फर्राटेधार धावक फ्लाइंग सिख, जीवन के अंतिम उड़ान पर

मनीषा झा, खड़गपुरः- 18 जून हमारे लिए एक दुखद दिन था, कारण हमारे प्यारे फ्लाइंग सिख- मिल्खा सिंह पंचतत्व में विलीन हो गये। मिल्खा सिंह कोरोना संक्रमित हो गए थे तथा कोरोना के बाद हुए संक्रमण से लड़ते-लड़ते हार गये और उन्होंने अंतिम विदाई लेकर हम देशवासियों को छोड़ कर चले गये। उनकी अंतिम विदाई के साथ ही फ्लाइंग सिख युग का अंत हो गया। कठिन परिश्रम, मजबूत इच्छाशक्ति, समर्पण व लगन मिल्खा सिंह की सफलता के मूल मंत्र थे। मिल्खा सिहं का जन्म 20 नवम्बर’1929 में वर्तमान पाकिस्तान में हुआ था। उनके माता-पिता और आठ भाई-बहन 1947 के भारत-पाकिस्तान के बंटबारे में मारे गये। वर्ष 1960 वे पाकिस्तान इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता भाग लेने का निमंत्रण मिला, जहां पाकिस्तान के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिक उनकी तेज रफ्तार के आगे टिक नहीं पाये।

उनके इस कारनामे से प्रभावित होकर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख की उपाधि दी। मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलों में 4 बार स्वर्ण पदक जीता था। 1958 में इंग्लैड में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में तत्कालीन विश्व रिकार्ड धारक मैल्कम स्पेंस को 400 मीटर (तब 440 गज होता था) की दौड़ में 46.6 सेकेंड में हराकर स्वतंत्र भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाया था। ऐसा करके वे भारत के प्रथम धावक बने जिन्होंने भारत को पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक दिलाया था।

मिल्खा सिंह को जीवन भर मलाल रहा कि वे ओलम्पिक खेलों में पदक नहीं जीत पाए। बात 1960 के रोम ओलम्पिक की है, जहां वे 400 मीटर की रेस में कांस्य पदक जीतने से मात्र सेकेंड के दसवें हिस्से चूक गये। वर्ष 1959 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह को उनके परिवार के सदस्यों व खेल मंत्री कीरेन रीजजू, पंजाब के राज्यपाल वी. पी. सिंह बडनोर सहित अनेक हस्तियों की उपस्थिति में अश्रुपुरित विदाई दी गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *