भारतीय मेजबानी में किसान अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी – 59 देश शामिल

किसानों के अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी 12-15 सितंबर 2023 से
59 से अधिक भागीदार देश खाद्य और कृषि पादप अनुवांशिक संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय संधि के अनुच्छेद 9 में शामिल किसानों के अधिकारों पर विचार विमर्श सराहनीय कार्य – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर यह सर्वविदित है कि भारत आदि अनादि काल से ही कृषि व गांव प्रधान देश रहा है। भारत की एक बड़ी जनसंख्या कृषि पर आधारित है, जो हमने अपने बचपन में ही प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पढ़ें हैं। इस क्षेत्र की समस्याओं के बारे में पढ़ें हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् कई सरकारें, समाधान, वित्त पोषण सहित सुधारो की लंबी फेरेस्त श्रृंखला हमें देखने को मिली है। कृषि क्षेत्र का पौराणिक, पारंपरिक स्तर से वर्तमान डिजिटल आधुनिकता में भी परिवर्तन कर कृषि संबंधी करीब हर अस्त्र आज प्रौद्योगिकी विज्ञान से लैस कर दिया गया है, परंतु फिर भी कृषकों की समस्याएं कम नहीं हुई है। पिछले कुछ महीनें पूर्व हमने देखे किस तरह पूरे देश में कृषक आंदोलन का माहौल था। जिसमें कुछ राज्यों का बहुत जोर था वह एमएसपी की मांग पर अड़े थे।

परंतु हमारे मराठी की कहावत, तू चाल में येतो, के रूप में स्थगित हो गया। कुछ आंकड़ों को छोड़ दें तो अधिकतम कृषकों की स्थिति जो की त्यों बनी हुई है। हालांकि जब से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की सुविधा से करोड़ों किसानों के खातों में डायरेक्ट सहायता राशि पहुंच रही है और पहले की अपेक्षा सुधार हुआ है परंतु इसे बहुत आगे ले जाकर किसानों के लिए ऐसे अवसर प्रदान करने की जरूरत है ताकि युवाओं को भी इस क्षेत्र में आकर्षित किया जा सके। क्योंकि कृषि क्षेत्र मानवीय जीवन की प्राथमिकताओं आवश्यकताओं से जुड़ा है। जिनके सहयोग से मानवीय खाद्य पदार्थ की उपलब्धि होती है। इसलिए अब पूरी दुनिया का कृषि क्षेत्र पर ध्यान देना लाजमी भी है और पूरी दुनियां के कृषि समुदाय को एकीकृत होने की श्रृंखला को रेखांकित करना ज़रूरी है।

जिससे वैश्विक स्तर पर कृषक हितों, समस्याओं, सुधारो अधिकारों का संज्ञान लेकर परामर्श दिशा निर्देश व उच्च स्तर पर सहयोग बनाया जा सके। इसलिए भारत की मेजबानी में 12-15 सितंबर 2023 को कृषक अधिकारों पर वैश्विक संगोष्ठी शुरू है इसे इटली के रोम स्थित खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (अंतर्राष्ट्रीय संधि) के सचिवालय द्वारा आयोजित, वैश्विक संगोष्ठी की मेजबानी कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा की जा रही है। इस संगोष्ठी के आयोजन में पौधा किस्म संरक्षण और किसान अधिकार (पीपीवीएफआर) प्राधिकरण, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), आईसीएआर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) और आईसीएआर राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीपीजीआर) का भी सहयोग प्राप्त हो रहा है।

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में मनानिया राष्ट्रपति महोदय के संबोधन की करें तो, अपने चार पृष्ठिय संबोधन में उन्होंने कहा कि कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास ने भारत को 1950-51 के बाद से खाद्यान्न बागवानी, मत्स्य पालन, दूध और अंडे के उत्पादन को कई गुना बढ़ाने में योगदान दिया है। इससे राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा पर अनुकूल प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कृषि-जैव विविधता संरक्षकों और परिश्रमी किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के प्रयासों ने सरकार के समर्थन से देश में कई कृषि क्रांतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि प्रौद्योगिकी और विज्ञान विरासत ज्ञान के प्रभावी संरक्षक और संवर्द्धक के रूप में कार्य कर सकते हैं। आगे कहा कि भारत विविधता से भरपूर एक विशाल देश है। जिसका क्षेत्रफल विश्व का केवल 2.4 प्रतिशत है। विश्व के पौधों की विभिन्न किस्मों और जानवरों की सभी दर्ज प्रजातियों का 7 से 8 प्रतिशत भारत में मौजूद है।

उन्होंने कहा कि जैव विविधता के क्षेत्र में भारत पौधों और प्रजातियों की विस्तृत श्रृंखला से संपन्न देशों में से एक है। राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की यह समृद्ध कृषि-जैव विविधता वैश्विक समुदाय के लिए अनुपम निधि रही है। उन्होंने कहा कि हमारे किसानों ने कड़े परिश्रम और उद्यमिता से पौधों की स्थानीय किस्मों का संरक्षण किया है। जंगली पौधों को अपने अनुरूप बनाया है और पारंपरिक किस्मों का पोषण किया है। इससे फसल प्रजनन कार्यक्रमों को आधार मिला है और इससे मनुष्यों और पशुओं के लिए भोजन और पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। उन्होंने कहा है कि किसान हमारे अन्नदाता हैं। इसलिए उनके अधिकार की रक्षा और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने की हमारी जिम्मेदारी है। नई दिल्ली में आज किसानों के अधिकार पर पहली वैश्विक संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि किसानों के अधिकारों की रक्षा करके हम विश्व के भविष्य की रक्षा करते हैं और इसे अधिक उज्ज्वल तथा समृद्ध बनाते हैं।

देश की विविधता को लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि भारत में पादपों की 45 हजार से अधिक किस्में और विभिन्न तरह के मसाले हैं। इनका संरक्षण करके हम न केवल मानवता की रक्षा करेंगे बल्कि समूचे विश्व की भी रक्षा करेंगे। इस कार्यक्रम में विश्व के 59 देशों के विख्यात वैज्ञानिक, किसान और विशेषज्ञ इस कार्यक्रम में भागीदारी कर रहे हैं। वे खाद्य और कृषि पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि के अनुच्छेद नौ में प्रतिष्ठापित किसानों के अधिकारों से संबंधित मुख्य मुद्दों पर विचार विमर्श कर रहे हैं। भारत पौधों की किस्मों और किसानों केअधिकारों के संरक्षण अधिनियम 2001 के जरिये पादप विविधता पंजीकरण के संदर्भ में किसानों के अधिकार को इसमें शामिल करने वाला विश्व का पहला देश है। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने भी उद्घाटन समारोह में भागीदारी की।

साथियों बात अगर हम पौधों की विविधता और किसानों के अधिकारों के संरक्षण अधिनियम 2001 की करें तो, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (एमओएएफडब्ल्यू) और पौधों की विविधता और किसानों के अधिकार संरक्षण (पीपीवीएफआर) प्राधिकरण द्वारा आयोजित की गई है। मीडिया को जानकारी देते हुए, पीपीवीएफआर प्राधिकरण के अध्यक्ष ने बताया कि भारत अपने पौधों की विविधता और किसानों के अधिकारों के संरक्षण (पीपीवीएफआर) अधिनियम, 2001 के माध्यम से पौधों की विविधता पंजीकरण के संदर्भ में किसानों के अधिकारों को शामिल करने वाला दुनिया का पहला देश है।

उन्होंने बताया कि दुनिया भर के 59 देशों से प्रख्यात वैज्ञानिक भाग लेंगे और सत्र के दौरान इस बात पर विचार-विमर्श करेंगे कि दुनियां के सभी क्षेत्रों के स्थानीय और स्वदेशी समुदायों और किसानों द्वारा पौधों केआनुवंशिक संरक्षण और विकास में किए गए भारी योगदान को कैसे पहचाना और पुरस्कृत किया जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुनियां भर में खाद्य प्रणालियाँ बीजों पर निर्भर हैं। फसलों और रोपण सामग्री की नई किस्में कृषि उत्पादन, आत्मनिर्भरता और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने कहा कि कुपोषण, जलवायु परिवर्तन से बढ़ी उत्पादकता जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन महत्वपूर्ण हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, भारतीय मेजबानी में किसान अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी – 59 देश शामिल। किसानों के अधिकारों पर पहली वैश्विक संगोष्ठी 12-15 सितंबर 2023 शुरू।59 से अधिक भागीदार देश खाद्य और कृषि पादप अनुवांशिक संसाधनों पर अंतरराष्ट्रीय संधि के अनुच्छेद 9 में शामिल किसानों के अधिकारों पर विचार विमर्श सराहनीय कार्य है।

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