्ढों वाला शौचालय) की तकनीक, जिसे उन्होंने संशोधित किया, विकसित किया और बड़े पैमाने पर लागू किया। लगभग तीन अरब आबादी के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ मानव अपशिष्ट निपटान प्रणाली हो सकती है। डॉ. बिंदेश्वर पाठक वर्तमान भारत के एक महान मानवतावादी और समाज सुधारक रहे हैं। उनमें विशेष कर समाज के कमजोर दलित वर्गों के उद्धार हेतु एक विराट दार्शनिक का दृष्टिकोण और अटूट उत्साह रहा है । वह एक नई संस्कृति के प्रतीक हैं, जो गरीबों को गले लगाती है और श्रम की गरिमा की प्रशंसा करती है। वंचितों के प्रति उनका असीम प्रेम असंख्य और मूर्त तरीकों से अभिव्यक्त होता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि उनका जन्म ही असहायों की मदद के लिए हुआ था।

डॉ. बिंदेश्वर पाठक पारंपरिक रूप से अछूत कहे जाने वाले लाखों सफाई कर्मियों (मानव मल की सफ़ाई करने और ढोने वाले) के मानवाधिकारों और सम्मान की रक्षा हेतु एक राष्ट्रीय धर्मयुद्ध के प्रणेता रहे हैं। एक ओर तो उन्होंने उन अछूत कहे जाने वालों सफाईकर्मी को सामाजिक न्याय और सम्मान प्रदान किया है, तो दूसरी ओर उन्होंने करोड़ों-अरबों भारतीय सहित विश्व आबादी को मानव अपशिष्ट निपटान प्रणाली प्रदान कर उन्हें स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण प्रदान किया है।

डॉ. बिंदेश्वर पाठक कम लागत वाली पर्यावरण अनुकूल स्वच्छता के अलावा, जैव-ऊर्जा और जैव-उर्वरक, तरल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, गरीबी उन्मूलन और एकीकृत ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में उनका योगदान व्यापक रूप से जाना जाता है। वास्तव में वह एक पुनर्जागरण पुरुष ही थे। वह अपने आप में एक सामाजिक वैज्ञानिक, एक इंजीनियर, एक प्रशासक और एक संस्था-निर्माता के गुणों को समाहित करते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने इन सभी विशेषज्ञताओं का उपयोग दलित वर्गों को समृद्ध और सशक्त बनाने के लिए किया है।

अब सुलभ शौचालय देश भर के 1075 शहरों में 5,500 से अधिक सामुदायिक परिसरों का संचालन और रख रखाव कर रहा है। इन परिसरों में बिजली और 24 घंटे पानी की आपूर्ति है। परिसरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग बाड़े हैं। उपयोगकर्ताओं से शौचालय और स्नान सुविधाओं का उपयोग करने के लिए नाममात्र राशि ली जाती है। कुछ सुलभ परिसरों में शॉवर सुविधा, क्लोक-रूम, टेलीफोन और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ स्नानघर भी प्रदान किए जाते हैं। इन परिसरों का उनकी स्वच्छता और अच्छे प्रबंधन के कारण लोगों और अधिकारियों दोनों द्वारा व्यापक रूप से स्वागत किया गया है। भुगतान और उपयोग प्रणाली सार्वजनिक खजाने या स्थानीय निकायों पर कोई बोझ डाले बिना आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करती है।

“आप गरीबों की मदद कर रहे हैं”, पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 1992 में डॉ. पाठक को पर्यावरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार से सम्मानित करते हुए सराहना की। भारत के राष्ट्रपति ने पहले उन्हें ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। डॉ. पाठक को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक दर्जन सम्मान और प्रशंसाएं मिली हैं। भारत सरकार उन्हें द्वारा १९९१ में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् २००३ में पाठक जी का नाम विश्व के ५०० उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची में प्रकाशित किया गया। उनके मानवताजन्य तथा पर्यावरण संबंधित कार्य को सम्मानित करते हुए समयानुसार उन्हें अनगिनत राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। यथा – ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’, ‘एनर्जी ग्लोब पुरस्कार’, ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’, ‘स्टाकहोम वाटर पुरस्कार’, ‘अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन’ (आईआरईओ) का ‘अक्षय उर्जा पुरस्कार’ इत्यादि है। भारत में शौचालय क्रांति लाने वाले बिंदेश्वर पाठक को साल 2015 में ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था।

उन्होने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये ‘प्रियदर्शिनी पुरस्कार’ एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। इसके अलावा सन २००९ में ‘अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन’ (आईआरईओ) का ‘अक्षय उर्जा पुरस्कार’ भी प्राप्त किया। सुलभ इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्निकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एसआईआईटीआरएटी) की स्थापना 1984 में डॉ. पाठक ने स्वच्छता आंदोलन को तकनीकी सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की थी। एसआईटीआरएटी वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक शानदार टीम के साथ कई नई और टिकाऊ प्रौद्योगिकियों के साथ आया है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. पाठक ने रोड टू फ्रीडम सहित कई बहुप्रशंसित पुस्तकें लिखी हैं। इसके अलावा, वह अक्सर गंभीर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए विविध विषयों पर विचारोत्तेजक लेख लिखते रहे हैं। वह अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित एक विकास मासिक पत्रिका सुलभ इंडिया का संपादन करते थे। उन्होंने बड़ी संख्या में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनारों में भाग लिया और शोधपत्र प्रस्तुत किये हैं। डॉ. पाठक व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति हैं और उन्होंने सुलभ संदेश और प्रौद्योगिकी का प्रसार करने और क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के साथ पर्यावरण स्वच्छता और विकास पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए कई देशों का दौरा किया है। भारत और विदेश में प्रेस ने सुलभ के शानदार ट्रैक-रिकॉर्ड को व्यापक रूप से कवर किया है।

श्रीराम पुकार शर्मा, लेखक

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