कोलकाता। नवरात्र की शुरुआत हो गई है। पूरा देश अब नवरात्र के 09 दिनों में धूमधाम से दुर्गा पूजा में जुट जाता है। रौनक देखते बनती है। मां दुर्गा के नौ रूपों की 09 दिनों में उपासना होती है। मंडप और पंडाल सजते हैं, आकर्षक रूपों और थीम पर मां दुर्गा की प्रतिमा लगाई जाती है। पश्चिम बंगाल में सबसे भव्य तरीके से दुर्गा पूजा होती है। पूरा बंगाल इन दिनों पूजा मंडपों के इर्द गिर्द ही इकट्ठा नजर आता है। बड़े-बड़े पंडाल और आकर्षक मूर्तियों के साथ शानदार तरीके से बंगाली समाज देवी दुर्गा की पूजा करता है। बंगाल में सैकड़ों साल से दुर्गा पूजा हो रही है। कहा जाता है कि बंगाल से ही देश के दूसरे हिस्सों में दुर्गा पूजा आयोजित करने का चलन फैला।
आज भी बंगाल जैसी दुर्गा पूजा कहीं नहीं होती। बंगाल में दुर्गा पूजा आयोजित करने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां हैं। पहली बार दुर्गा पूजा कैसे हुई, क्यों आयोजित की गई, इसको लेकर दिलचस्प किस्सा है। एक कहानी ये है कि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद शुरू हुआ। कहा जाता है कि प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत पर भगवान को धन्यवाद देने के लिए पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था। प्लासी के युद्ध में बंगाल के शासक नवाब सिराजुद्दौला की हार हुई थी। बंगाल में मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर गंगा किनारे प्लासी नाम की जगह है। यहीं पर 23 जून 1757 को नवाब की सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में युद्ध लड़ा और नवाब सिराजुद्दौला को शिकस्त दी। हालांकि युद्ध से पहले ही साजिश के जरिए रॉबर्ट क्लाइव ने नवाब के कुछ प्रमुख दरबारियों और शहर के अमीर सेठों को अपने साथ कर लिया था। कहा जाता है कि युद्ध में जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता था लेकिन युद्ध के दौरान नवाब सिराजुद्दौला ने इलाके के सारे चर्च को नेस्तानाबूद कर दिया था। उस वक्त अंग्रेजों के हिमायती राजा नव कृष्णदेव सामने आए। उन्होंने रॉबर्ट क्लाइव के सामने भव्य दुर्गा पूजा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर रॉबर्ट क्लाइव भी तैयार हो गया। उसी वर्ष पहली बार कोलकाता में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ।
क्यों हुई पहली बार दुर्गा पूजा : पूरे कोलकाता को शानदार तरीके से सजाया गया। कोलकाता के शोभा बाजार के पुरातन बाड़ी में दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। इसमें कृष्णनगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों को बुलाया गया। भव्य मूर्तियों का निर्माण हुआ। वर्मा और श्रीलंका से नृत्यांगनाएं बुलवाई गईं। रॉबर्ट क्लाइव ने हाथी पर बैठकर समारोह का आनंद लिया। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से चलकर लोग कोलकाता आए थे।
इस आयोजन के प्रमाण के तौर पर अंग्रेजों की एक पेटिंग मिलती है, जिसमें कोलकाता में हुई पहली दुर्गा पूजा को दर्शाया गया है। राजा नव कृष्णदेव के महल में भी एक पेंटिंग लगी थी। इसमें कोलकाता के दुर्गा पूजा आयोजन को चित्रित किया गया था। इसी पेंटिंग की बुनियाद पर पहली दुर्गा पूजा की कहानी कही जाती है। 1757 के दुर्गा पूजा आयोजन को देखकर बड़े अमीर जमींदार भी अचंभित हो गए।
बाद के वर्षों में जब बंगाल में जमींदारी प्रथा लागू हुई तो इलाके के अमीर जमींदार अपना रौब रसूख दिखाने के लिए हर साल भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन करने लगे। इस तरह की पूजा को देखने के लिए दूर-दूर के गांवों से लोग आते थे। धीरे-धीरे दुर्गा पूजा लोकप्रिय होकर सभी जगहों पर होने लगी।
कई और कहानियां भी हैं : पहली बार दुर्गा पूजा के आयोजन को लेकर कई दूसरी कहानियां भी हैं। कहा जाता है कि पहली बार नौवीं सदी में बंगाल के एक युवक ने इसकी शुरुआत की थी। बंगाल के रघुनंदन भट्टाचार्य नाम के एक विद्वान के पहली बार दुर्गा पूजा आयोजित करने का जिक्र भी मिलता है। एक दूसरी कहानी के मुताबिक बंगाल में पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन कुल्लक भट्ट नाम के पंडित के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने करवाया था। यह समारोह पूरी तरह से पारिवारिक था। कहा जाता है कि बंगाल में पाल और सेनवंशियों ने दुर्गा पूजा को काफी बढ़ावा दिया।
बताया जाता है कि 1757 के बाद 1790 में राजाओं, सामंतों और जमींदारों ने पहली बार बंगाल के नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा में सार्वजनिक दुर्गा पूजा का आयोजन किया था। इसके बाद दुर्गा पूजा सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होती गई और इसे भव्य तरीके से मनाने की परंपरा पड़ गई। बाद में आजादी की लड़ाई जब शुरू हुई तो ये पूजा मंडप जागरण का केंद्र बने।